आपसी झगड़ों से जूझते ट्रांसजेंडर्स ने पकड़ी आध्यात्म की राह, क्या समाज भी बदलेगा निगाह ?

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Third transgenderदेश में ट्रांसजेंडर (Third transgender) को सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में मान्यता दी है। इसके तहत उन्हें सभी सरकारी सुविधाओं जैसे शिक्षा, चिकित्सा, नौकरी समेत दूसरे क्षेत्रों में लाभ मिलेगा। इसके अलावा ट्रांसजेंडरों के लिए हिन्दू अखाड़े में भी जगह मिलने लगी है। राजनीति के क्षेत्र में भी ट्रांसजेंडर उतर चुके हैं। लेकिन, उन्हें वह सम्मान आज भी नहीं मिला। कई जगहों से हिंसा की खबरें भी आने लगी हैं। यह हिंसा उनके हिस्से में आए सामाजिक काम के चलते बन रही है। सामाजिक काम का तात्पर्य यह है कि यह समुदाय शादी और बच्चों के जन्म या फिर होली-दीवाली त्यौहारों में चंदा मांगकर अपना जीवन चलाता हैं। इस समस्या को लेकर कोई ठोस नीति सरकार नहीं बना पा रही है। हाल ही में उत्तर प्रदेश के मेरठ, मध्यप्रदेश के जबलपुर और भोपाल के कई थानों में इसी हिंसा को लेकर मामले दर्ज हुए हैं।

हमारे सामाजिक ताने-बाने में ट्रांसजेंडर को हमेशा से हंसी का विषय मानकर उनका उपहास ही उड़ाया गया है। हालांकि सरकारें इन समुदाय को लेकर मंथन कर रही हैं। इसके तहत 2018 में भोपाल नगर निगम ने (Third transgender) थर्ड जेंडर के लिए सुलभ शौचालय बनाया गया। यह उनके मंगलवारा इलाके की बस्ती के नजदीक ही बनाया गया। यह प्रदेश का पहला और देश का दूसरा है। सबसे पहले इस (Third transgender) समुदाय को लेकर बंगाल में ममता बनर्जी ने शौचालय बनाया था। इन्हीं प्रयासों के बीच थर्ड जेंडर के लिए आश्चर्य में डाल देने वाला समाचार सुनाई दिया। यह समाचार धार से आया। यहां एक धार्मिक आयोजन में थर्ड ट्रांसजेंडर समुदाय के लोग पहुंचे। आयोजन गायत्री शक्तिपीठ की तरफ से किया गया था। कार्यक्रम मध्यप्रदेश के धार जिले के पास धामनोद के नजदीक खलघाट में हुआ। आयोजन की प्रमुख विनीता मालवीय ने बताया कि इस दौरान इस समुदाय ने अपने अनुभव साझा भी किए। यहां कार्यक्रम में उन्होंने गायत्री मंत्र का उच्चारण करने के अलावा पुस्तक भी लिखी। इसमें गायत्री मंत्र लिखा गया। इससे पहले विनीता मालवीय इसी तरह की चुनौतियों को लेकर काम कर चुकी हैं। उन्होंने भोपाल जेल में भी बंदियों से गायत्री मंत्र लिखवाया था।

