नेहरु को कोसने वाली पार्टी, उनकी विरासत से ले रही सांस

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Bhopal Corona War Truth: पंद्रह साल बनाम 70 साल वाली पार्टी की हकीकत होने लगी उजागर, मौका था पर चूक गए

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शिवराज सिंह चौहान, मुख्यमंत्री, मध्यप्रदेश शासन

केशवराज पांडे

भोपाल। आपको महाभारत में अर्जुन याद होंगे। अच्छे धर्नुधर होने की ख्याति उनके पास थी। यह शिक्षा उन्हें द्रोणाचार्य से मिली थी। लेकिन, जब कौरव और पांडव का युद्ध हुआ तो गुरु—शिष्य आमने—सामने थे। अर्जुन ने गुरु की सारी शिक्षा के दिए तीर चलाए। पांडव इस युद्ध में विजय भी बने। कहने का मतलब है कि शिक्षा कोई भी दे लेकिन सही वक्त पर एक अच्छा पथ प्रदर्शक नहीं मिलेगा तो युद्ध में जीत संभव नहीं है। आप सही समझ रहे हैं, मैं कोरोना युद्ध की ही बात कर रहा हूं। भोपाल (Bhopal Corona War Truth) इन दिनों इसी युद्ध से जूझ रहा है। सरकारी और प्रायवेट अस्पतालों से जो तस्वीरें और सूचनाएं मिल रही है वह संतोषजनक नहीं हैं।

सीएम से थी बहुत आस

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शिवराज सिंह चौहान, मुख्यमंत्री मप्र — फाइल फोटो

प्रदेश में सत्तारुढ़ दल के नेता शिवराज सिंह चौहान है। वे पिछले पंद्रह साल से प्रदेश के मुख्यमंत्री का पदभार संभाल रहे हैं। उन्होंने नवंबर, 2005 में शपथ ली थी। तब यह चेहरा जनता के लिए अनजान था। उन्होंने एक—एक कर जो नवाचार किए, उसकी बदौलत वे प्रदेश के चर्चित चेहरे बन गए। पिछले पंद्रह महीनों को छोड़ दे जब कांग्रेस की सरकार थी, तब से लेकर अब तक लगभग पंद्रह साल हो गए हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने कभी भी कांग्रेस को कोसने का मौका नहीं छोड़ा। दोनों ने कई मौकों पर कई बार कांग्रेस के 70 साल के इतिहास की अपने दल की सरकार से तुलना की है। हालांकि इस दौरान उनके भी दल की सरकार प्रदेश और केंद्र में रही है।

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समझा था समझते होंगे

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मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान— फाइल फोटो

मुख्यमंत्री भोपाल शहर के लिए नए नहीं है। उन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत भोपाल से ही की थी। मॉडल स्कूल से शिक्षा ग्रहण की। फिर बीयू से स्नातक की पढ़ाई की। इसलिए यह शहर उनके लिए नया नहीं था। लोगों को लगता है कि उन्हें भोपाल के संबंध में बहुत कुछ पता है। इसी भरोसे में रहकर शहर के नागरिकों को उनसे बहुत सारी अपेक्षाएं थी। लेकिन, कोरोना के संघर्ष में मैदान में वह नहीं दिख रहा। अव्यवस्थाओं की तस्वीरें अस्पताल से लेकर अवसान होने तक पिछले एक पखवाड़े से बयां हो रही है। ऐसा नहीं है कि उन्होंने प्रयास में कोई कमी छोड़ी हो। लेकिन, उनके पथ प्रदर्शक उन तक सच्चाई पहुंचने नहीं दे रहे। ऐसा ही चला तो जनता की भावनाओं से वह अटैचमेंट कम होने लगेगा जो उन्होंने अपने बूते कमाया है।

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पहली बार नहीं आपदा

ऐसा नहीं है कि देश पहली बार बड़े विकराल रुप में आपदा देख रहा हो। इससे पहले देश ने टीबी, एड्स, कुष्ठ रोग से लेकर कई अन्य बीमारियों के भय से लोहा लिया है। इन सारे संकटों से देश उबरा भी है। इन हालातों से सबक लेकर देश में टीबी अस्पताल, एड्स संगठन से लेकर कई अन्य संस्थाओं के रुप में उभरकर उसने संकटों को दूर किया। इन रोगों के मुकाबले कोरोना का संक्रमण ज्यादा भारी पड़ने लगा है। इसके बावजूद कोरोना की आपदा से सामना प्रदेश ही नहीं भारत मार्च, 2020 से ही कर रहा है। प्रदेश आपदा के दौरान केंद्र की तरफ टकटकी लगाए रहा। जबकि दिल्ली, केरल समेत कई अन्य राज्यों ने इस विपदा से निपटने के लिए बेहतर कारगर नीति इस दौरान बना ली थी।

