पठानी संगठन पख्तून तहफ्फुज मूवमेंट पैदा कर रहा है पाकिस्तान में अस्थिरता
नई दिल्ली। हमारे आम चुनाव में पाकिस्तान का जिक्र बार बार आ रहा है। वहीं खुद पाकिस्तान के आंतरिक हालात बहुत बेहतर नहीं हैं। भारत की सर्जिकल स्ट्राइक से खौफजदा पाक पर अंतरराष्ट्रीय दबाव भी है। इसी के चलते बीते रविवार को पड़ौसी देश ने अपने देश के आतंकियों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की है। हाफिज सईद और मसूद अजहर के खिलाफ पाक प्रधानमंत्री इमरान खान की इस कार्रवाई से हालात और बिगड़ रहे हैं। असल में पाकिस्तान की नई मुश्किल उसका पश्चिमी—उत्तरी इलाका है।
इस पठान बहुल इलाके में विद्रोह के स्वर उठ रहे हैं। इस इलाके के बाशिंदे इस बात से खफा हैं कि पश्चिमी—उत्तरी इलाकों को जब तब फौजी बूटों का डांसिंग हाल बना दिया जाता है, लेकिन दक्षिणी पाकिस्तान की समृद्धि और पूर्वी हिस्से के राजनीतिक वर्चस्व के आगे यह फीका ही रहता है। आम अवाम इसके लिए जिहादी, पाकिस्तानी सेना, हुक्मरान और अंतरराष्ट्रीय ताकतों को समान रूप से जिम्मेदार मानते हैं। हालात यहां तक बिगड़ चुके हैं कि पाकिस्तान एक बार फिर दो फाड़ होने के कगार पर है। 1971 में भारत से युद्ध के दौरान अपना पूर्वी इलाका खो चुके पाकिस्तान के लिए मुश्किलें इसलिए भी बड़ी हैं कि फिलहाल अंतरराष्ट्रीय समुदाय में उसके दोस्तों की संख्या तेजी से कम हो रही है।
असल में यह इलाका दशकों से मैदान ए जंग की शक्ल अख्तियार किए हुए है। बीते दो साल में पख्तून तहफ्फुज मूवमेंट (पीटीएम) ने अवाम के गुस्से को भुनाते हुए अपनी पैठ इस इलाके में मजबूत की है। हजारों की संख्या में रैलियों के माध्यम से यहां इस्लामाबाद के खिलाफ नारेबाजी की जाती है। इन रैलियों में युद्ध की आलोचना होती है। खास बात यह है कि पाकिस्तान के इस पख्तून इलाके को अफगानिस्तान के पख्तूनी हिस्से का भी समर्थन हासिल है।
क्या है पख्तून मामला
1947 में हिन्दुस्तान के विभाजन के साथ दुनिया के नक्शे पर आए पाकिस्तान में उसके जन्म के साथ ही पख्तून देश का मुद्दा सामने आ गया था। पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा के दोनों ओर बड़ी पख्तून आबादी रहती है। बीते 70 साल से पाकिस्तान इस पख्तून बहुल इलाके के अलग देश के विचार को खारिज करता रहा है। विशेषज्ञ कहते हैं कि पाकिस्तानी हुक्मरान इस इलाके में इस्लामी शासन पद्धति को अपनाकर “पख्तून देश” की मांग को कमजोर करना चाहते हैं। अलग पख्तून देश के आंदोलन का नेतृत्व फिलहाल उदारवादी और धर्मनिरपेक्ष नेता कर रहे हैं जो इस्लामीकरण के विरोधी हैं।
पाक ने लगाया था भारत—अफगानिस्तान पर आरोप
पाकिस्तान मानता है कि पीटीएम का जो आंदोलन पख्तून इलाके में चल रहा है उसे भारतीय मदद हासिल है। कुछ दिन पहले पाक के सेना के प्रवक्ता मेजर जनरल आसिफ गफूर ने आरोप लगाया कि पीटीएम देश विरोधी कार्य कर रहा है और उसे भारत और अफगानिस्तान की खुफिया एजेंसियां ऐसा करने के लिए आर्थिक और रणनीतिक मदद पहुंचा रही हैं। उधर, अफगानिस्तान इन आरोपों पर कई बार कह चुका है कि वह पीटीएम की मांगों को नैतिक आधार पर समर्थन देता है। भारत ने भी इलाके में मची हिंसा के खिलाफ कई मौकों पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकृष्ट कराया है।
सेना के खिलाफ नारेबाजी
इस पख्तून इलाके में पाक सेना के खिलाफ नारेबाजी आम बात है। इसके लिए समय समय पर सेना की ओर से कदम उठाए जाते हैं। हाल ही में पीटीएम के नेताओं और पाक सांसद अली वजीर समेत करीब 13 लोगों के खिलाफ इस मामले में मामला दर्ज किया गया। इन सभी पर राष्ट्र और सेना के खिलाफ नारेबाजी के आरोप हैं। यह देशद्रोह का मामला है। पुलिस रिपोर्ट में कहा गया है कि पीटीएम के वक्ताओं ने रैली के दौरान अवाम को सेना के खिलाफ भड़काने की कोशिश की और देश की सुरक्षा को कमजोर करने की कोशिश की।
क्या चाहते हैं पीटीएम से जुड़े लोग
