प्रिय चिंरजीव आकाश,
आज न्यूज चैनलों पर तुम्हारा पराक्रम देखकर आत्मा तृप्त हो गयी। लेकिन समस्त भारत भूमि के लिए मुझे दु:ख का अनुभव भी हो रहा है। क्योंकि अभी-अभी विराट कोहली का फोन आया था। उन्हें कल वेस्ट इंडीज की पिटाई के लिए जिस तरह के बैटधारी की जरूरत है, उसके सारे लक्षण आज उन्होंने भी तुम्हारे भीतर देखे। वह चाह रहे थे कि तुम उनकी टीम में शामिल हो जाओ। किंतु जब मैंने कोहली को बताया कि तुम्हारा ग्यारह जुलाई तक का समय देश की न्याय व्यवस्था की सेवा में समर्पित रहेगा, तो वह निराश हो गये। अस्तु यदि कल हम वेस्ट इंडीज से हार गये तो सबसे बड़ा दु:ख यही रहेगा कि तुम्हारी कर्तव्योचित कानूनी व्यस्तताओं के चलते देश अपने एक होनहार और विशिष्ट शैली वाले बैट्समैन की सेवाएं लेने में असफल रहा।
बेटा, आप नहीं जानते कि आपने मेरी कितनी आकांक्षाओं को पूरा किया है। हमेशा से सोचता आया था कि महाभारत में गांडवधारी अर्जुन कैसे दिखते रहे होंगे? शिशुपाल वध के समय चक्रधारी श्रीकृष्ण के चेहरे पर कैसा क्रोध नजर आया होगा? रावण की नाभि में छिपे अमृत पर तीर चलाते वक्त भगवान श्रीराम कैसे दिखे होंगे? हिरणकश्यप को जांघ पर रखकर चीरते नृसिंह अवतार के चेहरे पर कैसी संतुष्टि नजर आयी होगी? आज आपको टीवी चैनल पर देखकर समझ गया कि इन सबके चेहरे ऐसे घटनाक्रमों के समय किस तरह के होंगे। यह दुर्भाग्य है कि उस समय की भारत भूमि में बैट का चलन नहीं था। वरना यकीन मानिए, अर्जुन ने गांडिव, कृष्ण ने सुदर्शन चक्र, भगवान श्रीराम ने तीर और नृसिंह अवतार ने जांघों की जगह बल्ले का ही इस्तेमाल किया होता। खैर, आने वाले साढ़े चार साल बाद यदि सब फिर सही हुआ तो ये सभी अवतार पुरुष आपको पाठ्य पुस्तक निगम की किताबों में बल्ला थामे ही नजर आएंगे। यह वायदा मैं आपसे राजनीतिक के प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के आधार पर कर रहा हूं।
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बेटा, मैं तो बीते कुछ समय से निराशा के चरम में था। सोचता था कि बीते साल की 12 दिसंबर के बाद से यह प्रदेश शूरवीरों से शून्य हो गया है। किंतु पहले भतीजे प्रबल तथा सुदीप और अब आप ने मेरे भीतर राहत का संचार कर दिया है। जो निराशावादी मान रहे थे सभरवाल कांड, देशव्यापी मॉब लिंचिंग महायज्ञ एवं गौसंरक्षण आतंकवाद महाअभियान की अलख इस राज्य में मंद पडऩे लगी हैं, उन्हें आज आप और आपके मित्र मंडल ने निराशा से पूरी तरह उबार लिया है।
जिन दुष्ट कर्मचारियों को आपने बल्ले से आशीर्वाद दिया, उनकी खुशकिस्मती पर मुझे रश्क हो रहा है। सच कहूं तो आपके आज के सधे हुए इन स्ट्रोक्स ने मुझे उन क्रांतियों का साकार रूप दिखा दिया, जिनके लिए इतिहास “रक्त-विहीन” का जुमला इस्तेमाल करता है। मैं आपके अनुयायियों (आपकी आज्ञा हो तो इनके लिए “शिष्य” लिख दूं?) का अभिनंदन करना चाहता हूं, जिन्होंने बस किसी को तड़ातड़ तमाचे कुदाकर अपने कत्र्तव्य की इतिश्री कर ली। वरना आप जैसा सिकंदरनुमा नेता हो और मामला केवल झापड़ों या बल्ला-प्रहार तक ही सिमट कर रह जाए, ऐसा भला क्या मुमकिन है! हां, एक शिकायत है। आपके शहर की एक कंपनी के आपके नाम पर ही बने उत्पाद बहुत प्रसिद्ध हैं। किंतु उसके कर्ताधर्ता निठल्ले नजर आते हैं। वरना उन्हें चाहिए था कि आज ही आपको अपना ब्रांड एंबेसेडर बना लेते। फिर देखते कि किस तरह उनका उत्पाद और लोकप्रिय हो जाता। वह इतना चमत्कारी बन जाता कि आपके शहर की जर्जर से जर्जर इमारत में रह रहे परिवार भी उसका सेवन इस यकीन से कर लेते कि इस बरसात में भले ही उनका भवन भरभराकर गिर जाए, किंतु आपके नाम रूपी इस अमृत के सेवन से उनका बाल भी बांका नहीं होगा। वे जिंदा रहेंगे और आपकी बल्ले-बल्ले करने वालों की संख्या में निरंतर वृद्धि के कारक बनते जाएंगे। अंत में पूरे अंत:करण से यही आशीर्वाद दे रहा हूं कि आप जीते रहो और सियासत के इस क्रिकेट में हमेशा जीतते रहो।
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