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जहां समुदाय के नाम पर ही विवाद
अंग्रेजी भाषा में (Third transgender) थर्ड ट्रांसजेंडर, हिन्दी में हिजड़ा और अब इन्हें किन्नर भी कहा जाने लगा है। हिजड़ा या फिर हिजड़े शब्द पर इस समुदाय को आपत्ति हैं। इसलिए वे अपने आपको किन्नर कहलाना ज्यादा मुफीद (Third transgender) समझते हैं। लेकिन, इस शब्द को लेकर हिमाचल प्रदेश के नागरिकों को आपत्ति हैं। दरअसल, हिमाचल प्रदेश का एक जिला है जिसका नाम किन्नोर हैं। यह पहले किन्नर देश के नाम से जाना जाता था। हिमाचली संस्कृति को लिखने वाले लेखक एसआर हरनोट की एक कहानी भी है किन्नर। इसमें किन्नर जिले के एक व्यक्ति पर पूरा घटनाक्रम लिखा गया है। उन्होंने भी अपने एक लेख में लिखा है कि हिजड़ा समुदाय को किन्नर लिखा जाना न्यायोचित नहीं हैं। इसको लेकर हिमाचल प्रदेश के लोग नाराज होते हैं। दरअसल, यह एक जनजाति है जिसे किन्नर या फिर किन्नोर कहते हैं। फिल्म निर्देशक मधुर भंडारकर की एक फिल्म थी जिसका नाम था ट्रैफिक सिग्नल, इसमें किन्नर शब्द का इस्तेमाल किया गया था। जिसके चलते यह फिल्म हिमाचल प्रदेश में रिलीज नहीं हो सकी थी।

दक्षिण भारत में ज्यादा काम
थर्ड जेंडर (Third transgender) को लेकर काफी काम करने की आवश्यकता हैं। लेकिन, यह प्रयास दक्षिण भारत में ज्यादा देखने को मिलते हैं। वहां तमिल, मलयालय समेत कई अन्य भाषाओं में फिल्म भी बन चुकी हैं। केरल के तिरूवनंतपुरम स्थित संस्कृत कॉलेज में हिन्दी विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर शबाना हबीब ने भी इस विषय पर काम किया हैं। उन्होंने द क्राइम इन्फो से बातचीत करते हुए बताया कि थर्ड जेंडर की चार शाखाएं हैं। यह बुचारा, नीलिमा ,मनसा और हँसा नाम से पुकारी जाती है। बुचारा जन्म से ही थर्ड जेंडर होता है। नीलिमा नाम उन्हें दिया जाता है जो मर्जी से बनते हैं। इसी तरह मनसा अपनी इच्छा से शामिल होने वालों को पुकारा जाता है। हंसा नाम उन्हें दिया जाता है जो शारीरिक कमी के कारण थर्ड जेंडर बनते हैं। इनके लिए (Third transgender) “किन्नर” “उभयलिंगी” और “त्रितीय लिंगी” भी कहते हैं। हिजड़ा शब्द कहने पर इस समुदाय को ऐतराज होता है क्योंकि यह उनके लिए अपशब्द जैसा प्रतीत होता है। साहित्यकार अधिकतर “त्रितीय लिंगी” कहना उचित समझता है। उन्होंने बताया कि हिंदी साहित्य में वास्तव में हिजड़ा विमर्श की शुरुवात नीरजा माधव जी के 2009 में प्रकाशित उपन्यास “यमदीप” से हुई थी। इसके बाद 2011 में लेखक प्रदीप सौरभ ने “तीसरी ताली” नाम से उपन्यास लिखा था। इन दोनों उपन्यासों में इस समुदाय को लेकर कई जानकारियां हैं।

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मौत हो जाने पर ऐसा सलूक
उन्होंने बताया कि हिजड़ों (Third transgender) के दाह संस्कार भी हिन्दू रीति रिवाज से अलग कहे जा सकते हैं। इस समुदाय में यदि किसी की मौत हो जाती है तो दूसरे आंसू नहीं बहाते हैं। दरअसल, उनका मानना है कि उसे इस जीवन से मुक्ति मिल गई। मरने वाला कोई भी समुदाय से हो लेकिन उसे दफनाया जाता है। अंतिम संस्कार आधी रात को ही शुरू होता है। डॉक्टर शबाना हबीब ने बताया कि हिजड़े के शव को रात में डंडों से मारते हैं। इसके पीछे मान्यता यह है कि मरनेवाला दुबारा तीसरी योनि में जन्म नहीं लेगा। वे शव यात्रा में शामिल नहीं होते। क्योंकि वे खुद को औरत समझते हैं, औरतों को शव यात्रा में जाने की अनुमति नहीं होती।

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