आर्टिकल की स्वायत्ता पर शपथ लेने वाले कैसे खड़े कर सकते हैं सवाल

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Article 15फिल्म के प्रदर्शन से पहले जनसंपर्क मंत्री पीसी शर्मा के पत्र ने बढ़ाई मुश्किल, प्रदेश में कमलनाथ सरकार को लेकर भीतर ही भीतर दलित समाज में आक्रोश

अभिनेता आयुष्मान खुराना की अगले सप्ताह रिलीज हो रही फिल्म “आर्टिकल 15” (Article 15) को लेकर मध्यप्रदेश में भीतर ही भीतर बवाल चल रहा है। यह बवाल को हवा तब मिली जब सरकार के जनसंपर्क मंत्री पीसी शर्मा ने रोक लगाने की मांग की। इन सभी बातों को लेकर यह बहस फिर छिड़ गई है कि आखिर क्यों संविधान की शपथ लेने वाले संविधान के ही मौलिक अधिकारों को लेकर इतने मुखर होकर पत्र लिखने लग जाते हैं। फिल्म और इसके बवाल को लेकर पुलिस और गुप्तचर एजेंसियां सक्रिय हो गई है। आखिर क्या है मामला, फिल्म को लेकर बवाल उसके बनने के पीछे कारण आप खुद ही जान लीजिए।

फिल्म बनाने वाला कौन
यह फिल्म (Article 15) बनाई है अनुभव सिन्हा है। उनकी यह खूबी है कि वह समाज के कमजोर वर्ग के प्रति मुद्दों पर काम करके उसे फिल्म की शक्ल में चल रहे बदलाव को दिखाते हैं। सिन्हा ने वर्ष 2018 में भी ऐसी ही फिल्म बनाई थी जिसका नाम था मुल्क। इस फिल्म में लीड रोल ऋषि कपूर ने किया था। इसमें बताया गया था कि एक आतंकी के परिवार जिसमें पिता बने ऋषि कपूर के सामाजिक जीवन में किस तरह से बदलाव आ जाता है। वे भारत के संविधान के प्रति आस्था रखते हुए कोर्ट से न्याय पाते हैं। न्याय पाने और आतंकी बेटे के कारण बदले समाज के नजरिए की उधेड़बुन वाली इस फिल्म ने काफी सुर्खियां बटोरी थी। इसी फिल्म के बाद सिन्हा ने अगली फिल्म आर्टिकल 15 बनाने का निर्णय लिया। इस फिल्म में मुख्य भूमिका आयुष्मान खुराना निभा रहे हैं।

फिल्म में ऐसा क्या कंटेट जिसका विरोध
फिल्म आयुष्मान खुराना के इर्द-गिर्द घुमती हैं। इसमें वह भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अफसर बने हैं। उनकी पोस्टिंग जिस जिले में होती है उसके एक थाना क्षेत्र में सवर्णो का बोलबाला रहता है। वे दलितों के प्रति नजरिया ठीक नहीं रखते हैं। इसी दौरान दो बहनें फंदे पर लटकी मिलती है। जिन्हें सुसाइड लोकल थाना बना देता है। थाने और आयुष्मान खुराना के बीच जब मैदानी हकीकत सामने आती है तो वह आर्टिकल 15 (Article 15) का रूप ले लेती है। फिल्म के माध्यम से संविधान की इस धारा को लेकर जानकारियां दी गई है। लेकिन, यही कंटेट लोगों को अब अखर रहा है जिसका भोपाल में विरोध भी शुरू हो गया।

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कौन कर रहा है विरोध
फिल्म को लेकर यह भी (Article 15) अफवाह फैली है कि यह उत्तर प्रदेश के बदायू में हुई दो बहनों की आत्महत्या से जुड़े मामले पर यह फिल्म बनाई गई है। हालांकि अनुभव सिन्हा इस बात से इनकार कर चुके हैं। इसी मामले ने तूल और अधिक तब पकड़ लिया जब विधि विधायी कार्य एवं जनसंपर्क मंत्री पीसी शर्मा ने मुख्य सचिव को अपने लैटर पेड पर इस फिल्म को लेकर पत्राचार किया। यह लैटर पेड बहुत तेजी से दलित समुदाय में वायरल हो रहा है। इस पत्र में मंत्री ने अखिल भारतीय ब्राह्मण समाज के ज्ञापन को आधार बनाकर फिल्म पर रोक की मांग की गई है। पत्र में कहा गया है कि (Article 15) ब्राह्मण समाज को फिल्म में क्रूर दिखाया गया है। पत्र में डायरेक्टर के खिलाफ केस दर्ज करने की भी मांग की गई है। इस पत्र के खिलाफ सोमवार को जिला कलेक्टर कार्यालय में दलित समाज की तरफ से एक प्रतिनिधि मंडल ने ज्ञापन सौंपा हैं। प्रतिनिधि मंडल का आरोप है कि मंत्री ने संविधान की शपथ ली है और उसी संविधान के एक आर्टिकल को लेकर बनी फिल्म को रोक लगाने की मांग उठाकर वे उसका अपमान कर रहे हैं।

