JK Hospital IT Manager: आकाश दुबे घटना वाले दिन आरोपियों की पैरवी के लिए पहुंचा था थाने, मोबाइल थाने के नजदीक फेंककर भागने का दावा
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भोपाल। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की ताजा न्यूज कोलार स्थित जेके अस्पताल के आईटी मैनेजर (JK Hospital IT Manager) आकाश दुबे की है। वह पिछले 12 दिनों से फरार चल रहा था। मंगलवार को नाटकीय अंदाज से हुए आत्मसमर्पण के बाद हर कोई यह जानना चाहता था कि उसने इस दौरान कहा समय बिताया। हालांकि जो राज निकलकर बाहर आए हैं वह इशारा कर रहे हैं कि प्रकरण आकाश दुबे तक ही सीमित रहेगा। इस मामले में पुलिस आरोपी को बुधवार दोपहर जिला अदालत में पेश करेगी। उसे पूछताछ के लिए रिमांड पर लिया जाएगा।
अहसास हो गया था फंसने वाला है
आकाश दुबे जेके अस्पताल में आईटी मैनेजर था। वह 2012 से वहां नौकरी कर रहा है। पिता रमाशंकर दुबे डीएसपी के पद से रिटायर हुए हैं। वह कोलार स्थित शालीमार कॉलोनी में रहता है। पुलिस को उसने बताया है कि जिस दिन आकर्ष सक्सेना (Akarsh Saxena) को हिरासत में लिया गया था। उसी दिन उसके परिवार ने उससे संपर्क किया था। जिसके बाद वह हकीकत पता लगाने थाने आया था। लेकिन, उसे अहसास हो गया था कि वह फंसने वाला है। इसलिए थाने के ही नजदीक मोबाइल फेंककर वह भाग गया। सबसे पहले उसने होशंगाबाद रेलवे स्टेशन पर दिन काटा।
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संपत्ति कुर्क होती इसलिए आया
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होशंगाबाद (Hoshangabad) से वह इटारसी गया। यहां से फिर वह नासिक चला गया। नासिक (Nashik) में उसने कुछ दिन धर्मशाला में दिन गुजारे। फिर वह बिलासपुर में रहने वाले दोस्त के यहां चला गया। यहां उसको पता चला कि उसकी जमानत अर्जी खारिज हो गई है। इसके अलावा पुलिस उसकी संपत्ति खंगाल रही है। वह फिर भोपाल आत्मसमर्पण करने आ गया। पुलिस सूत्रों के अनुसार मीडिया में लीक यह जानकारी सच्ची तो लगती है पर यकीन किया नहीं जा सकता। दरअसल, इस पूरी कहानी में जेके अस्पताल प्रबंधन को क्लीनचिट देने जैसे संकेत मिल रहे है। लेकिन, आरोपी आकाश दुबे के मंगलवार दोपहर आत्मसमर्पण करने के बाद डीआईजी सिटी इरशाद वली थाने पूछताछ करने पहुंचे थे। उसके बाद रात लगभग 10 बजे एसपी साउथ साई कृष्णा थोटा भी उससे पूछताछ करने पहुंचे।
सवाल, जिनके जवाब ठंडे बस्ते में जाएंगे
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आकाश दुबे की गिरफ्तारी के बाद पूरे मामले को सुलझाने की तरफ ले जाया जा रहा है। आरोपी की जिला अदालत में अर्जी खारिज हो गई है। उसके पास डीजे कोर्ट फिर जबलपुर हाईकोर्ट का रास्ता खुला है। लेकिन, आकाश दुबे की गिरफ्तारी के बाद वह सवाल अनसुलझे दिखते नजर आ रहे है जिसकी चर्चा काफी दिनों से चल रही थी। पुलिस ने अस्पताल प्रबंधन (JK Hospital IT Manager) से नोटिस देकर रेमडेसिविर इंजेक्शन के रिकॉर्ड के बारे में तलब किया गया था। ऐसा करने के बाद जेके अस्पताल प्रबंधन में दो दिनों तक खलबली रही। इस बीच आकाश दुबे ने सरेंडर कर दिया। मतलब साफ है कि यह सवाल अब भविष्य की गर्त पर चला गया है।
सुर्खियों में है जेके अस्पताल
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कोलार थाने में आकाश दुबे सरेंडर करने आटो से पहुंचा था। कोरोना वायरस की रोकथाम केे लिए रेमडेसिविर इंजेक्शन काफी महत्वपूर्ण है। इसकी किल्लत से एक महीने पहले भोपाल शहर में हाहाकार मचा हुआ था। दूसरी तरफ उसकी कालाबाजारी की लगातार खबरें आ रही थी। जेके अस्पताल के ही कर्मचारी झलकन सिंह मीणा को कोलार थाना पुलिस ने पकड़ा था। उसको इंजेक्शन जेके अस्पताल की नर्स सुशीला वर्मा ने बेचने के लिए दिए थे। इस केस के बाद दूसरा मामला आकाश दुबे का निकलकर सामने आया था। लगभग एक महीने से आकाश दुबे सुर्खियों में बना था। लेकिन, ताजा घटनाक्रम से यह अहसास हो रहा है कि आकाश दुबे को पूरे मामले का पोस्टर ब्याय बनाकर प्रकरण को ठंडे बस्ते में डाला जाएगा। हालांकि यह सारी बातें भविष्य पर निर्भर रहेगी।
यह है पूरा मामला
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कोलार थाना पुलिस ने 13 मई की रात को तीन आरोपियों दिलप्रीत सलूजा, उसके चचेरे भाई अंकित सलूजा और आकर्ष सक्सेना को कार के साथ दबोचा था। कार से पुलिस को पांच रेमडेसिविर इंजेक्शन मिले थे। आकर्ष सक्सेना ने बताया था कि इंजेक्शन उसने आकाश दुबे (JK Hospital IT Manager) से खरीदे हैं। अंकित सलूजा ने भी इंजेक्शन रिश्तेदार के लिए पहले खरीदना बताया था। वह आरोपी आकाश दुबे से करीब 15 इंजेक्शन खरीद चुके थे। तीनों आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने आकाश दुबे के साथ मुख्यमंत्री की तस्वीर ट्वीट की थी। ऐसा करने के बाद भाजपा नेताओं ने भी इंदौर में रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी करने के मामले में गिरफ्तार आरोपी के साथ तस्वीर शेयर की थी।
पुलिस महकमे की साख भी टिकी
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आरोपी आकाश दुबे पर साढ़े सात हजार रुपए का ईनाम भी घोषित था। हालांकि ईनाम की राशि को लेकर भी मीडिया में पुलिस की फजीहत हुई थी। इस मामले में राजनीति ही नहीं पुलिस विभाग की भी किरकिरी हुई है। दरअसल, जिस आकर्ष सक्सेना को गिरफ्तार किया गया उसको भोपाल क्राइम ब्रांच के दो एसआई एमडी अहिरवार और हरकिशन वर्मा ने भी पकड़ा था। छोड़ने के एवज में ढ़ाई लाख रुपए की बात सामने आई थी। इस मामले की जांच एएसपी अंकित जायसवाल अलग से कर रहे हैं। इस कारण केस में पुलिस की साख पर भी सवाल खड़े हैं। भोपाल का यह चर्चित मामला मीडिया की सुर्खियों में बना हुआ है।