8 पूर्व सेनाध्यक्ष समेत 150 से ज्यादा पूर्व सैनिकों ने लिखा राष्ट्रपति को पत्र कहा— बंद करो सेना का घटिया राजनीतिकरण

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“मोदी जी की सेना” पर सैन्य अफसरों ने जताई नाराजगी, राष्ट्रपति भवन ने किया ऐसे किसी पत्र से इनकार


नई दिल्ली।
लोकसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग पूरी हो गई है और इस दौरान राजनेताओं ने एक दूसरे पर आरोप—प्रत्यारोप में कोई कसर नहीं छोड़ी है। इसी दौरान देश की सेना को मोदी जी की सेना बताए जाने पर सैकड़ों पूर्व सैनिकों समेत कई सेनाध्यक्ष खासे खफा हैं और उन्होंने अपनी नाराजगी देश के राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद के समक्ष जाहिर करते हुए उन्हें कथित तौर पर एक पत्र लिखा है। इस कथित पत्र में भारतीय सेना के घटिया राजनीतिकरण को बंद करने की मांग करते हुए सेना के पूर्व अधिकारियों ने कहा है कि चुनावी लाभ के लिए सेना का इस्तेमाल ग़लत है और चुनाव आयोग के निर्देश के बावजूद भी इस पर अमल नहीं किया जा रहा। गौरतलब है कि भारतीय जनता पार्टी के नेताओं और खुद प्रधानमंत्री मोदी ने भी चुनावी रैलियों में सेना के शौर्य का इस्तेमाल भाजपा के पक्ष में किया है। हालांकि राष्ट्रपति भवन की ओर से ऐसे किसी पत्र से अनभिज्ञता जाहिर की गई है और कहा गया है कि राष्ट्रपति जी को ऐसा कोई पत्र प्राप्त नहीं हुआ है।

यह कथित पत्र कांग्रेस समर्थित कई ट्विटर एकाउंट से प्रसारित किया गया है।


राष्ट्रपति को लिखे अपने पत्र में सेना के अधिकारियों ने कहा है​ कि— सेना की छवि गैर राजनीतिक और धर्म निरपेक्ष रही है, इसी वजह से सेना पर जनता की विश्वसनीयता कायम है। सेना के जवानों को राजनीति से जुड़े किसी भी मुद्दे पर अपनी राय रखने की छूट नहीं होती। लेकिन, कई अधिकारियों ने हमें बताया है कि मौजूदा हालात में सेना के राजनीतिक इस्तेमाल से उनके भीतर नाराज़गी है।

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सेना के पूर्व अधिकारियों ने कथित तौर पर लिखा है कि— सीमापार कार्रवाई का श्रेय राजनेता ले रहे हैं, जो पूरी तरह से अनुपयुक्त और अस्वीकार्य है। इसके साथ ही सेना को “मोदी जी की सेना” की संज्ञा दी जा रही है। इसके साथ ही राजनीतिक दलों के नेता सेना की पोशाक पहनकर चुनावी प्रचार कर रहे हैं। सैनिकों खासकर विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान की तस्वीरों का इस्तेमाल वोट के लिए किया जा रहा है।

पूर्व सैन्य अफसरों ने अपनी पीढ़ा जाहिर करते हुए आगे लिखा है कि— सेना के पूर्व अधिकारियों द्वारा मुख्य चुनाव आयोग को लिखे गए पत्र पर संज्ञान लिया गया है। हमें इस बात की भी खुशी है कि सैनिकों से जुड़े बयानबाजी करने वाले लोगों के ख़िलाफ़ नोटिस जारी की गई। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ख़िलाफ़ भी नोटिस जारी की गई। हालांकि हमें इस बात का दु:ख है कि नोटिस जारी होने के बाद भी इस तरह की बयानबाजी नहीं थम रही। चुनाव जैसे जैसे नजदीक आ रहा है, हमें डर है कि सैनिकों का राजनीतिक इस्तेमाल करने के मामले में बढ़ोतरी होगी।

सेना के पूर्व अधिकारियों ने आगे लिखा है कि— हमें विश्वास है कि आप इस बात से सहमत होंगे कि संवैधानिक नियमों के तहत स्थापित सैनिकों के इस तरह से राजनीतिक इस्तेमाल से सेना के मनोबल पर आघात पहुंचेगा। इससे राष्ट्रीय सुरक्षा को नुक़सान हो सकता है। इसलिए हम आपसे यह अपील करते हैं कि सेना के ग़ैर राजनीतिक और धर्मनिरपेक्ष छवि को बरकरार रखने की प्रतिबद्धता सुनिश्चित करें। इसलिए हम आपसे आग्रह करते हैं कि सेना, सेना की पोशाक या चिह्न और सेना से जुड़े किसी भी काम को राजनीतिक रंग देने वाले नेताओं के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की जाए।

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गौरतलब है कि चुनाव आयोग ने सख़्त निर्देश दिया है कि कोई भी राजनीतिक पार्टी अपने चुनावी कार्यक्रमों में सेना का इस्तेमाल वोट मांगने के लिए ना करे। इसके बावजूद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित भारतीय जनता पार्टी के तमाम नेताओं ने अपनी सभाओं में सेना के नाम पर वोट मांगा है। इससे पहले दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष मनोज तिवारी ने सेना की पोशाक पहनकर दिल्ली में चुनावी कार्यक्रम में हिस्सा लिया था। इसके साथ-साथ हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भारतीय सेना को “मोदी जी की सेना” बताया था।

इसी साल फरवरी महीने में जम्मू कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ़ जवानों के एक काफ़िले पर फिदायीन हमला हुआ था। इसमें तीन दर्जन से ज्यादा जवान शहीद हुए थे। इसके बाद वायुसेना ने कार्रवाई के तौर पर पाकिस्तान के बालाकोट में एयर स्ट्राइक की थी। वायुसेना के इस कार्रवाई के बाद से ही भारतीय जनता पार्टी इसका राजनीतिक लाभ लेने में जुट गई है।

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