भारत की युवा पीढ़ी ने बदल दी पत्रकारिता की परिभाषा, क्या गोदी—बिकाउ मीडिया जैसे शब्दों का होगा अवसान
भोपाल। दुनिया वैश्विक महामारी कोरोनावायरस के भय से जूझ रही है। भारत में मरीजों का आंकड़ा 1 लाख 60 हजार के पार पहुंच गया है। दुनिया में इस बीमारी ने हमको नौवे स्थान पर लाकर खड़ा कर दिया है। ऐसा नहीं है कि दुनिया इस महामारी से पहली बार जूझ रही हो। इससे पहले 1918 में स्पेनि फ्लू ने भी दुनिया को हलाकान कर दिया था। गुगल के रिकॉर्ड में डाटा बताता है कि यह बीमारी लगभग दो साल रही थी। इस बीमारी की वजह से दुनियाभर में लगभग पांच करोड़ लोग काल के गाल में समा गए थे। उस वक्त खतरा ज्यादा नहीं था। उसकी वजह यह थी कि दुनिया का ग्लोबललाइजेशन उस वक्त नहीं हुआ था। लेकिन, अब पूरी दुनिया बदल चुकी है। एक व्यक्ति दो दिन के अंतराल में पृथ्वी के चारों कोने में कहीं भी आ—जा सकता है। प्रगति की इतनी रफ्तार केवल यहां तक ही सीमित नहीं रही है। यह रफ्तार हर सेक्टर में देखने को मिल रही है।
इडली सांभर हुआ मशहूर
दुनिया में किसी भी सेक्टर की तकनीक महीनों में एक देश से दूसरे देश पहुंच जाती है। इसीलिए मोबाइल, आटो मोबाइल, गारमेंट, सुरक्षा उपकरणों से लेकर तमाम उत्पादों में वह सब बदलाव जो अमेरिका, चीन, जापान क्या किसी भी छोटे देश में हुआ है वह दुनिया के किसी भी कोने में देखने को मिल जाता है। अब देखिए भारत में चीन के फास्ट फूड कारोबार ने देश में पैर पसार लिए है। चीन में जिसको चाउमीन कहा जाता है वह भारत में बहुत तेजी से बिकता है। चाउमीन के इस पैटर्न पर पराठा, इडली—सांभर, उत्पम, ढोकला जैसे फूड ने भी अपना मार्केट बनाना शुरु कर दिया है। आज से दो दशक पहले इनको खाने के लिए पांच सितारा होटलों में ही जाना पड़ता था। लेकिन, अब इसका बाजार स्ट्रीट फूड में आ गया है।
अखबारों में हावी जैकेट
ऐसे ही बदलावों के दौर से पत्रकारिता का क्षेत्र भी गुजर रहा है। भारत में पहला हिंदी समाचार पत्र उदन्त मार्तंड (Udant Martand) के रुप में निकला था। हालांकि यह समाचार पत्र लंबे समय तक अस्तित्व में नहीं रह सका था। लेकिन, इसी समाचार पत्र के नाम पर भारत में हिंदी पत्रकारिता दिवस के रुप में इसको मनाया जाता है। यह साप्ताहिक समाचार पत्र आज से 194 साल पहले पुराना नाम कलकत्ता और आज के कोलकाता शहर से प्रकाशित हुआ था। पहला अंक 30 मई, 1826 को प्रकाशित हुआ था। यह तारीख हर किसी को याद नहीं रह सकती। पर इसी तारीख की वजह से भारत में हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत हुई थी।
हिंदी मीडिया का हर क्षेत्र में विस्तार
भारत में कई बदलाव बंदरगाहों वाले शहरों से ही शुरु होते थे। जिसके बाद धीरे—धीरे यह पूरे सल्तनत, राज्यों में फैल जाते थे। लेकिन, मौजूदा तकनीक ने इस परंपरा को बदल दिया है। यह बदलाव पत्रकारिता में बहुत ज्यादा देखने को मिल रहा है। पहले हर चीज निश्चित हुआ करती थी। मतलब टॉप, बॉटम, एंकर, लीड, दूसरी लीड इत्यादि। परंपरा टूटती चली गई अब आज प्रथम पेज की जगह जैकेट शब्द प्रचलन में आ गए हैं। भारतीय मीडिया का बहुत ज्यादा व्यवसायिककरण भी हो गया है। हिंदी के शब्दों के साथ अंग्रेजी वाले शब्दों का इस्तेमाल किया जाने लगा। कई समाचार व्यवसायिक हित को देखते हुए बनने लगे। वह चाहे आर्थिक, कृषि शिक्षा, चिकित्सा या फिर राजनीति हो हर सेक्टर की दखल इसमें बढ़ने लगी है। प्रत्येक क्षेत्र के अनुसार विषय विशेषज्ञता वाले मीडिया घराने बनने लगे।
