Citizenship Amendment Act: मोदी है तो मुमकिन है!

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आखिर क्या वजह है कि देश के नागरिक इस कानून को लेकर इतने मुखर हो गए, करोड़ों रुपए की संपत्ति का नुकसान और मौत के लिए कौन है जिम्मेदार समेत तमाम मुद्दों पर सिस्टम की चुप्पी की वजह जानिए

केशवराज पांडे, भोपाल।

Citizenship Amendment Act
कानून के खिलाफ प्रदर्शन की तख्ती— फाइल फोटो

भारत का 11 दिसंबर, 2019 को संसद भवन से पारित नागरिकता संशोधन बिल के बाद दुनिया भर की मीडिया में यह छाया हुआ है। यह बिल संसद के दोनों सदनों लोकसभा फिर राज्यसभा से पारित हुआ। इसके खिलाफ कांग्रेस पार्टी समेत कुछ पार्टियों के सांसद विरोध में रहे। प्रचंड बहुमत वाली प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार इस बिल को बड़े मत विभाजन से पास करा ले गई थी। बिल के वक्त मोदी सरकार को यकीन था कि वह कांग्रेस के विरोध के बावजूद इसके विरोध को भी अच्छी तरह से संभाल लेगी। यह यकीन आज का नहीं था। इससे पहले मोदी सरकार को नोटबंदी, जीएसटी कानून, तीन तलाक, अयोध्या फैसले जैसे संवेदनशील मुद्दे के बाद उपजे विरोध को संभालने का अनुभव भी था। इन्हीं सब वजहों के कारण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार के लिए एक नारा बुलंद है मोदी है तो मुमकिन हैं। यह नारा मोदी ने अपने दूसरी बार लोकसभा चुनाव प्रचार अभियान के दौरान देश के नागरिकों के लिए जारी किया था। लेकिन, इस बार मोदी सरकार देश की नब्ज समझने में थोड़ा चूक कर गई। इसकी बहुत सारी वजहें हैं जिसके बारे में खुलासा किया जाना लाजिमी भी है।

Citizenship Amendment Act
नरेन्द्र मोदी, प्रधानमंत्री, भारत

यह थी शुरूआत
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल की पहली उपलब्धि नोटबंदी ही थी। नोटबंदी के दौरान भी एक दर्जन से अधिक नागरिक देश में एटीएम—बैंक की लाइन में मारे गए थे। कई महीनों तक इसका असर देखने को मिला था। रातों रात हुए इस फैसले की वजह के परिणाम देश का वह नागरिक जो परेशान हुआ था वह कभी नहीं भूल सकता। देश के गुस्से को शांत कराने के लिए मोदी ने सार्वजनिक सभा में कहा था कि देश की अर्थव्यवस्था को पटरी में लाने के लिए ऐसा किया गया है। 30 दिन की मोहलत मांगते हुए सारे संकट दूर करने का वादा भी किया गया था। नक्सलवाद, आतंकवाद, काला धन समेत कई अन्य मुद्दों पर देश के गद्दारों को बेनकाब कर देने का वादा मोहलत की अवधि में करने का वादा किया था। इससे पहले उन्होंने देश के नागरिकों को बूलेट ट्रेन, स्मार्ट सिटी के सब्जबाग दिखाए थे। हालांकि इन दोनों ही बहुप्रतीक्षित योजना में से कोई भी धरातल में अभी देख पाना दूर की कौड़ी है।

यह हुआ असर
देश में मोदी ने अपने पहले कार्यकाल के वक्त जब प्रचार अभियान शुरू किया था तब महंगाई और भ्रष्टाचार को अभियान का हिस्सा बनाया था। उस वक्त पेट्रोल के दाम भोपाल जैसे शहर में 78 रुपए प्रति लीटर थे। उस वक्त क्रूड आयल आज के मुकाबले उस वक्त काफी सस्ता भी था। आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का दूसरा कार्यकाल चल रहा है। पेट्रोल के दाम 83 रुपए प्रति लीटर है। प्याज के दाम 100 रुपए पार है। एक जमाना था जब प्याज की वजह से तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार गिर गई थी। आज यह है कि आयात महंगा हो गया है। खाद्य तेल के भाव प्रति लीटर 20 रुपए बढ़ गए हैं। बेरोजगारी की दर बहुत ज्यादा बढ़ गई है। आर्थिक ढांचा तेजी से नीचे गिर रहा है। छोटे कारोबार नोटबंदी के बाद बंद होना शुरू हुए जिसका सिलसिला आज भी जारी है। जबकि भारत के लिए यह सुनहरा मौका था। जब अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक जंग चल रही है। इस जंग में भारत में अवसर पैदा किए जाने थे। लेकिन, ऐसा नहीं हुआ बल्कि यहां के अवसर बांग्लादेश, श्रीलंका और नेपाल जैसे छोटे देशों में शिफ्ट हो गए। भारत—चीन बड़े देश और बड़ी अपेक्षाओं के चलते छोटे देशों में शिफ्ट हो गए।

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कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी

