संवैधानिक संकट से लेकर नियम—कानून के साथ समझिए मध्य प्रदेश की पूरी कहानी, कौन कमजोर और कहां बने किस पार्टी के कद्दावर नेता, दोनों ही दलों में दूसरी पंक्ति के नेता की तलाश
भोपाल। (Bhopal Hindi Political News) मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh Hindi News) में मुख्यमंत्री कमल नाथ (CM Kamal Nath) की सरकार पर सस्पेंस बरकरार है। इस सस्पेंस (Madhya Pradesh Political Drama) पर पूरे भारत देश की निगाहें टिकी हुई हैं। दोनों ही पार्टियों भाजपा—कांग्रेस के लिए मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh Political Crisis) का किला बचाना नाक का सवाल है। दोनों पार्टियां कमजोर नहीं हैं। इसलिए रहस्य और रोमांच जनता के बीच बना हुआ है। इधर, भाजपा की तरफ से बाउंसर फेंका जाता है तो उधर कांग्रेस (Congress Party) का हुक शॉट दूसरे खेमे में हलचल पैदा कर देता है। दोनों दलों के बीच यह शह—मात का सिलसिला 1 मार्च से शुरु हुआ है। लगभग 11 दिन बीत गए हैं। लेकिन, न सरकार गिरी और न सरकार बनी। इस बात से यह पुख्ता है कि दोनों दलों के बीच मध्य प्रदेश में बड़ा उलटफेर करना इतना आसान नहीं हैं। इसलिए बड़े—बड़े रणनीतिकार फ्रंट पर आकर बल्लेबाजी करने की बजाय बैकफुट में लूज गेंद का इंतजार कर रहे हैं। क्या है यह लूज गेंद और कहां हो सकता है संकट इन तमाम बिंदुओं को समझना आवश्यक हैं। मुख्यमंत्री कमल नाथ (Chief Minister Kamal Nath) के पास वह बटन है जिसके दबाने का इंतजार उनके विरोधी दल के बड़े—बड़े नेता इंतजार कर रहे हैं। इस राजनीतिक उठापटक में कई बड़े नेता शहीद होंगे तो कई उभरते हुए चेहरे सामने आएंगे।
जानिए सरकार का सस्पेंस क्यों बना है
भारतीय जनता पार्टी ने इस बार सरकार गिराने के लिए कर्नाटक फॉर्मूले से सीख लेकर नया पैंतरा चला। भाजपा की तरफ से कांग्रेस विधायकों के इस्तीफे विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति के पास पहुंचाने की बजाय मध्य प्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन के पास पहुंचाए गए। लेकिन, राजभवन ने अपना अधिकार क्षेत्र न बताकर उसको विधानसभा अध्यक्ष के पास पहुंचा दिया। तमाम राजनीतिक घटनाक्रम के बीच कांग्रेस विधायकों की एक साथ बैंगलुरु की होटल वाली तस्वीरें जमकर वायरल की गई। लेकिन, इस्तीफे वायरल नहीं हुए। इधर, विधानसभा सचिवालय के साथ राजभवन की चुप्पी इस राजनीतिक घमासान में कुछ बड़े बवंडर का भीतर ही भीतर चल रही तैयारियों की तरफ साफ इशारा कर रही है। राज्यपाल लालजी टंडन की छुट्टी निरस्त करने की खबरें भी सामने आई। लेकिन, राज्यपाल अब तक इस पूरे खेल में न सामने आए और न कुछ बोला गया। मतलब साफ है कि राजभवन को भी उस तकनीकी बिंदु की भनक हैं। जिसमें वह सीधे पार्टी बनने की बजाय चुपचाप बैठकर उठापटक देख रहा है। दोनों ही दल संख्या बताकर या तस्वीरें दिखाकर मीडिया में इंटरव्यू दे, असली परीक्षा विधानसभा सदन के भीतर ही होनी है। यह विधानसभा 16 मार्च से शुरु होने जा रही है। मतलब साफ है कि जो भी हमले और आखिरी दांव—पेंच सामने आएंगे वह 16 तारीख के बाद सामने आएंगे। उससे पहले दोनों दल अपने विधायकों की किलेबंदी करने में जुटी हुई है। सूत्रों ने बताया कि विधानसभा सचिवालय और राजभवन सारे नियम—कानूनी मानकों के साथ तैयारियां कर रहा है। उधर, मामला हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जाने के आसार हैं। इसके लिए भी दोनों दल की तरफ से कानूनी जानकारों को तैयार रहने के आदेश दे दिए गए हैं।
जानिए कांग्रेस की कलह
