Covid—19: देश का मीडिया “कोरोना खान” बनाने में तुला

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विश्व की सबसे बड़ी महामारी को भारत में धार्मिक चौला पहनाने की साजिश, देश भर के कई राज्यों की बॉर्डर में फंसे नागरिकों की सुध लेने की फुर्सत नहीं

Covid—19
भारतीय मीडिया के लोगो

भोपाल। पूरी दुनिया को खबर है कि कोरोना वायरस (Coronavirus) चीन के वुहान (Vuhan) शहर से फैला है। इस वायरस को लेकर कई तरह के मायने निकाले जा रहे हैं। इसको कुछ जैविक हथियार की तरह देख रहे हैं तो कुछ आर्थिक तरक्की को वापस पाने का एजेंडा समझ रहे हैं। मतलब साफ है कि जो जहां है वह वहां के भौगोलिक और सामरिक महत्व के लिहाज से इस महामारी को परिभाषित करने में तुला हुआ है। भारत में भी इस वायरस ने कोहराम मचा रखा है। भारत में इसकी शुरूआत जनता कर्फ्यू के नाम से हुई थी। फिर 23—24 की मध्य रात्रि 12 बजे से 21 दिन के लिए पूरा देश लॉक डाउन में चला गया। भारत में भारतीय जनता पार्टी (Bhartiya Janta Party) की सरकार है। कांग्रेस (Congress) विपक्ष में हैं। वह इतने बड़े फैसले का तो स्वागत कर रहा है लेकिन समय पर सवाल खड़े कर रहा है। इधर, दो दिनों से दिल्ली (Delhi), उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) और मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के बॉर्डर में फंसे मजदूरों की खबरें आ रही थी। यह मजदूर अपनी रोजी रोटी चले जाने के बाद पैदा हुए भूख, भय और भविष्य की चिंता को लेकर पलायन कर रहे थे। तस्वीरें बता रही थी कि हालात बदतर होने वाले हैं। इसी बीच सोमवार शाम से भारत के मीडिया (Indian Media Report) ने पूरे लॉक डाउन का टेस्ट ही बदल दिया। पूरा मीडिया दिल्ली के निजामुद्दीन कॉलोनी में हुए मरकज (Markaj) के कार्यक्रम पर टूट पड़ा। पिछले चौबीस घंटों से टीवी चैनल और अखबारों में लगभग एक ही अंदाज और शीर्षक के साथ डिबेट चला रहा है। जिसको देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा है कि जैसा वायरस का नाम कोरोना खान (Corona Khan) होना चाहिए।

देशभर की मीडिया में “मरकज ने बिगाड़ दिया मामला”,”तब्लीगी जमात ने फैलाया कोराना”, “कोरोना के कितने हेडक्वार्टर”, “दिल्ली में मिला संक्रमण का बड़ा केंद्र”, “कोरोना का टाइम बम” नाम से बुलेटिन चला रहा है। मीडिया कुछ इस अंदाज में इस मामले को बयां कर रहा है जैसे 1500 आत्मघाती दस्ते जो कोरोना पॉजिटिव थे और उन्हें आईएसआईएस (ISIS) नेटवर्क ने फंड देकर भारत में पहुंचाया हो। किसी भी मीडिया ने इस जलसे को लेकर जिम्मेदार अफसर और एजेंसियों पर सवाल ही नहीं खड़े किए। जबकि ऐसा हो नहीं सकता कि इतना बड़ा आयोजन बिना किसी अनुमति के चल रहा हो। जिसकी निगरानी के लिए लोकल गर्वमेंट बॉडी के अलावा देश की सुरक्षा एजेंसी जैसे रॉ (RAW), आईबी (IB) भी शामिल थी। दरअसल, इस जमात में भारत ही नहीं किर्गिस्तान, कजाकिस्तान, बांग्लादेश (Bangladesh) समेत कई अन्य देशों के नागरिक शामिल हुए थे। यह सारे जमा है और किसलिए आए देश की एजेंसियों को खबर थी। अगर खबर नहीं थी तो इनके खिलाफ सरकारें क्या कार्रवाई कर रही है। भारतीय मीडिया अपनी टीआरपी के लिए इस तरह का एजेंडा चलाकर उन सच्चाई को दबाने का प्रयास कर रहा है जो मौजूदा दौर में बयां की जाना चाहिए। इस तरफ किसी भी व्यक्ति का ध्यान नहीं हैं।

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मसलन देश में चिकित्सकों की संख्या, देशभर के राज्यों के बॉर्डर के इंतजाम, दवा का स्टॉक इत्यादि पर कोई समाचार दिखा ही नहीं रहा। एकमात्र एनडीटीवी का प्राइम टाइम (NDTV Prime Time) कार्यक्रम जिसमें रवीश कुमार (Ravish Kumar) ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि दुनिया भर में भारत का आर्थिक ढांचा (Indian Economy Growth) पांचवे पायदान पर है। उससे एक कदम आगे जर्मनी (Germany) जो कि चौथे नंबर पर हैं उसकी तुलना करके भारत को और अधिक तैयारी करने को लेकर सचेत किया है। इस तरह की रिपोर्टिंग की आवश्यकता मौजूदा वक्त में बहुत ज्यादा है।

बिजनेस का ट्रेंड भी बदला

भारत में लॉक डाउन के बाद आर्थिक चुनौतियों का संकट गहराने वाला है। उसके लिए सरकार और प्रशासन कितना मुस्तैद है यह भविष्य में साफ हो जाएगा। लेकिन, लोग इस लॉक डाउन (Lock Down) के दौरान कई तरह के सवाल उन नेताओं से पूछ रहे हैं जो चुनाव के वक्त वोट मांगने आते हैं। जनप्रतिनिधियों के लिए भी आने वाला वक्त काफी चुनौतीपूर्ण बनने वाला है। लोगों के सवालों में से एक यह है कि उनके घरों पर वोटर की पर्ची जिसकी कीमत महज 50 पैसे होती है जो समय पर आ जाती है। पर मुश्किल में फंसी जनता के लिए पर्ची की मदद से बनी सरकार राहत सामग्री एक महीने का घर तक नहीं पहुंचा पाती। जनता भी समझ रही है कि लॉक डाउन की वजह से कई सेक्टर औधे मुंह धराशायी होने वाले हैं। जनता का यह भी प्रश्न है कि जब चीन में दिसंबर, 2019 में ही इस विपदा के वहां से निकलकर पूरी दुनिया में फैलने का अंदेशा था तो हम तैयार क्यों नहीं हुए। आलम यह है कि भारत का कई सेक्टर का भूगोल भी बदलने वाला है। मतलब रियल स्टेट, आटो मोबाइल सेक्टर, इंफ्रास्ट्रक्चर, आईटी, पर्यटन से लेकर कई अन्य कारोबार में करीब छह महीने का ग्रहण लग गया है। यह ग्रहण कब कैसे छंटेगा यह बताना दूर की कौड़ी है। इसके लिए सरकारों को लिबरल होना ही पड़ेगा। फिलहाल लॉक डाउन में मारुति (Maruti) जैसे कारोबार ने वेंटीलेटर बनाने में कूदने का फैसला लिया है। यह बिलकुल वैसा ही जैसा ग्वालियर का रहने वाला सोनू जो कभी फुल्की का ठेला लगाता था अब वह लॉक डाउन में सब्जी बेचकर अपना घर चला रहा है।

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केशवराज पांडे,

ब्यूरो चीफ, (MP-CG)

द क्राइम इंफो,

(मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए यह लेखक के अपने विचार हैं)

अपील

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