MP Scam News: प्रदेश के कई थानों में बहुत बुरे हैं हालात, सीएम के महत्वपूर्ण विभाग में काबिल जांच अधिकारियों की भारी कमी, किरकिरी से बचने कई प्रकरणों पर पर्दा डालने की सामान्य हो गई पहल, साढ़े दस करोड़ रुपए के सरकारी फर्जीवाड़े को सुलझाने में खुल गई यह पोल
भोपाल। मध्यप्रदेश के डीजीपी कैलाश मकवाना ने कुर्सी संभालने के अगले दिन ऐलान किया था कि वे बुनियादी पुलिसिंग को बढ़ावा देंगें। लेकिन, पूरे एमपी में कई थानों के बहुत बुरे हालात चल रहे हैं। इससे साफ है कि डीजीपी को थानों में ही नहीं पुलिस प्रशिक्षण अकादमी में भी बहुत बड़े स्तर पर जाकर सर्जिकल स्ट्राइक करना होगा। यह बात हम यूं ही नहीं कर रहे। दरअसल, भोपाल (MP Scam News) के कोतवाली थाने में साढ़े तीन महीने पहले दर्ज एक जालसाजी के मामले में यह उजागर हो गया। भोपाल डीसीपी रियाज इकबाल को अपने जोन के तफ्तीश में काबिल अधिकारियों के चयन में काफी पसीना आ गया। उन्हें इस केस को सुलझाने के लिए चार थानों के सब इंस्पेक्टर चयनित करना पड़े। इसके बाद मोनिटरिंग एसीपी शाहजहांनाबाद निहित उपाध्याय को सौंपी गई।
यह नाम जांच करने वाले अधिकारियों के रूप में जुड़ते चले गए
सूत्रों के अनुसार पहले घोटाले की केस डायरी कोतवाली (Kotwali) के एसआई माधव सिंह परिहार (SI Madhav Singh Parihar) को दी गई। उन्होंने प्रकरण का अध्ययन किया तो अफसरों को बता दिया कि यह एक व्यक्ति नहीं कर सकता। फिर डायरी हनुमानगंज (Hanumanganj) में तैनात एसआई अमित भदौरिया (SI Amit Bhadauriya) को दी गई। उन्होंने भी हाथ खड़े करके हकीकत डीसीपी को बता दी। भोपाल पुलिस कमिश्नर हरी नारायण चारी मिश्र (CP Hari Narayan Chari Mishra) ने डीसीपी को सलाह दी कि एक एसआईटी बनाकर काम बांटा जाए। इसके लिए हनुमानगंज एसीपी राकेश बघेल (ACP Rakesh Baghel) को चुना गया। क्योंकि उन्हें ईओडब्ल्यू (EOW) में काम करने का ज्यादा अनुभव है। टीम में टीला जमालपुरा के एसआई सुशील कुमार (SI Sushil Kumar) और कोहेफिजा में तैनात एसआई संजीव धाकड़ (SI Sanjeev Dhakad) को लगाया गया। जालसाजी का यह प्रकरण वित्तीय गड़बड़ी से जुड़ा था। इसलिए उस क्षेत्र के अधिकांश एक्सपर्ट लोकायुक्त, ईओडब्ल्यू या फिर सीबीआई में होते हैं। जालसाजी का यह मामला कानून व्यवस्था की ड्यूटी के बीच सुलझाना आसान नहीं था। इसमें बेहतर कार्य कुशलता के साथ प्रबंधन की आवश्यकता थी। जिसमें सायबर एक्सपर्ट की भी जरुरत भी थी। साढ़े दस करोड़ रुपए की ट्रेल को सुलझाने में 50 खातों की जानकारी खंगालने का काम करना था। यह मामला सुलझ तो गया लेकिन इसके साथ ही थानों में जांच करने वाले एसआई की कमी भी उजागर हो गई जिस पर अफसर अब मौन हो गए हैं। अफसर इस समस्या के निदान पर लगे समय के सवाल को यह बोलकर टाल गये कि हमें भी भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत कार्रवाई करने का अधिकार है। राजधानी में काबिल सब इंस्पेक्टर ही नहीं महिला एसआई की कमी से भी जूझ रही है। आलम यह है कि अफसरों को एमबीए पास करने वाले छात्रों की तरह हर काम के लिए मैनेजमेंट का फॉर्मूला निकालना पढ़ रहा है।
यह है वह प्रकरण जिसको सुलझाने के लिए चार थानों की एक स्पेशल टीम डीसीपी को बनाना पड़ी थी
