मामले की जांच कर रही ईओडब्ल्यू ने अदालत में पेश किया खात्मा रिपोर्ट, अदालत से क्लीन चिट मिलने का इंतजार
भोपाल। भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाली तत्कालीन सरकार ने (RKDF College scam) पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खिलाफ आर्थिक प्रकोष्ठ विंग (EOW) में मामला दर्ज कराया था। सरकार बदलते ही सिस्टम में आए बदलाव के बाद प्रकरण में भी बदलाव आ गया। ईओडब्ल्यू जिस मामले की पहले जांच करने का दावा कर रहा था अब उसमें खात्मा लगा दिया गया है। यह खात्मा भी बेहद गुपचुप तरीके से लगाया गया है।
क्या है मामला
यह मामला (RKDF College scam) कांग्रेस शासनकाल से जुड़ा हैं। सरकार ने आरकेडीएफ कॉलेज को रियायत देने से जुड़ा मामला था। इसके लिए नियम विरूद्ध कार्रवाई की गई थी। इसी मामले में सत्य साईं इंस्टीट्यूट का भी नाम था। दोनों कॉलेजों पर समझौता शुल्क पर रियायत देने का आरोप था। प्रकरण में पूर्व मुख्यमंत्री के अलावा (RKDF College scam) दोनों निजी कॉलेजों के संचालकों के भी नाम थे। मामले की जांच 2016 में शुरू की गई थी। इस मामले में 2018 तक ईओडब्ल्यू ने जांच करने का दावा किया। लेकिन, सरकार बदलते ही एजेंसी के सुर बदल गए।
यह भी पढ़ें : टेंडर के खेल में ईओडब्ल्यू को आखिर क्यों आ रहा है पसीना
कौन थे मामले में आरोपी
इस मामले में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह (RKDF College scam) के अलावा जांच की तलवार पूर्व मंत्री राजा पटैरिया, विभागीय अफसर एवी सिंह, आर परशुराम पर भी लटकी थी। भारतीय प्रशासनिक सेवा के रिटायर्ड अफसर और सीएस रहे इन अफसरों से बयान ईओडब्ल्यू ने पहले दर्ज कर लिए थे। इस मामले में खात्मा रिपोर्ट (RKDF College scam) ईओडब्ल्यू ने अदालत में पेश कर दी है। कोर्ट के निर्णय के बाद इसमें खात्मा लगाया जाएगा।
राजनीतिक सवाल तो उठेंगे
ईओडब्ल्यू ने यह (RKDF College scam) कार्रवाई बेहद गुपचुप तरीके से की। लेकिन, मामला मीडिया में लीक होने के बाद इस मामले को लेकर राजनीतिक बयानबाजी होना लाजिमी हैं। इस बात को देखते हुए काफी गोपनीयता ईओडब्ल्यू ने बरती। इस मामले में कोई आधिकारिक प्रेस नोट भी ईओडब्ल्यू की तरफ से जारी नहीं किया गया। खात्मा लगाने के पीछे भी कोई आधिकारिक तथ्य प्रस्तुत नहीं किए गए। डीजी ईओडब्ल्यू केएन तिवारी ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि जिस वक्त यह मामला सामने आया था। उस वक्त ही वे अभ्यर्थी चले गए थे जिनको लेकर यह पूरा मामला जांच में लाया गया। सरकार को चाहिए था कि उन अभ्यर्थियों की डिग्रियां निरस्त करके रियायत शुल्क की वसूली होनी थी। अब कोई आधार दिखता नहीं है जो तथ्य के रूप में प्रमाणित किया जा सके।