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मैदानी समझ से दूर रणनीतिकार

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मंत्रालय, मध्यप्रदेश

प्रदेश में जब पहले पुरानी विपदाएं आई थी तब अफसर काफी सक्रिय रहा करते थे। जनता से संवाद और समस्या जानकार राजनीतिक पार्टियों को सलाह दिया करते थे। उसके बेहतर परिणाम भी निकलते थे। भोपाल शहर ने 1984 की गैस त्रासदी भी देखी है। उस त्रासदी से भी पूरा तो नहीं बहुत कुछ उभरकर शहर सामने आ रहा है। उस त्रासदी से निपटने वाले भोपाल शहर की महज दो महीने के भीतर सांसे फूलने लग गई है। यह बेहद चिंताजनक है। इसलिए मंथन की आवश्यकता है। एयर कंडीशनर रुम की कुर्सी में बैठकर नीति बनाने वाले रणनीतिकार मैदान से पूरी तरह से कटे हुए हैंं। हकीकत पिछले दिनों बैरीकेडिंग प्लानिंग से भी उजागर हो गई है। एम्बुलेंस भी निकल नहीं पा रही थी। नई योजना में आज भी संशोधन करना पड़ रहा है।

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स्कैम न होता तो आज नजीर बनता प्रदेश

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सांकेतिक ​तस्वीर

मध्य प्रदेश में उज्जैन शहर के अलावा दूसरी कोई अन्य विरासत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नजर नहीं आती है। उज्जैन भी इसलिए चर्चित होता है क्योंकि वहां कुंभ का समागम होता है। ग्वालियर व्यापारिक मेले की वजह से पहचान बना रहा है। बाकी शहरों में जबलपुर हाईकोर्ट से आने वाले आदेशों के कारण अपनी पहचान बना पाता है। जबलपुर ने संकट के काल में अपना वजूद बनाए रखा है। उसने सरकार को आईना भी दिखाया है। भोपाल व्यापमं के कारण चर्चित हुआ था। वह व्यापमं जिसे डॉक्टर बनाने थे, नर्स, एसआई से लेकर तमाम लोगों को बनाने का काम करना था। वह भ्रष्टाचार में ऐसे जकड़ा कि उसकी कमी आज उजागर होने लगी है। भ्रष्टाचार न होता और जेल जाने वालों की जगह वास्तविक पात्रों का चयन होता तो शायद कोरोना के इस संकट काल में प्रदेश को नजीर बनाने में सहायता करते।

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अंधेरे से निकाला पर अब अंधियारा

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उमा भारती, पूर्व मुख्यमंत्री, मध्यप्रदेश

मप्र की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से उनकी कुर्सी छीन ली थी। उमा भारती ने प्रदेश के बिगड़ी सड़कों के हालात और करंट के गुल होने को मुद्दा बनाकर सरकार बनाई थी। इन दोनों विषयों पर सरकार ने सफलता से काम किया। उसमें वह कामयाब होने के बाद कोई दूसरे विकासोन्मुखी नवाचार नहीं किए गए। नतीजतन, कोरोना के जो हालात है वह बिगड़ते नहीं। कई घरों में एक साथ दो—तीन लोगों की मौत एक सप्ताह में हो चुकी है। कई शहरों से जेवरात, संपत्ति बेचकर इलाज कराने की तस्वीरें सामने आ रही है। मतलब साफ है कि उन परिवारों को सरकार ने अंधेरे से तो बहुत पहले निकाल दिया था लेकिन अब उनके सामने अंधियारा कर दिया है।

संस्थागत ढ़ांचों को खड़ा करना चाहिए

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हमीदिया हॉस्पीटल

मुझे याद है जब में कॉलेज में पढ़ता था उस वक्त ट्रैफिक के एक अफसर हुआ करते थे। उनका पूरा नाम     तो याद नहीं पर सरनैम गिल था इतना भर स्मरण है। उन्हें देखकर या उनके इलाके में मौजूद रहने की खबर पाकर शहर में टैक्सी, बस वाले अपना रास्ता तक बदल लिया करते थे। उनकी उस लीडरशिप के चलते दूसरे पुलिस अफसरों की भी तूती बोला करती थी। लेकिन, मौजूदा परिस्थितियों में हालत चिंताजनक है। पर्याप्त स्टाफ न होने की कमी से कई विभाग जूझ रहे हैं। कई विभागों को आउटसोर्स कर्मचारियों की मदद से चलाया गया है। नतीजतन, संकट के समय में इन अस्थायी कर्मचारियों ने भी सिस्टम का साथ छोड़ दिया है। या यूं कहे कि छोड़ने की धमकी देकर ब्लैकमेल भी कर रहे है। पिछले दिनों हमीदिया अस्पताल में वार्ड ब्याय की स्ट्राइक के रुम में यह देखने को मिला।

