Election Analysis Of States: शिवसेना, सपा, आप समेत अन्य विपक्षी पार्टियों के बधाई संदेश से राष्ट्रीय नेतृत्व की अटकलें
दिल्ली। पश्चिम बंगाल के चुनाव भारत की राजनीति (Election analysis of states) की नई अंकुरित हो रहे पौधे की तरफ इशारा कर रहे हैं। देश को दक्षिणी भारत और पूर्वी भारत से प्रधानमंत्री मिल गया है। पश्चिमी भारत से एक नाम उभरकर सामने आ रहा है। वह नाम है तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा। क्योंकि एकमात्र ममता बनर्जी ऐसी मुख्यमंत्री है जिन्होंने भाजपा के मजबूत किलेबंदी से किए गए हर हमले का डटकर मुकाबला किया। हालांकि इस मुकाबले में वह अपनी विधानसभा जरुर हार गई। लेकिन, पार्टी को उन्होंने नुकसान नहीं होने दिया। देश से पहुंच रहे बधाई संकेतों से कुछ ऐसे ही इशारे भी मिल रहे हैं।
सबसे ताकतवर मुख्यमंत्री
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की पार्टी लगातार तीसरी बार अपनी सरकार बनाने जा रही है। इससे पहले ममता बनर्जी के ही नेतृत्व में पश्चिम बंगाल में पिछले 34 साल से जमी वामपंथी सरकार को उखाड़ फेंकने का भी श्रेय उन्हें ही जाता है। ममता बनर्जी पहले कांग्रेस नेत्री हुआ करती थी। लेकिन, उनकी पटरी कांग्रेस के बड़े नेताओं से पटरी नहीं बैठी। नतीजतन, उन्होंने अलग पार्टी बनाकर पश्चिम बंगाल में पहले जड़े जमाई। उसके बूते वे दिल्ली में केंद्रीय मंत्री भी रहीं। रेलवे मंत्रालय जैसा भारी विभाग भी उन्होंने संभाला था। उस वक्त उनके सामने महिला नेताओं में बहुत सारी महिला नेत्री थी। अब उनके आगे दूर—दूर तक कोई नहीं है। हालांकि वे अभी भी तमिलनाडू की पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत जे.जयललिता का रिकॉर्ड नहीं तोड़ा है। वे चार बार मुख्यमंत्री रहीं थी।
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देश का चर्चित चेहरा बना
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से कुछ ही नेता सीधे लोहा लेते हैं। उनमें आप पार्टी के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और दूसरे नंबर पर हैं ममता बनर्जी। इन दोनों नेताओं ने कई मौकों पर प्रधानमंत्री के पद की गरिमा के विपरीत जाकर भी बयान और राजनीतिक स्टंट किए हैं। हालांकि इन्हीं वजहों से भी वे देश में चर्चित चेहरा बनने में कामयाब रहे। दोनों ही नेताओं ने कई मौकों पर मोदी की नीतियों की आलोचना की है। इन दोनों ही नेताओं ने चुनाव में मोदी की नीतियों को परास्त किया है। जबकि मोदी के सामने अखिलेश यादव, मायावती, तेजस्विी यादव भी ढ़ेर हो गए।
गठबंधन वाली राजनीति की तरफ देश
भारत की जनता का एक बार फिर एक पार्टी की मोह से ध्यान हट रहा है। यह चारों तरफ से मिल रहे परिणामों को देखने के बाद समझा जा सकता है। महाराष्ट्र में गठबंधन वाली सरकार है। जबकि राजस्थान, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार। वहीं मध्य प्रदेश में सरकार ज्योतिरादित्य सिंधिया के बूते टिकी हुई है। जबकि इन सारे राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की तूती बोला करती थी। यह सारे किले अब हिलने लगे हैं। आलम यह है कि पांच राज्यों के सभी सीटों को मिला दिया जाए तो भाजपा को कुल 200 सीट नहीं मिली। लेकिन, गृहमंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, राजनाथ सिंह से लेकर हर बड़े नेता ने दावा किया था कि बंगाल में ही 200 सीट उनकी आएगी।
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इन चेहरों के बीच लगा लिया अपना फ्रेम
राजनीति के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाना वह भी पुरुष प्रधान व्यवस्था के बीच यह बहुत ही चुनौती भरा काम होता है। लेकिन, ममता बनर्जी ने यह करके दिखा दिया है। भारत की पहली मुख्यमंत्री 1963 में उत्तर प्रदेश से सुचेता कृपलानी बनीं थी। दूसरी मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य उडीसा में नंदिनी सत्पथी को मिला था। सत्पथी दो बार मुख्यमंत्री बनीं लेकिन कार्यकाल छोटा ही रहा। तीसरी मुख्यमंत्री गोवा की शशिकला काकोड़कर थी जो छह साल इस पद पर रही। चौथी मुख्यमंत्री तमिलनाडू की जे.जयललिता रही। वे चार बार मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। हालांकि इन चारों मे से अब कोई जीवित नहीं है। उनकी यादें और उनके किस्से ही शेष है।
कहीं दी तो कहीं छीनी गई सत्ता
महिला मुख्यमंत्रियों की बात करें तो असम की मुख्यमंत्री सईदा अनवर तैमूर का भी नाम इतिहास में दर्ज है। वे दिसंबर 1980 से जून 1981 तक मुख्यमंत्री रही। इसी तरह राबड़ी देवी जुलाई, 1997 से मार्च 2000 तक बिहार की मुख्यमंत्री रही। गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल बनीं। वे भारत की 14वीं महिला थी जो मुख्यमंत्री जैसी कुर्सी संभाल रही थी। हालांकि यह सभी मुख्यमंत्री बनाई गई थी। दरअसल, लालू प्रसाद यादव को जेल हो रही थी। इसलिए सत्ता उन्होंने पत्नी को सौंपी थी। इसी तरह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बने जिसके बाद उन्होंने अपनी गद्दी आनंदी बेन पटेल को दी थी। मतलब साफ है कि यह चेहरे एक्सीडेंटल सीएम वाले थे।
जिन्होंने अपने बूते कर दिखाया
मध्य प्रदेश की राजनीति (Election analysis of states) में मुख्यमंत्री उमा भारती अपनी ताकत से बनीं थी। उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को उखाड़ फेंका था। लेकिन, वे भी कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी और नौ महीने बाद कुर्सी छोड़ना पड़ी। लंबे समय तक महिला मुख्यमंत्री को कुर्सी पर बने रहने का श्रेय दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत शीला दीक्षित, तमिलनाडू की पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत जे.जयललिता के बाद ममता बनर्जी को जाता है। हालांकि दो बार मुख्यमंत्री राजस्थान से वसुंधरा राजे सिंधिया भी रहीं है।