Nepal Political Crisis: केपी शर्मा ओली के पूरे राजनीतिक प्रपंच को जानकर आप भी रह जाएंगे हैरान, इसलिए बधाई देने चुप थे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी
दिल्ली। नेपाल (Nepal Political Crisis) की आबादी 2019 की जनगणना के अनुसार लगभग तीन करोड़ है। वहीं मध्य प्रदेश की आबादी लगभग सात करोड़ है। मतलब दुगुनी से ज्यादा। क्षेत्रफल की दृष्टि से देखें तो 57 हजार स्क्वायर फीट से अधिक क्षेत्रफल है नेपाल का। इतने छोटे राज्य में प्रधानमंत्री की एक कुर्सी के लिए सात महीने से संघर्ष चल रहा था। इसमें सरकार और विपक्ष मिलकर एक—दूसरे पर कूटनीतिक चाल चल रहे थे। इस पूरे घटनाक्रम में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) की भी नजर थी। लेकिन, मामला दूसरे देश का था इसलिए चुप रहना जरुरी था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आखिरकार 18 जुलाई को नेपाल के मामले में अपनी चुप्पी तोड़ी।
भारत से ज्यादा है घनिष्ठता
नव निर्वाचित प्रधानमंत्री 75 वर्षीय शेर बहादुर देउबा नेपाली कांग्रेस के नेता है। उन्होंने लंदन की यूनिवर्सिटी से शिक्षाहासिल करने के साथ—साथ काठमांडू स्थित त्रिभुवन विश्वविद्यालय से पढ़ाई की है। उनके एक बेटे जयवीर सिंह देउबा है। पत्नी आरजू राणा देउबा है। पत्नी ने हिमाचल से बीए तो पंजाब से एमए किया है। फिलहाल महिलाओं को लेकर वे एक अशासकीय संस्था की सक्रिय पदाधिकारी हैं। देउबा का नाम नेपाल में छात्र संघ की स्थापना करने वाले सदस्यों में शामिल हैं। उन्होंने दिल्ली के जेएनयू में भी पढ़ाई की है। इसलिए उन्हें भारतीय राजनीति का भी बहुत ज्ञान हासिल है। इसके अलावा नेपाल में वे चार बार के पूर्व प्रधानमंत्री रहने की भी ख्याति देउबा के पास है। राजशाही व्यवस्था में पंचायती राज का विरोध करने पर उन्हें नौ साल जेल में भी बिताना पड़े थे।
पहली बार ऐसा नहीं हुआ
शेर बहादुर देउबा चुनाव में 1991 से मैदान पर है। वे कई बार नेपाली कांग्रेस कार्यकाल में मंत्री भी रह चुके हैं। इस बार सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें कार्यवाहक पीएम बनाने का आदेश दिया था। यह संयोग उनके साथ पहली बार नहीं हुआ। इससे पहले 1995 में भी यही हालात बने थे। उस वक्त मनमोहन अधिकारी ने संसद को गलत तरीके से भंग कर दिया गया था। तब भी सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय को गलत बताते हुए देउबा को कार्यवाहक पीएम बनाया था।
भारत के लिए फायदा या नुकसान
नेपाल में इसके पहले केपी शर्मा ओली प्रधानमंत्री थे। वे चीन के काफी नजदीकी भी बताए जा रहे थे। इस कारण कूटनीतिक लिहाज (Nepal Political Crisis) से यह भारत के लिए काफी नुकसान पहुंचा रहा था। ओली के कारण कई बार भारत की सरकार को विपक्ष के सवालों पर घिरना भी पड़ा था। अब नए प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा बने हैं। यह भारत के लिए संतोषजनक है। लेकिन, यह खुशी महज 16 महीनों की है। फिर वहां आम चुनाव होना है। इसलिए भारत के रणनीतिकारों के लिए यह महीने नए चुनौतियों से निपटते हुए संबंधों को वापस मजबूत बनाने के लिए बेहतर अवसर माना जा सकता है। हालांकि चीन भी अपने स्तर पर नए प्रधानमंत्री के ऐलान होते ही लग चुका है।
