अवैध होर्डिंग की वजह से गई महिला इंजीनियर की जान, परिजन को 5 लाख रुपए मुआवजा देने के आदेश
चेन्नई। तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में हुए एक एक्सीडेंट के बाद मद्रास हाईकोर्ट ने ये तल्ख टिप्पणी की है। हाईकोर्ट ने पूछा है कि- राज्य सरकार को सड़क रंगने के लिए और कितने लीटर खून की जरूरत है। दरअसल एक अवैध होर्डिंग की वजह से महिला इंजीनियर की सड़क हादसे में मौत हो गई। इंजीनियर की स्कूटी पर होर्डिंग गिरने की वजह से वो दुर्घटना की शिकार हुई। ये होर्डिंग सत्तारूढ़ पार्टी अन्नाद्रमुक के पदाधिकारी ने लगाया था।
महिला इंजीनियर की पहचान आर. शुभश्री के रूप में हुई। जब वह एक सॉफ्टवेयर फर्म में ड्यूटी पूरी करने के बाद गुरुवार को घर लौट रही थी तो पल्लावरम तोराईपक्कम रोड पर एक होर्डिंग उसकी स्कूटी पर गिर पड़ा। वह असंतुलित होकर सड़क पर गिर पड़ी और पीछे से आ रहे एक टैंकर ने उसे कुचल दिया। शुभश्री को अस्पताल ले जाया गया लेकिन तब तक उसकी मौत हो चुकी थी।
इस घटना के बाद सामाजिक कार्यकर्ता रामा स्वामी ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर अवैध होर्डिंग्स के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी। याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने पूछा कि क्या सरकार ऐसे अवैध होर्डिंग्स के खिलाफ कार्रवाई कर पाएगी। जस्टिस एम सत्यनारायणन और एन शेषसायी की खंडपीठ ने याचिका पर सुनवाई की।
अदालत ने राज्य सरकार को यह भी निर्देश दिया कि पीड़ित परिवार को 5 लाख रुपए की अंतरिम मुआवजा राशि दी जाए। साथ ही इस राशि की वसूली दोषी अधिकारियों से की जाए। मामले में कोर्ट ने पुलिस और चेन्नई नगर निगम के अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने के निर्देश दिए।
अदालत ने पूछा कि क्या अब मुख्यमंत्री के पलानीस्वामी अनाधिकृत बैनरों के खिलाफ बयान जारी करेंगे। तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि इस देश में जीवन के लिए शून्य सम्मान है। नौकरशाही उदासीनता है।
मद्रास हाईकोर्ट की फटकार के बाद सरकार एक्शन में आई और अवैध होर्डिंग्स हटाने के लिए ताबड़तोड़ अभियान चलाए जाने लगे। महाधिवक्ता विजय नारायण ने कोर्ट में कहा कि सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों ने बयान जारी कर अपने कार्यकर्ताओं को बिना अनुमति बैनर न लगाने के आदेश दिए है।
महाधिवक्ता के इस बयान पर भी कोर्ट ने फटकारते हुए कहा कि क्या राजनीतिक दल कोर्ट में आकर जवाब पेश नहीं कर सकते, मीडिया में बयान जारी करने का क्या मतलब है। राजनीतिक दलों ने कोर्ट में उपक्रम क्यों नहीं दायर किया।
स्थानीय पुलिस इंस्पेक्टर, जो अदालत में मौजूद थे, को खींचते हुए, पीठ ने उनसे पूछा कि वह पीड़ित के पिता की शिकायत दर्ज करने के लिए इंतजार क्यों कर रहे थे।