South Asia News: विश्वकप में नेपाली क्रिकेट टीम की एंट्री, वहीं नौ दलों वाले सत्तारूढ़ गठबंधन का सेमीफायनल मुकाबला, कूटनीतिक लिहाज से नेपाल की खींचतान का किसको मिलेगा फायदा
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दिल्ली। दक्षिण एशिया कई विषमताओं से जूझ रहा है। उसकी अलग—अलग वजह है। खास वजह है आर्थिक तंगी। इसकी चपेट में अफगानिस्तान, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश के बाद नेपाल का नंबर आता है। अफगानिस्तान सत्ता परिवर्तन के बाद पाबंदियों का सामान कर रहा है। श्रीलंका में आर्थिक बदहाली चल रही है। पाकिस्तान भी उन्हीं बातों से जूझ रहा है। जबकि नेपाल (South Asia News) में आर्थिक संकट के बीच राजनीतिक अस्थिरता की भेंट में चढ़ रहा है। यहां पिछले दिनों आम चुनाव हुए थे। जिसमें चुनाव पूर्व गठबंधन वाले दलों में खींचतान हुई। वह टूटा फिर नया गठबंधन सत्ता के लिए बना। अब वह गठबंधन भी टूट गया। इससे भारत के हित और संबंधों पर उसके परिणाम कैसे होंगे यह समझने का प्रयास किया गया है।
पहले बीजिंग के पास चला गया था रिमोट
अब नए समीकरणों से यह होगा
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नवंबर, 2022 में शेर बहादुर देउबा को यह गलतफहमी हो गई थी कि वे सत्ता की चाबी के मुख्य सूत्रधार है। लेकिन, नेपाल में राजनीतिक चाणक्य कहे जाने वाले प्रचंड ने देउबा को चारों खाने चित करके सरकार बना ली। इसके बाद वे छटपटा भी रहे थे। इसी बीच नया विवाद तब पैदा हो गया जब नेपाल में राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए प्रचंड के दल ने कांग्रेसी नेता रामचंद्र पौडेल (Ram Chandra Paudel) का नाम आगे कर दिया। इसके बाद प्रचंड और ओली गठबंधन टूटना तय हो गया। ओली की तरफ से उम्मीदवार सुवास नेवांग (Suvas Nevang) ने दावेदारी की है। इसमें रामचंद्र पौडेल का राष्ट्रपति बनना लगभग तय है। गुरूवार शाम को इसके परिणाम भी सामने आ जाएंगे। इसके बाद प्रचंड की अगली परीक्षा 17 मार्च को होना है। इस दिन यहां उप राष्ट्रपति को लेकर मतदान होगा। नेपाल में अभी नौ दलों का गठबंधन पुष्प कमल दहल प्रचंड की अगुवाई में काम कर रहा है। जबकि चार महीने पहले शेर बहादुर देउबा की अगुवाई में नेपाल में सरकार चल रही थी।
इस कारण भारत के लिए ज्यादा चिंता
भारत में उत्तर पूर्वी राज्यों पर फोकस
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नेपाल में पिछले दिनों दूसरे देश से सामान आयात को लेकर प्रतिबंध लगाया गया था। क्योंकि नेपाल आरबीआई गर्वनर ने अप्रैल, 2022 में खजाना खाली होने की तरफ संकेत दे दिया था। इसी बीच चुनाव में भारी खर्च करके अभी भी वहां राजनीतिक घमासान जारी है। वहीं चीन की तरफ से हमेशा सीमा विस्तार को लेकर भारत से तनातनी होती रही है। वह डोकलाम मुद्दा हो या फिर नेपाल की विवादित लिपुलेक सीमा। अक्सर दोनों देशों में टकराव की स्थिति बनती है। लद्दाख के कई क्षेत्र में भी यह स्थिति बनती थी। इसलिए मोदी सरकार ने उसे अलग राज्य बनाकर चीन को पटखनी दे दी थी। इस फॉर्मूले पर बीजिंग लंबे अरसे से ज्यादा काम कर रहा है। तिब्बत में कब्जा हो या है असम के कुछ इलाकों को लेकर चीन की सेना हमेशा से भारत से टकराती है। यहां असम और मिजोरम में पिछले दिनों चुनाव भी हुए। जिसमें मिजोरम में भाजपा परास्त हुई। लेकिन, दो विधायक जीतने के बाद भी वह सरकार में शामिल हो गई। राजनीतिक पंडित मानते हैं कि ऐसा करने से बीजिंग पर नियंत्रण करने में दिल्ली को सहायता मिलती रहेगी।