सचिन श्रीवास्तव
आतंकी हमलों (terror attack) को रोकने के लिए आतंकवाद (terrorist) को पोसने वाली ताकतों को खत्म करना जितना जरूरी है, उससे कहीं ज्यादा जरूरी हमारी आतंरिक सुरक्षा (internal security) को मजबूत करना है। अफसोस इस मोर्चे पर हमने बहुत ज्यादा प्रगति नहीं की है। मुंबई हमले के बाद समुद्री सुरक्षा तंत्र मजबूत करने की बात हुई। कुछ आगे भी बढ़े। लैग बोट्स और एंपीबियस व्हीकल खरीदे गए। समुद्री निगरानी के लिए विशेष टीमें बनीं, लेकिन समय गुजरने के साथ हालात जस के तस हो गए। पठानकोट हमले के बाद भी सुरक्षा चूकों पर कमेटी बनी। रिपोर्ट भी आई, लेकिन ठोस तंत्र विकसित होता, इससे पहले ही आतंकी उरी में हमले को अंजाम दे चुके थे और फुलवामा ने देश के आंतरिक सुरक्षा हालात पर फिर सवालिया निशान लगा दिया। फुलवामा अटैक के बाद चूक को दुरुस्त करने के बजाय हालात को दूसरी तरफ मोड़ दिया गया और फिर हालात वहीं के वहीं रुके हैं। सीमा पार कर देश में घुसपैठ, हमारी जमीन पर कई किलोमीटर तक हथियारबंद आवागमन और संवेदनशील स्थलों पर हमला, हमारी आतंरिक सुरक्षा की गहरी खामियों की ओर संकेत है।
सीमा पार से घुसपैठ
पाकिस्तान से लगने वाली भारतीय सीमा करीब 3 हजार किलोमीटर लंबी है। इस संवदेनशील सीमा का 96 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा जमीनी और बाकी समुद्री है। दुनिया की सबसे खतरनाक अंतरराष्ट्रीय सीमाओं में शुमार इस बॉर्डर की निगरानी पर भारत सबसे ज्यादा तवज्जो देता है।
तैयारी: भारत ने इस सीमा पर 50 हजार पोल लगाए हैं, जिनमें 1.5 लाख फ्लड लाइट हैं। बीएसफ और सीआरपीएफ 24 घंटे इन सीमाओं की चौकसी करती हैं। भारतीय सेना के जांबाज इस सीमा की सुरक्षा के लिए मुस्तैद हैं।
चूक: कड़ी सुरक्षा के बावजूद साल में दर्जनों बार सीमा पार से घुसपैठ में आतंकी कामयाब हो जाते हैं। कई बार इसका पता भी चल जाता है। पठानकोट हमले के बाद गठित उच्चस्तरीय समिति ने मई में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी। इस रिपोर्ट में सुरक्षा खामियों को ही हमले की वजह माना था। सैन्य अड्डों की सुरक्षा खामियों पर भी इस रिपोर्ट ने विस्तार से बात रखी।
लचर आंतरिक सुरक्षा
हमारे देश में आतंरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी कुछ केंद्रीय बलों के साथ राज्यों की पुलिस पर है। ज्यादातर हिस्सों में राज्य पुलिस की कार्यप्रणाली में तो खामियां हैं ही, संसाधनों की कमी भी है। प्रति 10 लाख नागरिकों पर महज 130 पुलिसकर्मियों की संख्या बेहद कम है। यह अपराधों को कम करने में ही अक्षम संख्या है। इसके अलावा व्हीकल्स और आधुनिक उपकरणों की कमी भी आतंरिक सुरक्षा का रोड़ा हैं। साथ ही ज्यादातर पुलिसकर्मी तकनीकी रूप से भी प्रतिस्पर्धी नहीं हैं।
नुकसान: राज्य पुलिस की खामियों के चलते देश के विभिन्न इलाकों में अपराध का ग्राफ बढ़ रहा है। आतंकियों को इससे फायदा मिलता है। स्थानीय अपराधियों के सहयोग से वे अपने मंसूबों को अंजाम देने में कामयाब हो जाते हैं। सार्वजनिक स्थलों की सुरक्षा भी निजी एजेंसियों के अप्रशिक्षित गार्डों के हाथों में है।
उपाय: पुलिस व्यवस्था को दुरुस्त करने की दशकों पुरानी बहस को खत्म किया जाए। निचले स्तर पर सक्षम पुलिस कर्मियों की नियुक्ति हो। पुलिस प्रशिक्षण को और अधिक चुस्त और पैना बनाया जाए। तकनीकी खामियां दूर हों।
संवदेशनील स्थलों पर खतरा
मुंबई, पठानकोट और उरी जैसे उदाहरण चौंकाने के लिए काफी हैं। जब देश के सबसे संवेदनशील इलाके आतंकियों की पहुंच से दूर नहीं हैं, तो फिर अन्य इलाके कैसे सुरक्षित कहे जा सकते हैं। यह दीगर बात है कि जो मरने के लिए आया हो, उसे रोकना नामुमकिन है।