भविष्य कागज में नहीं मोबाइल पर होगा
अब हिंदी पत्रकारिता में अंग्रेजी का बहुत ज्यादा दखल हो गया है। इसकी स्वीकार्यता को भी कई समाचार पत्रों ने मंजूरी दे दी है। यह मांग कोरोनावायरस की वजह से भी बढ़ती दिख रही है। दरअसल, इस महामारी में यह भ्रम बहुत तेजी से फैला कि कागज से वायरस आ सकता है। नतीजतन, लोगों ने अखबार बंद कराना शुरु कर दिए। सरकार, मंत्री, सांसदों, विधायकों के अलावा खुद समाचार पत्रों की अपील का असर देखने को नहीं मिला। कई कवर्ड कैंपस में तो हॉकरों को बैन कर दिया गया। इस भ्रम को मिटाने के लिए अभियान चलाने पढ़े। यह अभियान डिजीटील रुप में ही सामने आए। मतलब साफ है कि भविष्य का मीडिया डिजीटल की तरफ मूव करने वाला है। इस सेक्टर में बहुत सारे प्रयोग चल रहे है। कई बड़े मीडिया हाउस ने तो इसके लिए काम भी शुरु कर दिए।
मोबाइल के क्यूआर कोड पेपर पर
देश में लगभग डेढ़ दशक पहले फेसबुक, ट्वीटर, टिकटॉक, इंस्टाग्राम समेत कई डिजीटल प्लेटफॉर्म का जन्म हुआ। यह नए प्रयोग प्रिंट जर्नलिज्म के लिए चुनौती नहीं बने। बल्कि वैकल्पिक माध्यम के रुप में सामने आ गए। इस तरफ भी मीडिया घराने जाने लगे। अपने उत्पादों को वहां भेजा जाने लगा। आज स्थिति यह है कि कई बड़े समाचार पत्र समूह अपना डिजीटल एडिशन शुरु कर चुके हैं। इसका असर मौजूदा समाचार पत्रों में भरपूर देखने को मिल रहा है। समाचार पत्र का स्वरुप बदल रहा है। समाचार पत्रों में एंकर, बॉटम, लीड जैसे समाचारों में क्यूआर कोड का इस्तेमाल होने लगा है। यानि पत्रकारिता डिजीटल की तरफ रुख कर रही है। हालांकि दो दशक पहले यह डिजीटल प्लेटफॉर्म अपने अस्तित्व को लेकर संघर्ष कर रहे थे।
डिजीटल माध्यमों से ब्रेकिंग
भोपाल की गैस त्रासदी हो या फिर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या का समाचार। इसके प्रसारण को लेकर उस वक्त के टीवी एंकर और रेडियो रिपोर्टर ने समाचार प्रस्तुती के दौरान अपने भाव को नियंत्रित करने के बारे में बताया था। यह दोनों ही घटनाएं लगभग चार दशक के भीतर अंतराल की है। लेकिन, विश्व की प्रगति के साथ सूचना क्रांति चंद सेंकड़ों में किसी भी कोने में फैल जाती है। इसे वायरल न्यूज कहा जाने लगा है। शुक्रवार को छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी का निधन हुआ। यह समाचार किसी चैनल, टीवी या फिर रेडियो ने पहले नहीं दिया। यह समाचार अजीत जोगी के बेटे अमित जोगी ने बकायदा अपने आधिकारिक ट्वीटर हैंडल से दिया था। जिसके बाद टीवी चैनलों में उसी ट्वीटर को आधार बनाकर ब्रेकिंग दी जाने लगी।
नेता से लेकर आज जनता पत्रकार