क्या है आर्टिकल 15
भारत का संविधान 1950 में लागू हुआ। इसमें कई बदलाव भी हुए। लेकिन, मूल भावनाओं से आज तक कोई (Article 15) छेड़छाड़ नहीं की गई है। संविधान की धारा 14 से लेकर 18 में प्रत्येक नागरिक के समता के अधिकारों को लेकर व्याख्या हैं। इसमें आर्टिकल 15 है जो चार उप धाराओं में पूरा होता है। इसमें राज्य, किसी नागरिक के विरुद्ध के केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करना बताता हैं। दूसरी उप धारा में कोई नागरिक केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर दुकानों, सार्वजनिक भोजनालयों, होटलों और सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों में प्रवेश, या पूर्णत: या भागत: राज्य-निधि से पोषित या साधारण जनता के प्रयोग के लिए समर्पित कुओं, तालाबों, (Article 15) स्नानघाटों, सड़कों और सार्वजनिक समागम के स्थानों के उपयोग करने का अधिकार देता है। तीसरे अनुच्छेद में ऐसी कोई बात राज्य को स्त्रियों और बालकों के लिए कोई विशेष उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी। इस अनुच्छेद की या अनुच्छेद 29 के खंड (2) की कोई बात राज्य को सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े हुए नागरिकों के किन्हीं वर्गो की उन्नति के लिए या अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए कोई विशेष उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।

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वह फिल्में जिनमें पहले भी तकरार हुई
फिल्म आर्टिकल 15 का एक डॉयलाग भी बहुत चल रहा है। यह डॉयलाग है (Article 15) “फर्क बहुत कर लिया, अब फर्क लाएंगेष”। दलित समुदाय में यह बहुत तेजी से वायरल हो रहा है। यह पहली फिल्म नहीं है जिसको लेकर राजनीतिक बयानबाजी हो रही हो। इससे पहले भी कई फिल्मों को लेकर हंगामा मचा है। सन्नी देओल की फिल्म गदर में तो बड़ा लॉ एंड ऑर्डर बन गया था। जिसमें कांग्रेस विधायक आरिफ मसूद भी फंसे थे। इसके अलावा संजय लीला भंसाली की फिल्म पदमावत, द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर समेत कई ऐसी फिल्म है जिसको लेकर देशभर में बवाल हो चुका है। मुंबई बम धमाकों पर केद्रीत फिल्म ब्लैक फ्राइडे को लेकर भी बवाल खड़ा हुआ था। इन सबके बावजूद थोड़ी काट-छाट के बाद फिल्म का प्रदर्शन हुआ और वह आज भी टीवी में आती है।

बोलने के अधिकार पर रोक
सरकारें किसी भी राज्य या देश की हो वह अपने राजनीतिक (Article 15) स्वार्थों की पूर्ति के लिए निर्णय लेती हैं। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ को लेकर एक ट्वीट करने पर पत्रकार प्रशांत कनौजिया के साथ क्या हुआ यह सारा देश जानता है। पुलिस उसे जबरिया उठा ले गई और जेल में डाल दिया। सुप्रीम कोर्ट की डबल बैंच जिसमें जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस अजय रस्तोगी ने प्रशांत कनौजिया को जेल से छोडऩे के आदेश दिए। साथ ही यह भी कहा कि नागरिकों के बोलने के अधिकार पर रोक नहीं लगाई जा सकती। लेकिन, यह कैसा बोलना है यह भी सोचा जाना चाहिए। इसलिए ताजा फैसलों को देखते हुए मुझे नहीं लगता कि यह बोलने और कहने की आजादी को कोई सरकार रोक पाएगी। हालांकि इन सब बातों के बीच (Article 15) गुप्तचर एजेंसियों की जरूर नींद उड़ गई है। दरअसल, दलित आंदोलन के चलते मध्यप्रदेश पहले भी सुलग चुका है। इसलिए इस फिल्म के राजधानी में प्रसारण होने अथवा नहीं होने से कोई ज्यादा फर्क महसूस नहीं होगा। लेकिन, ग्वालियर, भिंड, चंबल, मुरैना जैसे संवेदनशील इलाकों में फिल्म का प्रदर्शन रोका गया तो वह राजनीतिक लिहाज के अलावा सामाजिक वातावरण में जरूर कटुता पैदा कर सकता है। इस मामले में मध्य प्रदेश बसपा अध्यक्ष रमाकांत पिप्पल का कहना है कि मंत्री का यह कृत्य काफी निंदनीय हैं।

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