75 वर्षीय सीता देवी ने जब आखिरी सांस ली, तो घर में अनाज छोड़िये नमक का दाना भी नहीं था

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starved deathरांची। झारखंड के गुमला जिले के बसिया प्रखंड में एक गांव है लुंगटू। लुंगटू ग्राम पंचायत भी है। यहां 75 वर्षीय सीता देवी की मौत को आकस्मिक मौत बताया जा रहा है, लेकिन तथ्य और हालात कुछ और ही संकेत दे रहे हैं। सीता देवी की मौत पर एक स्वतंत्र जांच दल की रिपोर्ट के मुताबिक, विधवा सीता देवी के बेटे की उम्र 40 वर्ष है, जो बचपन से कुपोषित होने के कारण उम्र से काफी ज्यादा वृद्ध दिखते हैं। प्रशासन खुद को बचाने के लिए सीता की मौत का कारण वृद्धावस्था के कारण हुई आकस्मिक मृत्यु बता रहा है। उनका आधार कार्ड और राशन कार्ड प्रखंड पदाधिकारियों ने ले लिया है। इनका कोई जॉबकार्ड भी नहीं बना था। पीने के पानी की सुविधा भी नहीं थी। शौचालय नहीं था। (पूरी रिपोर्ट यहां देखी जा सकती है)

बेटे को भूख से बचाने बनाया घर दामाद: अपनी गरीबी और भूख से बचाने के लिए सीता देवी ने अपने बेटे को घर-दामाद बना दिया था, क्योंकि लुंगटू में रोज़ी-रोटी के लिए कुछ नहीं था। बेटे सुकर नगेसिया की पत्नी की मौत हो चुकी है। वह 12 साल से अपनी एक बच्ची के साथ ससुराल (सैटखारी, पालकोट) में रहता है। ससुराल की आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं है।

प्रशासन ने मौत के बाद रखा 50 किलो चावल: सीता देवी अकेली रहती थीं। अनाज तो दूर की बात है, तथ्यान्वेषण दल को उनके घर में नमक तक नहीं मिला। दल को चावल का 50 किलो का बोरा दिखा, जो प्रखंड प्रशासन ने मौत के बाद भेजा था। पड़ोसियों का कहना था कि सीता देवी के मरने के बाद प्रशासनिक पदाधिकारी और कर्मी उनके घर पहुंचे और 3000 रुपए व दो 25—25 किलो चावल के बोरे दिए। साथ ही, गैस सिलिंडर और चूल्हा रख दिया गया। 27 अक्टूबर को भी चावल का बोरा सील बंद था। क्योंकि सीता देवी के मरने के बाद उनके घर में और कोई खाने वाला नहीं था। प्रशासन का इस बारे में कहना है कि क्रिया-कर्म के लिए चावल और सिलें​डर भेजा गया।

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नियमित दाल—सब्जी नहीं थी नसीब: सीता देवी के बेटे ने बताया कि उनके घर में कभी भी दाल या सब्जी नियमित रूप से नसीब नहीं होती थी। बहुत मुश्किल से बेटा कुछ कमाता था तो सीता देवी को कभी-कभार 200-300 रु देकर जाता था। बेटे के अनुसार गाँव में रोज़गार की कमी में वो ससुराल में रहने लगा था। लम्बे समय से घर में पर्याप्त भोजन मिलना एक समस्या था। कभी पड़ोसी खाना दे देते थे। परिवार के पास दाल, चीनी, नमक, तेल और सब्जी के लिए पैसे नहीं होते थे।

नहीं मिलता था विधवा पेंशन: सीता देवी को विधवा पेंशन नहीं मिलता था। हालाँकि उनके पति की मृत्यु कई साल पहले हो गई थी। वजह यह थी कि सीता देवी का बैंक खाता नहीं खुला था। अंचल पदाधिकारी के अनुसार मशीन में उनकी उंगली के निशान काम नहीं करने के कारण उनका बैंक खाता नहीं खुल पाया। सीता देवी के राशन कार्ड की संख्या 202004128417 बताई गई है, लेकिन इसी पुष्टि नहीं हो सकी है। ऑनलाइन वितरण सूची के अनुसार उन्हें अगस्त और अक्टूबर में राशन नहीं मिला था।

भूख से हो चुकी थीं बेहद कमजोर, लेकिन नहीं मिली स्वास्थ्य सुविधा: सीता देवी भूखी इसलिए रह गयीं क्योंकि घर में राशन नहीं था। शरीर कमजोर हो चुका था। पानी तक बाहर से ढो कर लाने की ताकत नहीं थी। पड़ोसियों के अनुसार 8 दिनों से वे कमज़ोरी की हालत में पड़ी थीं। पानी और खाने के लिए चिल्लाती-चीखती रहती थी। जिसे कुछ हमदर्दी होती थी। वह कुछ खाना पहुंचा देता था। सीता देवी वर्षों से पौष्टिक आहार और पर्याप्त भोजन से वंचित थीं। पड़ोसियों द्वारा 1-2 दिन भोजन देने से वे स्वस्थ नहीं हो सकती थी। पड़ोसियों के अनुसार वे शारीरिक रूप से काफी कमज़ोर हो गयी थीं। न पेंशन मिलता था और न ही आखिरी महीनों में राशन। इन्हें स्वास्थ्य सुविधा भी नहीं मिलती था क्योंकि स्वास्थ्य केंद्र अधिकांश बंद रहता था।

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सीता देवी के मामले की जांच करने वाले ​दल का कहना है कि हालात का आकलन करने से यह स्पष्ट होता है कि इनकी मृत्यु भूख से हुई थी। गांव के अनेक हाशिये पर रहने वाले परिवार व व्यक्ति राशन कार्ड और सामाजिक सुरक्षा पेंशन से वंचित हैं। इस पूरी फैक्ट फाइंडिंग में धूल झोंकने के लिए प्रशासन ने SDO के ड्राईवर संतोष तिवारी और एक महिला प्रतिमा तिर्की को ग्रामीणों को भटकाने के लिए लगा दिया था।

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