भोपाल शहर के एक अफसर की पार्टियां चर्चा का विषय बनी है। दरअसल, साहब ने एक ठिकाने पर पार्टी की थी। इस पार्टी में केवल खाने का बिल ही 12 हजार रुपए पहुंच गया। अफसर हाथ धोकर चले गए लेकिन, बिल का ठीकरा संबंधित थाने के प्रभारी पर फूट गया। प्रभारी अब कुछ बोल नहीं पा रहे हैं। बात खाने के बिल तक नहीं रुकी। जब प्रभारी ने बिल की बताई तो एक विंग के अफसर ने मोबाइल गिफ्ट की कहानी बताई। वह मोबाइल खाने के बिल से चार गुना ज्यादा था। हालांकि यह दोनों अफसर अपनी—अपनी पीड़ा बताकर एक—दूसरे से कम पर कटने का कहकर काम चला ले रहे हैं।
कप्तान के आदेश को ठेंगा
पूरे प्रदेश में राजधानी की पुलिस को आदर्श माना जाता है। इसलिए जो भी प्रयोग यहां होते हैं उसे कई जिले अपनाते हैं। वह चाहे यातायात का हो या फिर प्रशिक्षण सबकी नीति और उसके क्रियान्वयन यहां से ही शुरु होते हैं। इस कारण यहां होने वाले प्रयोगों पर नजर होती ही हैं। लेकिन, पिछले दिनों से शहर के कप्तान रिफ्रेशर कोर्स के लिए अभियान चलाए हुए हैं। हालांकि यह मैदान में कितना कामयाब हुआ वह बताता है कि शहर में काम और जुगाड़ वाले अफसरों और कर्मचारियों का जमावड़ा हो चुका है। कप्तान एक-दो बार नहीं कई बार वायरलेस पर अपना पैगाम सुना चुके हैं। पर उस पैग़ाम को कोई गंभीरता से ले ही नहीं रहा। कई कर्मचारियों और अफसरों ने कप्तान के सामने नंबर बढ़ाने के लिए नाम लिखा दिये। फिर जब कोर्स में जाने की बारी आई तो दूसरे अफसरों का खास बताकर कोर्स से किनारा कर लिया। कप्तान को इस बात की खबरें हैं कि नहीं वे ही बता सकते हैं। पर दोनों ही दशाओं में यह साफ हो गया कि मैदानी कर्मचारियों के सामने पूछ और परख दूसरे की हो रही है।
जैसे दिन बीते “उतरा” सोने का “रंग”
भोपाल के एक थाने के पिछले दिनों बदमाश को पकड़ा गया। उसको पकड़ने के बाद थाने की पुलिस ने आस-पास जिलों में जाकर कई सुनारों से भी मुलाकात की। फिर दर्जनों कबाड़ी से मुलाकात भी कराई गई। यह सारी कवायद में कई दिन बीत गए। इस काम के लिए थाना स्टाफ ने बड़ा संघर्ष भी किया। लेकिन, संघर्ष का रंग ही कुछ दिन बाद उतर गया। सोने के रंग से अचानक वह छुरी में बदल गया। फिर तो आपको मालूम ही होगा वैसा ही लिखा गया। धारदार, इतने फलक, लंबा और नुकीला जैसे तमाम शब्दों के साथ एफआईआर लिखी गई और उसको जेल पहुंचा दिया गया। प्रभारी को लगा हम तो देहात में बैठे हैं, मामला शहर तक उनकी मर्जी से ही जायेगा। जैसा सोचा नहीं उससे कहीं ज्यादा जल्दी और पूरे विस्तार के साथ पूरी कहानी फैल गई। हालत यहां तक बन गए कि अफसरों के गले में जाकर वह अटक गया। फिर सोशल मीडिया में कहानी को विराम दिलाकर मामले को दबाने पर सहमति बन गई।