प्राइवेसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट में हुआ खुलासा, 23 लोकप्रिय एप के जरिये यूजर्स का डेटा लेता है सोशल मीडिया का ये बड़ा प्लेटफार्म
नई दिल्ली। अगर आप यह समझते हैं कि आप फेसबुक के यूजर नहीं हैं तो आपकी कोई जानकारी फेसबुक के पास नहीं होगी, तो आप गलत हैं। असल में अपने यूजर्स का डेटा चुराने और उसे बेचने के आरोप से तो फेसबुक पहले ही घिरा रहा है। अब नई रिपोर्ट से पता चला है कि जो लोग फेसबुक के यूजर नहीं हैं, उनकी जानकारी भी यह बड़ी सोशल मीडिया साइट चुराती और खरीदती है।
फेसबुक पर डेटा चुराने का यह आरोप ब्रिटेन की संस्था चैरिटी प्राइवेसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट में लगाया गया है। जर्मनी में काओस कंप्यूटर कांग्रेस में प्राइवेसी इंटरनेशनल ने एक रिपोर्ट पेश की, जिसमें बताया गया कि फेसबुक उन मोबाइस यूजर्स की सूचनाओं को चुरा रहा है जो उसका इस्तेमाल तक नहीं करते हैं। फेसबुक कई लोकप्रिय एप्स के जरिए यूजर्स का डेटा चुराता है। संस्था ने इसके लिए 1 से 50 करोड़ बार इंस्टाल किए गए 34 एप की जांच की। इनमें से 23 एप यूजर्स का डेटा फेसबुक को देते हैं।
कैसे होती है यह चोरी
ज्यादातर एप बनाने वाली कंपनियां फेसबुक सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट किट (एसडीके) का प्रयोग करती हैं। जो भी एप्स एसडीके के जरिए डेवलप हुई हैं, सभी फेसबुक से जुड़े हुए हैं। यूजर जितनी बार इन एप्स का इस्तेमाल करता है उतनी बार उसका डेटा फेसबुक तक पहुंचता है।
कौन सी जानकारी पहुंचती है फेसबुक तक
आपके मोबाइल फोन में सेव किए नंबर, फोटो-वीडियो, ई-मेल्स और आप किन-किन वेबसाइट्स पर क्लिक करते हैं और कितनी देर तक देखते या देख चुके हैं इसकी जानकारी फेसबुक के पास चली जाती है। इसके अलावा किस तरह की जानकारियों को खोजते हैं, यह डाटा भी फेसबुक के पास पहुंचता है। इस मामले पर फेसबुक का कहना है कि डेटा शेयरिंग यूजर और कंपनी दोनों के लिए ही फायदेमंद है। यह एक सामान्य अभ्यास है।
ये एप देते हैं फेसबुक को डेटा
भाषा सिखाने वाल एप डुओलिंगो, ट्रैवल एंड रेस्टोरेंट एप, ट्रिप एडवाइजर, जॉब डेटाबेस इनडीड और फ्लाइट सर्च इंजन स्काई स्कैनर उन 23 एप्स में शामिल है जिनके जरिए आपका डाटा फेसबुक तक पहुंच रहा है। संस्था ने बाकी की 18 एप्स के नामों का खुलासा नहीं किया है। इन एप्स के जरिए फेसबुक को यूजर के व्यवहार की जानकारी मिल जाती है। इन जानकारियों को बेचा भी जाता है। जिसके आधार पर यूजर को किस समय कौन सा विज्ञापन दिखाया जाए इसका फैसला होता है। इस रिपोर्ट पर गूगल का कहना है कि यूजर एड पर्सनलाइजेशन को डिसेबल कर सकते हैं जिससे कि उनकी जानकारियां गुप्त रहेंगी।