साढ़े तीन साल मेलजोल रहा
नेपाल में नवंबर, 2017 में चुनाव हुए थे। जिसमें 275 लोकसभा सीटें हैं। यहां सरकार बनाने के लिए 138 लोकसभा सदस्यों की आवश्यकता होती है। इसमें यूनिफाईड माक्सिस्ट लेनिनिस्ट यूएमएल पार्टी के पास 121 सीट हैं। इसके प्रमुख केपी शर्मा ओली हैं। दूसरी पार्टी नेपाली कांग्रेस के पास 63 सीटें हैं। तीसरी पार्टी कम्यूनिस्ट पार्टी आफ नेपाल केंद्रीय माओवादी के पास 53 सीट के साथ नेपाली संसद में दखल रखती है। कम्यूनिस्ट पार्टी नेपाल के प्रमुख पुष्प कमल दहल प्रचंड हैं। प्रचंड ने ओली सरकार को समर्थन दिया था। इस कारण वहां ओली सरकार बनी थी। इससे पहले दोनों नेताओं ने मिलकर नेपाल कम्यूनिस्ट पार्टी का गठन किया था।
ओली—प्रचंड की इसलिए बनी जोडी
नेपाल में वामपंथी विचारधारा के दो पहलू हैं। यहां चीन वाली वामपंथी विचारधारा तो हैं ही। इसके अलावा दूसरी वामपंथी विचारधारा रसिया की है। रसिया वाली विचारधारा वाली पार्टी नेपाल में केपी शर्मा ओली की पार्टी को कहा जाता है। जबकि पुष्प कमल दहल प्रचंड चीन विचारधारा वाली वामपंथी विचारधारा के समर्थक माने जाते हैं। दोनों पार्टियों की विचारधारा लगभग एक जैसी थी। इसलिए दोनों पार्टियों में अंदरुनी समझौता हो गया। जिसमें दोनों दलों के नेता ने ढ़ाई—ढ़ाई साल के कार्यकाल करने की सहमति पर यह समझौता किया था। नंबर के आधार पर ओली को पहले अपना कार्यकाल पूरा करने का समझौता हुआ।
ओली ने संसद लगने नहीं दी
यूनिफाईड माक्सिस्ट लेनिनिस्ट यूएमएल पार्टी ने अपना कार्यकाल पूरा कर लिया। जब प्रचंड को कुर्सी देने की बारी आई तो वहां केपी शर्मा ओली ने उसको भंग कर दी। यह काम उन्होंने राष्ट्रपति विद्यादेवी भंडारी की मदद से किया। अपने आपको ठगा महसूस कर रहे प्रचंड ने इस फैसले के खिलाफ अदालत में जाने का मन बनाया। फरवरी, 2021 में ही सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर आपत्ति जता दी थी। जिसके बाद प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को संसद बहाल (Nepal Political Crisis) करने के लिए कहा गया। ओली ने सुप्रीम कोर्ट का आदेश तो मान लिया। लेकिन, अपनी कुर्सी बचाने के लिए संसद सत्र ही तीन महीने तक चालू नहीं होने दिया। जबकि विपक्ष उन्हें अल्पमत में बताकर परीक्षण की मांग कर रहा था।
ऐसे की गई थी चालाकी