अजीत जोगी का एकमात्र उदाहरण नहीं है। इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के टीवी पर दिए जाने वाले भाषण का समय भी कई बार ट्वीटर से ही दिया जाता है। देश की कई बड़ी फिल्मी हस्ती, राजनीतिक शख्सियतें अपने विचार इसी प्लेटफॉर्म में रखने लगे हैं। देश की कई ब्रेकिंग न्यूज वह चाहे रायटर्स, एएनआई, भाषा, वार्ता दे वह भी ट्वीटर, फेसबुक अकाउंट से देने लगे हैं। मीडिया का यह बदलता स्परुप बता रहा है कि हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्रों में डिजीटल प्लेटफॉर्म में कई उदन्त मार्तंड बन चुके हैं। अब इनमें विकास के पहिए भी लग चुके हैं। दुनिया पॉकेट के जेब में रखे मोबाइल पर आ रही है। शहरी क्षेत्रों में पत्रकारिता का पूरी तरह से व्यवसायिककरण हो चुका है।
जन सरोकार और डिजीटल मीडिया
ऐसा नहीं है कि यह केवल नेता, अभिनेता या फिर मीडिया इंडस्ट्रीज में इसका प्रयोग चल रहा हो। लोग अपनी समस्याओं का समाधान भी इसी डिजीटल मीडिया की मदद से सुलझा रहे हैं। भोपाल की रहने वाली सुनीता ठाकुर ने एलबीएस अस्पताल की मनमानी के खिलाफ टिकटॉक में वीडियो बनाकर वायरल कर दिया था। यह वीडियो ने असर दिखाया और प्रबंधन उसके साथ सही तरीके से ट्रीटमेंट करने लगा। इसी तरह भोपाल के बंसल अस्पताल ने कोरोना पॉजिटिव पाए जाने पर एक मरीज को अस्पताल के बाहर छोड़ दिया था। इसके खिलाफ टवीटर, फेसबुक में मुहिम छेड़ी गई। नतीजतन, भोपाल सीएमएचओ को अस्पताल प्रबंधन के खिलाफ नोटिस जारी करना पड़ा। अस्पताल ने इस मामले में सार्वजनिक माफी भी मांगी।
मिनटों की होगी सूचना
डिजीटल मीडिया का विस्तार अभी शुरुआती है। इसमें कई नए प्रयोग सामने आने वाले है। फिलहाल एक प्रयोग प्रभावी है वह है मोजो रिपोर्टिंग का। यह समाचार को पेश करने का बहुत तेज और विकसित माध्यम बनने जा रहा है। इस बात के संकेत वुहान शहर से वायरल हुए वीडियो से पता चलता है। दुनिया जिस बीमारी से परेशान है उसकी जानकारी चीनी एप्प वी—चैट से सार्वजनिक हुई थी। जिसके बाद देश में अलर्ट और फिर तमाम कवायदें की जाने लगी। मतलब साफ है कि डिजीटल मीडिया दुनिया में मीडिया घरानों की संप्रभुता को भविष्य में संकट में डालने वाला है। इस दौड़ में वही टिकेगा जो सही समय पर, सही तरीके से, सही जानकारी बिना दबाव के साथ पेश करेगा। डिजीटल मीडिया में सीनियर—जूनियर की दूरी खत्म होगी। भाषा का बंधन भी नहीं होगा।
हैश टैग एचजेडी
हम हिंदी पत्रकारिता दिवस (#HindiJournalismDay) की बात कर रहे थे। इसलिए खत्म भी इसमें ही करना चाहते हैं। जैसा कि आपको मालूम ही है कि हैश टैग कितनी खतरनाक चीज होती है। यह किसी भी व्यक्ति, संस्था को फर्श से उठाकर अर्श पर पहुंचा सकती है। डिजीटल मीडिया में इतनी ज्यादा ताकत है। मार्क जुकरबर्ग तो कह ही चुके हैं कि सोशल मीडिया अब पांचवां स्तंभ हैं। लेकिन, सोशल और डिजीटल मीडिया में काफी अंतर होता है। सोशल मीडिया वैकल्पिक माध्यम हो सकता है। लेकिन, डिजीटल मीडिया सशक्त जरिया। यह दोनों एक—दूसरे के विपरीत विचार धारा के है। डिजीटल मीडिया में जानकारी रिकॉर्ड में रहती है। लेकिन, सोशल मीडिया में वह डिलीट भी हो जाती है।
अपील
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