खामियां: पठानकोट हमले के बाद मिलिट्री कमेटी की रिपोर्ट बताती है कि संवेदनशील आर्मी बेस पर सुरक्षा खामियां बेहद ज्यादा हैं। कर्मियों के पास बुलैटप्रूफ जैकेट तक नहीं हैं। सुरक्षा घेरा बहुत ठोस नहीं है। इन इलाकों में सुरक्षा की जिम्मेदारी का तंत्र बहुत ढीला ढाला है। विशेष टीम इसे अंजाम नहीं देती।
सख्त कदम: संवेदनशील प्रतिष्ठानों की सुरक्षा संसद पर हुए आतंकी हमले के बाद से ही सख्त की गई है, लेकिन अभी भी यह अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप नहीं है। कई रिपोट्र्स में इस पर सवाल खड़ा हो चुका है।
इन पर है जिम्मेदारी
देश की आतंरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी मूल रूप से केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल, भारत-तिब्बत सेना पुलिस, सीमा सुरक्षा बल, केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल, तटरक्षा बल, राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड, असम रायफल्स, होम गाड्र्स और विभिन्न राज्यों की पुलिस के जिम्मे है। इनमें से बड़ी जिम्मेदारी राज्य पुलिस और होम गाड्र्स पर है, जो आतंकी हमलों जैसे हालात से निपटने के लिए पूरी तरह प्रशिक्षित नहीं हैं। मुंबई हमलों के दौरान यह बात सामने आई थी। इसके बावजूद इस दिशा में प्रगति नहीं हुई।
और भी हैं खतरे
आतंकवाद सीधे तौर पर बड़ा खतरा है, लेकिन इसके साथ दूसरी समस्याएं जुडऩे से यह और ज्यादा खतरनाक हो जाता है। देश की आतंरिक समस्याएं जब आतंकवाद को मदद पहुंचाती हैं, तो हालात और जटिल हो जाते हैं। ऐसे ही कुछ खतरे हमारे सामने हैं।
साइबर क्राइम: आतंकवादियों ने साइबर क्राइम के जरिये भी देश के खिलाफ युद्ध छेड़ रखा है। इस मोर्चे पर भारत ने जरूरी ऐहतियाती कदम उठाए हैं, लेकिन साइबर दुनिया इतनी जटिल और बड़ी है कि इसमें एक जरा सा चूक बड़ी समस्या को बुलावा दे सकती है।
ड्रग माफिया: लंबे समय तक हेरोइन और गांजे के कारोबार का केंद्र भारत रहा है। 1994 से 2006 के दौरान इसमें कमी आई थी, लेकिन पिछले एक दशक से ड्रग माफिया फिर भारत में सक्रिय हुआ है। म्यांमार-थाइलैंड-वियतनाम का “गोल्डन ट्रेंगल” भारत की ओर बढ़ रहा है। इसके तार आतंकवाद से भी जुड़ चुके हैं।
स्मगलिंग: नशीलों पदार्थों के अलावा अन्य उत्पादों और सोने की तस्करी का पैसा आतंकियों के लिए जरूरी संसाधन मुहैया कराता है। हथियारों के आवागमन में भी तस्करी से आतंकियों के हाथ मजबूत होते हैं। बीते दो-ढ़ाई दशक में आतंकवादियों ने हथियार तस्करी के जरिये कई मंसूबों को अमलीजामा पहनाया है।
उम्मीद और उपाय
बेहद बुरे हालात और तमाम सुरक्षा खामियों के बावजूद आतंकियों के ज्यादातर मंसूबों को देश के सुरक्षा तंत्र ने नाकामयाब किया है। लेकिन इनकी बड़ी कीमत भी चुकाई है। आखिर हम किस्मत और जवानों की जान दांव पर लगाकर सुरक्षा चूकों को नजरअंदाज नहीं कर सकते।
लेजर वॉल: बीएएफ ने पाकिस्तान सीमा पर लेजर वॉल लगाने की तैयारी की है। फिलहाल यह 6 जगहों पर है, जल्दी ही इसे बढ़ाकर 45 स्थानों पर किया जाएगा। इससे सीमा की निगरानी लेजर तरंगों के जरिये होगी। कोई भी इन तरंगों की दीवार को पार करेगा, तो सुरक्षा एजेंसियां सतर्क हो जाएंगी।
समुद्री निगरानी: मुंबई हमले के बाद 20 सी लैग बोट्स और 20 एंपीबियस व्हीकल की खरीद। खरीदे गये. स्पीड बोट की संख्या में इजाफा। 450 पुलिसकर्मियों की तैनाती और 4 विशेष पुलिस थाने जैसे कदम उठाए गए। हालांकि बाद में इन कदमों पर सवाल उठे। इन्हें प्रयासों को जारी रखने की जरूरत।