इस फैसले के खिलाफ ओली की ही पार्टी के भीतर फूट पड़ चुकी थी। इसलिए जब दबाव में वहां बहुमत परीक्षण हुआ तो 121 में से 93 वोट ही उन्हें मिल सके। बाकी उनकी ही पार्टी के 28 लोगों ने ओली से किनारा कर लिया। जबकि विपक्ष को 124 मत हासिल हुए थे। नेपाल में सरकार बनाने के लिए 138 सांसदों का होना जरुरी था। इसलिए सरकार नहीं बनना थी। वहां नियमानुसार दूसरी बड़ी पार्टी को मौका देने का विकल्प था या फिर चुनाव कराना अंतिम विकल्प था। हालांंकि नेपाल में यह फैसला नहीं हुआ। इसके विपरीत जाकर नेपाल के राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने नेपाली की संविधान सभा के आर्टिकल 76 के तीन नंबर नियम का हवाला देकर ओली को ही पीएम बना दिया। इस नियम के तहत सबसे बड़ी पार्टी के सदस्यों के नेता को पीएम बनाया गया।
इन न्यायाधीशों ने लिया फैसला
इन सभी बातों को लेकर विपक्ष एकजुट होने लगा। नेपाल के भीतर केपी शर्मा ओली के खिलाफ नेता ही नहीं जनता भी मुखर होने लगी थी। वहां जगह—जगह लोकतंत्र बचाओ वाली संस्थाओं ने प्रदर्शन करना चालू कर दिया। नेपाल के सुप्रीम कोर्ट भी नियमों के चलते विपक्ष की बात मानने को तैयार नहीं हुआ। इसके बाद शेर बहादुर देउबा ने 149 सांसदों के समर्थन का पत्र सुप्रीम कोर्ट को सौंप दिया। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट के पांच सदस्यीय बैंच ने नेपाल की सरकार का भविष्य तय किया। यह फैसला लेने वालों में न्यायाधीश छोलेन्द्र शमशेर राणा, न्यायाधीश दीपक कुमार कार्की, न्यायाधीश मीरा खड़का, न्यायाधीश ईश्वर प्रसाद और न्यायाधीश डॉक्टर आनंद मोहन भट्टराई ने लिया था।
अभी भी अस्थिरता रहेगी
सुप्रीम कोर्ट से कुर्सी जाते देख ओली ने फिर एक नई चाल चली। उन्होंने अपनी पार्टी के नेताओं जो विपक्ष के साथ मिल गए थे, शामिल बताकर 153 लोगों की सूची कोर्ट में पेश कर दी थी। जिसके बाद पांच सदस्यीय बैंच के सामने पसोपेश की स्थित बन गई। दरअसल, देउबा के पास 149 तो ओली 153 सदस्यों के शपथ पत्र पेश कर रहे थे। मतलब साथ था कि दोनों की सूची के नंबर मिलाने पर यह आंकड़ा 303 पर पहुंच रहा था। जबकि नेपाली संसद में सदस्यों की संख्या 275 है। सुप्रीम कोर्ट से देउबा को तो मौका यह बोलकर मिल गया है कि वे सर्वाधिक सांसदों वाली पार्टी के नेता है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर प्रधानमंत्री की शपथ राष्ट्रपति ने दिला दी। लेकिन, बहुमत परीक्षण की शर्त रख दी थी। यह शर्त भी देउबा 18 जुलाई को जीत गए।
भारत के प्रधानमंत्री यह बोले
नेपाल में आम चुनाव 16 महीने के लिए टल गए। हालांकि यह स्थिति कब तक रहेगी कहना जल्दबाजी होगी। विश्वास मत हासिल करने पर भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नेपाली प्रधानमंत्री को बधाई संदेश दिया। जिसके बाद देउबा ने कहा कि मोदी के साथ मिलकर संबंधों को मजबूत करने का प्रयास किया जाएगा। प्रधानमंत्री ने रविवार रात देउबा को बधाई दी थी। उन्होंने अपने ट्वीट में कहा कि ‘‘प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा को बधाई और सफल कार्यकाल के लिये शुभकामनाएं। मैं उनके साथ काम करने को लेकर उत्सुक हूं।’’ जवाब में बधाई देते हुए देउबा ने कहा कि ‘‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बधाई संदेश देने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया।’’