कुमार अंबुज (Kumar Ambuj) की कविता- विडंबनाएँ
एक कवि अपने समय की आहट को घटित होने के पहले ही कविता में दर्ज कर लेता है। यही सजग कवि की पहचान भी है। कुमार अम्बुज (Kumar Ambuj) हमारे समय के महत्वपूर्ण कवि हैं, उनकी एक कविता है- विडंबनाएँ, जो करीब एक बरस पहले लिखी गई थी। इस कविता में श्राप, वरदान, गालियों आदि पर उनकी काव्य-पंक्तियाँ, हमारे इस वक़्त में कहीं अधिक सघनता से सच होती दिख रही हैं।
कुमार अम्बुज (Kumar Ambuj) की इस प्रासंगिक कविता को सचिन श्रीवास्तव (Sachin Shrivastava) की आवाज में यहाँ सुन सकते हैं और पढ़ भी सकते हैं –
विडंबनाएँ- कुमार अंबुज (Kumar Ambuj)
मजलूम अमीरों को दुआएँ देते हैं
अमीर देते हैं गरीबों को गालियाँ
दुआएँ कबूल हो जाती हैं
गालियाँ खानेवालों पर दर्ज हो जाते हैं मुकदमे
राजनेता वरदान देते हैं
जो फलीभूत होते हैं ठेकेदारों को
अपराधी ही देते हैं श्राप, उनमें इतनी हिम्मत आ जाती है
कि वे कर सकते हैं अपने श्राप का क्रियान्वयन
इस तरह बनता चला जाता है ऐसा समाज, ऐसा राष्ट्र
जिसमें आम नागरिक को लग जाते हैं शाप
ताकतवर को वरदान।
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द क्राइम इन्फो (The Crime Info) पर कविता क्यों?
“द क्राइम इंफो” (The Crime Info) समाज में घटित हो रहे अपराध, खामियों और अव्यवस्थाओं के बरअक्स एक बेहतर, सबके लिए संभावनाओं ने लबरेज और बराबरी की दुनिया बनाने की अपनी जिम्मेदारी को विभिन्न मोर्चो पर निभाने की कोशिश कर रहा है। हम समझते हैं कि अपने समय को कविताओं में हमारे समय के सजग कवि, लेखक, विचारक, पत्रकार तरतीब से दर्ज कर रहे हैं। इसी कड़ी में यह कविता प्रस्तुत की गई है। आगे भी हम ऐसे रचनाकर्म को पाठकों तक पहुंचाते रहेंगे, जिनके जरिये सामाजिक जटिलताओं को समझने और क्राइम फ्री सोसाइटी के हमारे उद्देश्य को बल मिलता है।