पूर्व मंत्री और सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया का कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा सबको पता है। लेकिन, यह नाराजगी आज की नहीं थी। वह इशारों ही इशारों में करीब छह महीने से अपनी इच्छा पार्टी को जता चुके थे। लेकिन, पार्टी वह चाहे केंद्र की हो या फिर राज्य की उसे हल्के में लेती रही। अब पार्टी राज्यसभा सीट और मंत्री पद का लालच देकर अपनी लापरवाही पर जवाब देने से बचने का बेहतरीन फॉर्मूला समझकर उसको बना रही है। दरअसल, मध्य प्रदेश में कांग्रेस पार्टी में कई खेमे हैं। उसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया मुखर होकर सामने आ गए। लेकिन, अभी भी राहुल सिंह, अरुण यादव, रामनिवास रावत, सुरेश पचौरी, मुकेश नायक समेत कई बड़े नेता खामोश बैठे है। यह सारे नेता को यह बोलकर चुप करा दिया जाता है कि वे चुनाव हार चुके हैं। इसलिए यह नेता भी कहीं न कहीं वर्तमान सरकार से बहुत ज्यादा संतुष्ट नहीं हैं। पूरे खेमेबाजी में कमल नाथ और दिग्विजय सिंह की भूमिका ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। इधर, पार्टी के कार्यकर्ता संगठन के साथ तालमेल न बनाए जाने से खफा चल रहा है। इसलिए मध्यावधि चुनाव में जाना कांग्रेस के लिए भस्मासुर के समान ही होगा। पार्टी चाहती है कि इस संकट के काल को कुछ समय के लिए टाला जाए। सूत्रों की माने तो इस मिशन में अब तक मुख्यमंत्री कमल नाथ कामयाब हुए हैं। इस कामयाबी के ताज के लिए कई नेता ऐड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। इस जोर—आजमाइश को नंबर गेम भी बताया जा रहा है। सीएम हाउस में बज रही घंटियों के बाद मुख्यमंत्री कमल नाथ कई चौंका देने वाले स्क्रीप्ट की ड्राफ्टिंग कर रहे हैं।
भाजपा का भीतरघात का भय
जितना आसान सरकार गिराना दिख रहा हैं उतना है नहीं। यह बात भारतीय जनता पार्टी का केन्द्रीय नेतृत्व भी जानता है। इसलिए पूरी कवायद के लिए भाजपा प्रदेश अध्यक्ष जेपी नड्डा को अधिकार सौंपे गए हैं। यह अधिकार राज्यसभा सीट के लिए नाम सार्वजनिक करने को लेकर भी है। एक सीट के लिए कांग्रेस से बगावत करके भाजपा में शामिल हो रहे नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए हैं। हालांकि उस सीट पर नाम सार्वजनिक अब तक केंद्रीय नेतृत्व ने नहीं किया। मतलब दिल्ली में भी धुंध की कई परतें अभी जमी हुई है। हालांकि लंबी कवायद के बीच ज्योतिरादित्य सिंधिया बुधवार दोपहर लगभग 3 बजे दिल्ली भाजपा मुख्यालय पहुंच गए। भोपाल में 12 मार्च को उनका शक्ति प्रदर्शन हैं। यानि साफ है कि वे लगभग अपने डेढ़ दर्जन विधायकों के साथ भाजपा में शामिल होने जा रहे हैं। यदि ऐसा हुआ तो कांग्रेस के विधायक जो भाजपा में शामिल हो रहे हैं उन्हें भी कुर्सी दिया जाना तय हुआ होगा। ऐसे में उस क्षेत्र के भाजपा के पुराने नेता या क्षत्रप के रसूख पर भी असर पड़ेगा। जिसका फायदा कांग्रेस उठा सकती है। उस भीतरघात को रोकने की रणनीति के तहत ही भाजपा ने भी अपने विधायकों मध्य प्रदेश से रवाना कर दिया। खबर हैं कि भाजपा के दो विधायक शरद कौल और नारायण त्रिपाठी मुख्यमंत्री कमल नाथ की तारीफ पहले ही कर चुके हैं।
इधर, भाजपा की तरफ से ज्योतिरादित्य सिंधिया को राज्य सभा पहुंचाने से क्षत्रप खफा होने के संकेत हैं। मध्य प्रदेश से राज्य सभा सीट के लिए कैलाश विजयवर्गीय, प्रभात झा, बृजेश लुणावत का नाम तय किया गया था। केंद्र की तरफ से राम माधव, सत्यनारायण जटिया, विनोद गोटिया के अलावा सिंधिया का नाम है। ऐसे में भाजपा के बड़े नेता इस फैसले से भीतर ही भीतर खफा चल रहे हैं। जिन्हें मनाने की जिम्मेदारी केंद्रीय नेतृत्व ने संभाल ली है। उधर, केंद्रीय नेतृत्व एनडीए गठबंधन के माध्यम से चल रहा है। ऐसे में सिंधिया को मंत्री बनाने का फैसला केवल भाजपा नहीं ले सकती। यह भविष्य में पता चलेगा कि सिंधिया को कुर्सी देने में कौन सी पार्टी क्या प्रतिक्रिया देती है।
इन नेताओं की साख दांव पर
मध्य प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में दोबारा सरकार बनेगी। यह सवाल हर कोई पूछ रहा है। लेकिन, जो घमासान मचा हुआ है उसमें नरोत्तम मिश्रा काफी सक्रिय हैं। इसके अलावा पूर्व मंत्री विश्वास सारंग, भूपेन्द्र सिंह समेत अन्य भाजपा नेता शामिल हैं। शिवराज ने अपने दो कार्यकाल स्पष्ट बहुमत के साथ पारी चलाई है। लेकिन, यदि सरकार बनती है तो हालात कमल नाथ जैसी ही उनके सामने बन सकती है। मतलब साफ है कि मध्य प्रदेश में जो आसान दिख रहा है वह है नहीं। इसलिए सब दूर ही दूर से खेमेबाजी कर रहे हैं। हालांकि मध्य प्रदेश का राजनीतिक चेहरा अगले बुधवार तक साफ हो जाएगा। सरकार का सस्पेंस रहेगी या नहीं यह सार्वजनिक हो जाएगा।
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