भरोसे का गिरता ग्राफ
मोदी सरकार के निशाने पर सदा कांग्रेस निशाने पर रही। कांग्रेस मुक्त भारत का नारा नरेन्द्र मोदी ने ही दिया था। लेकिन, पिछले दो साल में यह बदलता दिख रहा है। मोदी जिस भारतीय जनता पार्टी से आते है उस दल की सरकार कई राज्यों से चली गई। इसी साल भाजपा की चार बड़े राज्यों से विदाई भी हो गई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ताजा नागरिकता संशोधन कानून के फैसले से यह झलकने भी लगा है। इस फैसले की वजह से सर्वाधिक प्रभावित राज्य असम, बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, कर्नाटक, गुजरात, पश्चिम बंगाल में भाजपा की साख गिर गई है। इस बिल को जनविरोधी और बंटवारे वाला बताते हुए लोग खुलकर विरोध कर रहे हैं। इन राज्यों में बिल पारित होने के बाद से कानून बनने के बीच डेढ़ दर्जन से अधिक नागरिकों की मौत हो चुकी है। विरोध को देश विरोधी लोगों का एजेंडा बताकर जन भावनाओं की दिशा को मोड़ने का परिणाम भी काम नहीं आया।

डैमेज कंट्रोल ड्रामा या फिर स्टंट
इस नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ पहली आवाज दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी से उठी थी। यहां से शुरू हुआ बवाल देश भर में फैल गया। इस बिल को लेकर कई शहरों से विरोध के सुर अभी भी गूंज रहे हैं। बिल को लेकर कई तरह की भ्रांतियां है। देश के नागरिकों को लगता है कि उसे एक बार फिर नोटबंदी की तरह स्वयं को ईमानदार और देशभक्त साबित करने के लिए कतार में खड़ा होना पड़ेगा। विरोध को रोकने के लिए मोदी सरकार ने हरसंभव कोशिश कर ली। प्रेस इंफोरमेशन ब्यूरो की तरफ से कई सवाल और जवाब बनाकर उसको प्रिंट, इलेक्ट्रोनिक ओर वेब मीडिया के माध्यम से बांटे भी गए। इन सबके बावजूद देश की जनता भरोसा नहीं कर रही है। उसे जीतने के लिए भाजपा ने 10 दिन में 1000 रैलियां करने का मन बना लिया है। जिसकी शुरूआत रविवार को दिल्ली के रामलीला मैदान से शुरू हो गई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वयं इस काम के लिए मोर्चा संभाल लिया है। उन्होंने देश के नागरिकों को यकीन दिलाया कि यह भारत देश के किसी भी नागरिकों के अधिकार को वंचित करने के लिए नहीं बनाया गया है। बल्कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में रहने वाले भारतीय मूल के नागरिकों की रक्षा के लिए बनाया गया है। अब देखना यह है कि यह डैमेज कंट्रोल कितना कारगर होगा। रविवार को हुई रैली से भी यह साफ हो गया है कि मोदी सरकार नागरिकता संशोधन कानून को बदलने या उसको विराम लगाने के मूड में नहीं हैं।

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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और दिल्ली की मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल— फाइल फोटो

विपक्ष के निशाने पर मोदी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ कम नहीं हो रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी मोदी सरकार पर नागरिकों के विरोध करने के अधिकार को कुचलने का आरोप लगा चुकी है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नीतियों की कट्टर आलोचक रही है वह नागरिकता संशोधन कानून को लेकर खुलकर विरोध कर रही है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का आरोप है कि प्रधानमंत्री मोदी देश के प्रमुख मुद्दों जैसे बेरोजगारी, महंगाई, आर्थिक कमजोरियों समेत अन्य विषयों से ध्यान भटकाने के लिए ऐसा कर रहे हैं। केजरीवाल का कहना है कि भारतीय मूल के नागरिकों को देश में दाखिल करने की फिक्र की बजाय यहां के नागरिकों की चिंता करनी चाहिए। सामाजिक कार्यकर्ता और स्वराज पार्टी के संस्थापक योगेन्द्र यादव कह चुके हैं कि प्रधानमंत्री को नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी रजिस्टर की बजाय बेरोजगारों का रजिस्टर बनाने के बारे में सोचना चाहिए था। विरोध करने वालों में सपा प्रमुख अखिलेश यादव, राजद प्रमुख तेजस्वी यादव समेत कई अन्य नेताओं के भी नाम हैं।

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इमरान खान, प्रधानमंत्री पाकिस्तान

पड़ोसी मुल्क में भी चिंता
नागरिकता संशोधन कानून जिसमें 1955 के बाद बदलाव किया जा रहा है। इस कानून को लाने की कोशिश कांग्रेस सरकार ने की थी। लेकिन, वह ऐसा नहीं कर सकी। यह कोशिश भाजपा सरकार ने की तो देश की पुलिस, मीडिया के अलावा सरकारी संपत्ति लोगों के निशाने पर आ गई। ऐसा नहीं है कि इस कानून का असर देश में ही है। यह पाकिस्तान में भी देखा जा रहा है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश का ध्यान भटकाने के लिए पाकिस्तान पर हमला कर सकत हैं। यह बयान उस बयान के बाद आया जब देश के थल सेना अध्यक्ष बिपिन रावत ने कहा कि पड़ोसी देश पाकिस्तान कुछ बड़ा करने वाला है। इसलिए देश के नागरिकों और सैनिकों को तैयार रहने का उनका इशारा था। हालांकि मीडिया रिपोर्ट है कि पाकिस्तान आर्टिकल 370 को रद्द करने जैसे फैसले की तरह निर्णय लेने जा रहा है। इस फैसले की वजह से जम्मू—कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश हो गए। खबर है कि पाकिस्तान इस मौके को भुनाना चाहता है। वह देश के आंतरिक हालातों का फायदा उठाकर पाक अधिकृत कश्मीर को लेकर कोई रणनीतिक योजना बना रहा है। यदि ऐसा हुआ तो भारत—पाकिस्तान के बीच फिर विवाद की स्थिति निर्मित होगी। जिसका इशारा पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के बयान से साफ हो गया है।

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