पख्तून तहफ्फुज मूवमेंट पीटीएम से जुड़े लोग खुलकर विभिन्न सोशल प्लेटफार्म और मीडिया में अपनी बात कह रहे हैं और वे चाहते हैं कि आतंकवाद के खिलाफ अमेरिका प्रायोजित कथित युद्ध बंद किया जाए। पीटीएम का कहना है कि इस आतंक विरोधी अभियान के नाम पर पख्तूनों का अपहरण किया जा रहा है और उनकी हत्याएं की जा रही हैं। इस मांग से पख्तून के हजारों लोग जुड़े हुए हैं। पीटीएम के समर्थक इस पठान बहुल इलाके की गरीबी, बेराजगारी, आवास और अन्य सुविधाओं की कमी के लिए पाकिस्तानी सेना, इस्लामी कट्टरपंथियों समेत अंतरराष्ट्रीय राजनीति को जिम्मेदार मानते हैं।
अफगानिस्तान भी है पाकिस्तान के खिलाफ
इस इलाके में अफगानिस्तान की रुचि भी है। असल में यह इलाका सीधे तौर पर अफगानिस्तान से जुड़ा हुआ है। अफगानिस्तान वाले पख्तूनी इलाके पर अभी भी अफगान और पाकिस्तान के तालिबान का कब्जा है। अमेरिका और अफगानिस्तान की सरकार मानते हैं कि इन तालिबान को पाकिस्तानी सेना और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई से समर्थन मिल रहा है। आम तौर पर अफगानिस्तान पाक की अंदरूनी राजनीति पर टिप्पणी नहीं करता है, लेकिन अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी पीटीएम की गतिविधियों को ट्वीट किया है। वे उम्मीद जताते हैं कि इस इलाके को जल्द आतंकवाद से मुक्ति मिलेगी।
क्या पख्तून देश की मांग पर एक होंगे पाक और अफगानी पख्तून
पीटीएम के मौजूदा आंदोलन के लिए जरूरी है कि उन्हें पाक और अफगान दोनों ओर के पख्तूनों का समर्थन हासिल हो। पाक सरकार मानती है कि इन्हें एकजुट करना पीटीएम के मुख्य उद्देश्य में शामिल है। हालांकि पीटीएम इसे स्वीकार नहीं करती। वह इलाके में शांति को अपना मुख्य लक्ष्य बताती है। दूसरी ओर पीटीएम अफगानिस्तान में रह रहे पख्तूनियों को अपने आंदोलन से जोड़ने की कोशिश भी तेज कर चुकी है। तालिबान के केंद्र रहे कंधार में पीटीएम ने कई रैलियां की हैं। साथ ही जलालाबाद और काबुल में भी पीटीएम का अच्छा खासा आधार है।
पाकिस्तानी सेना क्या चाहती है
विशेषज्ञ मानते है। कि पीटीएम का आंदोलन पूरी तरह से शांतिपूर्ण है, लेकिन इनके खिलाफ कार्रवाई करके असल में पाकिस्तानी सेना अपने उन अपराधों और कारगुजारियों पर पर्दा डालना चाहती है, जो उसने आतंक के खिलाफ युद्ध के नाम पर इलाके में किए हैं।
दो तरफा मार झेल रहा यह इलाका
अफगानिस्तान की सीमा से लगे इस पाकिस्तानी इलाके में खून खराबा और हिंसा, सैन्य कार्रवाई आदि रोजमर्रा की बात है। इसकी एक वजह तालिबानी जेहादियों की कार्रवाई है, तो दूसरी ओर उन्हें रोकने के लिए किए जा रहे पाकिस्तानी सेना की कार्रवाइयां हैं।
पलायन को मजबूर हैं लोग
इस इलाके में लगातार हो रही हिंसा से परेशान लाोग इलाका छोड़ रहे हैं। कई परिवारों के कमाने वाले शख्स की मौत हो चुकी हैं, तो कई को पाकिस्तानी सेना ने या तो कैद कर लिया है, या फिर उनकी हत्या कर दी है। ऐसे में यतीम बच्चे और विधवाओं की संख्या भी बढ़ती जा रही है। इलाके में बुजुर्गों की तादाद ज्यादा है, जिसके आर्थिक असर भी बढ़ते जा रहे हैं। कारोबार के नाम पर यहां लघु उद्योग की तरह बंदूक बनाने का काम चल रहा है। यहां कारीगर अपने हाथों से बंदूकों बनाते हैं और उन्हें जेहादी लड़ाकों को बेचते हैं। बंदूक और पिस्तौल बनाने का काम यहां कई दशक से चल रहा है। बंदूक बनाने का यह काम एक से दूसरे तक पहुंच रहा है और बंदूक कारीगरों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है।
पीटीएम के खिलाफ पाकिस्तानी सेना के आरोप बेबुनियाद हैं। पाक सेना हम पर दबाव डालना चाहती है। ताकि हम अपनी मांग छोड़ दें। हम सरकार से बातचीत करने के लिए तैयार हैं। हम पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता के आरोपों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई पर विचार कर रहे हैं।
मंजूर पश्तीन, संस्थापक, पख्तून तहफ्फुज मूवमेंटपाकिस्तान के उत्तर पश्चिमी इलाके में आतंकवाद के विरोध में पाक सेना ने युद्ध छेड़ा है। इसमें हमारे कई सैनिक शहीद हुए हैं। पख्तून तहफ्फुज मूवमेंट के लोग इन सैनिकों की शहादत का सम्मान नहीं कर रहे हैं। उन्हें इसकी सजा भुगतनी ही पड़ेगी।
मेजर जनरल आसिफ गफूर, प्रवक्ता, पाकिस्तानी सेना