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संस्थाएं नेतृत्व भी देती है

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भोपाल में प्रदेश भाजपा मुख्यालय

ऐसा नहीं है कि नेतृत्व केवल राजनीति से मिलता है। यह विधा कई क्षेत्रों से मिलती है। हमीदिया, मैनिट और सैफिया कॉलेज ने कई लीडर भोपाल शहर को दिए। स्कूल—कॉलेज, यूनिवर्सिटी के अलावा सरकारी विभाग भी पीछे नहीं रहे हैं। पूर्व आईपीएस रूस्तम सिंह जो भाजपा के नेता बने और चुनाव भी जीते। उनके नेतृत्व क्षमता की वजह से ही जनता ने चुनाव किया। ऐसे ही पत्रकारिता के क्षेत्र से प्रभात झा भाजपा पार्टी में ही गए। लेकिन, संस्थाओं में राजनीति की सीधी दखल की वजह से अब नेतृत्व में कोई विकल्प जनता के सामने नहीं आ पा रहा है। नेतृत्व में प्रतियोगिता कराने के लिए संस्थाओं को मजबूत बनाने की आवश्यकता है।

भेल की तस्वीरें परेशान करेंगी

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भोपाल भेल गेट के बाहर लगभग आधा किलोमीटर तक लगी लंबी लाइन का नजारा। यह स्थिति आज भी बरकरार है। File Photo

भाजपा के कई नेता कई मौकों पर भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु को राजनीतिक लाभ के लिए कोसने से नहीं छोड़ते। जबकि उनकी ही बदौलत भोपाल में भेल प्लांट की 1964 में स्थापना हुई थी। वह भेल जो आज कोरोना संकट काल में शहर के नागरिकों की जान बचाने के लिए 2500 क्यूबिक ऑक्सीजन गैस की सप्लाई कर रहा है। इसी भेल ने प्रदेश को पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर जैसा भी नेता दिया था। भेल गेट के बाहर गुरुवार को दिनभर ऑक्सीजन लेने के लिए कतारें लगी रही। यह तस्वीरें निकट भविष्य में राजनीतिक बयानबाजी के वक्त काम आएगी यह तय मान लीजिए। हालांकि वह पलटवार होगा क्योंकि तीर पहले यहां से चलाया गया था।

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भय, भूख और काला बाजारी

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भोपाल शहर की जनता ने इन प्रतिनिधियों को चुना था। सांसद प्रज्ञा भारती, विधायक रामेश्वर शर्मा, विष्णु खत्री और कृष्णा गौर।

भोपाल शहर के वाशिंदों को दोहरी मार झेलना पड़ रही है। यह दोहरा तनाव देने वाला भी सत्तारूढ़ दल के लिए निकट भविष्य में बनेगा। मेरा इरादा किसी दल या व्यक्ति के लिए र्दुभावना वाला नहीं है। लेकिन, जो हालात है उसको बयां करना मेरा फर्ज है। सिस्टम में आवेदनों पर कोई जवाब नहीं दिया जाता। इसके प्रमाण मेरे पास मौजूद भी है। शहर में कोरोना का भय है। दूसरी तरफ कई घरों में आपदा के वक्त में जेब भरने वालों की वजह से खड़ी हुई महंगाई के कारण भूख भी है। शहर में नशे के सामान से लेकर हर जरुरत वाली चीज की काला बाजारी की जा रही है। इसी कारण शहर में सभी दलों के विधायकों के खिलाफ जनता घंटी बजाओ अभियान चला रही है।

राजनीतिक दरियादिली का वक्त

भारतीय जनता पार्टी जो सबसे अधिक कार्यकर्ताओं के साथ संगठन पर मजबूत दल है। लेकिन, उसके कार्यकर्ता इस वक्त भीड़ और जरुरतमंदों से काफी दूर है। यह संकट का समय है। इसलिए सर्वदलीय संगठनों को आमंत्रित करके राय ली जानी चाहिए। यह प्रयास प्रदेश स्तर से ब्लॉक स्तर पर करने की आवश्यकता है। इसके लिए राजनी​तिक इवेंट की बजाय सोशल इवेंट बनाना चाहिए। ताकि संकट के इस वक्त में राजनीतिक शुचिता की मिसाल भविष्य में पेश की जा सके। ऐसे जन प्रतिनिधि जो संकट के समय में शांत है उन्हें खतरे का अहसास दिलाया जा सके। ताकि जनता के बीच जाकर निर्णायक समाधान में उनका योगदान प्रदेश के साथ—साथ भोपाल को मिल सके।

(लेखक सक्रिय पत्रकार है और यह उनके निजी विचार हैं)

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