मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने का मामला: न मोदी सरकार, न अजीत डोभाल, सैयद अकबरूद्दीन ने नाकामयाब की चीन की चाल
नई दिल्ली। मंगलवार को देर रात इस बात पर संदेह छाए हुए थे कि आतंकी मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र की आतंकी सूची में शामिल किया जाएगा या नहीं! ज्यादातर जानकार मान रहे थे कि चीन अपनी चालों के जरिये एक बार फिर मसूद अजहर को बचा लेगा, जैसा कि वह चार बार पहले करता रहा है, लेकिन इस बार यह न हो सका और इस बात को सुनिश्चित किया एक इंसान ने। वह हैं संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत सैयद अकबरुद्दीन।
पांचवीं बार में कैसे मिली सफलता
1986 बैच के आईएएस अकबरुद्दीन ने विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता के अपने कार्यकाल में खासी सुर्खियां पाई थीं। उन्हें मौजूदा समय में भारत के उन गिने चुने अफसरों में शुमार किया जाता है, जिनकी समझ अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में बेहद धारदार है। दिक्कत यह थी कि पिछले चार प्रस्तावों के दौरान भारत के विदेश मंत्रालय और एनआईए चीफ अजीत डोभाल के पास चीन को मनाने की सीधी कमान थी और अकबरउद्दीन को इससे दूर रखा गया था।
पिछले चार प्रस्ताव कब आए
2009 में मसूद पर प्रतिबंध लगाने के लिए यूपीए सरकार ने प्रस्ताव पेश किया। उस समय प्रस्ताव पेश करने वाला भारत अकेला देश था। सफलता नहीं मिली।
2016 जनवरी में पठानकोट एयरबेस पर हुए आतंकवादी हमले के बाद एनडीए सरकार ने अपनी कोशिश शुरू की। मसूद को वैश्विक आतंकवादी घोषित कराने के लिए भारत ने अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस के सहयोग से संयुक्त राष्ट्र की समिति के समक्ष प्रस्ताव पेश किया। चीन ने अपना तकनीकी वीटो लगा दिया।
2017 में एक बार फिर अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र की समिति के समक्ष प्रस्ताव पेश किया लेकिन चीन ने अपना अड़ंगा लगा दिया। अमेरिका के इस प्रस्ताव का समर्थन ब्रिटेन, फ्रांस और रूस ने किया था। इस बार कमान पीएमओ के हाथ में थी और चीनी राष्ट्रपति की भारत यात्रा के मद्देनजर माना जा रहा था कि चीन मान जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
मार्च 2019 में जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में 14 फरवरी को सीआरपीएफ के काफिले पर हुए हमले के बाद अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस की तरफ से संयुक्त राष्ट्र की 1267 अल कायदा प्रतिबंध समिति के समक्ष नया प्रस्ताव लाया गया। इस बार चीन को मनाने की कमान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के हाथों में थी, लेकिन चीन ने इस प्रस्ताव पर तकनीकी पहलू का हवाला देकर वीटो कर दिया।
इस बार सफलता के सूत्रधार रहे अकबरुद्दीन
भारत को बुधवार को अपने पांचवें प्रयास में आतंकवाद के मोर्चे पर सबसे बड़ी सफलता मिली। संयुक्त राष्ट्र ने पाकिस्तानी आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित किया। इस पूरे अभियान की कमान अकबरुद्दीन के हाथों में थी। सूत्रों के मुताबिक, उन्होंने अपने चीनी समकक्षों के से तीन बड़ी बैठकें की और मई के बाद चीनी प्रमुख के भारतीय दौरे पर कई अहम प्रस्तावों पर चर्चा की तैयारी भी की।
कौन हैं सैयद अकबरुद्दीन
फिलहाल अकबरुद्दीन संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत हैं। वह संयुक्त राष्ट्र संघ में जनवरी 2016 से भारत के स्थाई प्रतिनिधि हैं। सैयद अकबरुद्दीन के पिता का नाम सैयद बशीरुद्दीन है। 1986 बैज के प्रशासनिक सेवा अधिकारी सैयद अकबरुद्दीन साल 2004 से 2005 के बीच विदेश सचिव भी रहे। वह वियतनाम में इंटरनेशनल ऑटोमिक एनर्जी एजेंसी में चार साल तक डेप्यूटेशन पर रहे और 2011 में भारत लौटे। जिद्दा में साल 2000 से 2004 के बीच कौंसल जनरल भी रहे।
तीन साल तक रहे विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता
अपने सेवाकाल में 2011 में भारत लौटने के बाद सैयद अकबरुद्दीन साल 2012-2015 के बीच विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रहे। इस दौरान उन्होंने कई अहम मुद्दों पर कूटनीतिक सफलता हासिल की। भारत सरकार को कई मौकों पर मुश्किल हालात से बचाया। अकबरुद्दीन अक्टूबर 2015 में हुई भारत-अफ्रीका समिट के कॉर्डिनेटर रहे हैं। अप्रैल 2015 से सितंबर 2015 के बीच सैयद अकबरुद्दीन विदेश मंत्रालय में एडिशनल सेक्रेटरी भी रहे। इसके बाद उन्हें संयुक्त राष्ट्र में भारत का स्थाई प्रतिनिधि नियुक्त किया गया।