इस सनसनीखेज घोटाले का मास्टर माइंट सरकारी विभाग के क्लर्क को पुलिस बता रही है। उसने अपनी इस योजना में दो अन्य लोगों को भी शामिल कर लिया था। इस प्रकरण का खुलासा करते हुए डीसीपी जोन—3 रियाज इकबाल (DCP Riyaz Iqbal) ने बताया कि कोतवाली थाने में 14 सितंबर को कोतवाली थाने में सात पेज की एक रिपोर्ट मिली थी। रिपोर्ट बीज प्रमाणीकरण (Seed Certification) अधिकारी के हस्ताक्षर से मिली थी। जिसको लेकर थाने में सुखदेव प्रसाद अहिरवार (Sukhdev Prasad Ahirwar) आए थे। इसमें आरोप बृजेंद्र दास नामदेव और तत्कालीन बैंक मैनेजर नोयल सिंह पर आरोप लगाए थे। बृजेंद्र दास नामदेव (Brajendra Das Namdev) मध्यप्रदेश राज्य बीज प्रमाणीकरण दफ्तर में चपरासी था। यह कार्यालय गोविंदपुरा थाना क्षेत्र स्थित चेतक ब्रिज के नजदीक गौतम नगर (Gautam Nagar) में हैं। जबकि नोयल सिंह (Noyal Singh) कोतवाली थाना क्षेत्र स्थित सेंट्रल बैंक आफ इंडिया (Central Bank Of India) में मैनेजर था। इसी बैंक में कार्यालय की तीन एफडी जमा थी। यह एफडी दस करोड़, 69 लाख, 22 हजार रुपए से ज्यादा की थी। एफडी एक साल के लिए 02 नवंबर, 2023 को बनाई गई थी। यह बनाने सरकारी दफ्तर में तैनात सहायक ग्रेड तीन दीपक पंथी (Deepak Panthi) अरेरा कॉलोनी स्थित यूनियन बैंक आफ इंडिया (Union Bank Of India) भेजा गया था। यह फर्जीवाड़ा तब सामने आया जब दफ्तर ने इसकी आडिट कराया। इसमें पता चला कि दफ्तर के सरकारी रकम का नोडल बैंक अरेरा कॉलोनी (Arera Colony) में था। लेकिन, यह रकम कोतवाली में स्थित सेंट्रल बैंक में डाली गई। रिपोर्ट लेखा अधिकारी एसपी अहिरवार (S.P Ahirwar) को मिली। उन्होंने वरिष्ठ अफसरों को इस संबंध में बताया। बृजेंद्र दास नामदेव बीज परीक्षण प्रयोगशाला (Seed Testing laboratory) में चपरासी है।
डीसीपी ने बताया कि साढ़े दस करोड़ रुपए के फर्जीवाड़े (MP Scam News) में लगभग नौ करोड़ रुपए की रिकवरी कर ली गई है। लगभग डेढ़ करोड़ रुपए की रिकवरी करना अभी बाकी है। पुलिस ने इस मामले में बृजेंद्र दास नामदेव पिता स्वर्गीय सीताराम नामदेव उम्र 53 साल को गिरफ्तार कर लिया है। उसे दो दिन पहले रीवा (Rewa) से गिरफ्तार किया गया। वह मूलत: रीवा जिले के गुढ थाना क्षेत्र का रहने वाला है। फिलहाल गोविंदपुरा स्थित गौतम नगर में किराए से रहता है। वह पूरे फर्जीवाड़े का मास्टर माइंड है। उसने विभाग की फर्जी सील बनाई थी। उसने दस करोड़ रुपए से ज्यादा की एफडी तुड़वाकर यह फर्जीवाड़े को अंजाम दिया। दूसरा आरोपी दीपक पंथी पिता बाबूलाल पंथी उम्र 44 साल को भी गिरफ्तार कर लिया गया है। वह विदिशा (Vidisha) जिले के गंज इलाके का रहने वाला है। पुलिस ने एमपी नगर स्थित यस बैंक के सीनियर सेल्स मैनेजर धनंजय गिरी (Dhananjay Giri) को भी आरोपी बनाया है। आरोपियों ने सेंट्रल बैंक से रकम निकालकर इसी बैंक के जरिए यहां वहां ट्रांसफर की थी। धनंजय गिरी पिता स्वर्गीय सुरेंद्र नाथ गिरी उम्र 48 साल शाहपुरा थाना क्षेत्र स्थित रोहित नगर (Rohit Nagar) में रहता है। पुलिस ने इस फर्जीवाड़े में छह लोगों को गिरफ्तार कर लिया है। जिसमें चौथा आरोपी शैलेंद्र प्रधान उर्फ आचार्य बाबा (Shailendra Pradhan@Acharya Baba) पिता स्वर्गीय चंद्रप्रकाश प्रधान उम्र 62 साल है। वह कटारा हिल्स थाना क्षेत्र स्थित रामायण बिल्डिंग में रहता है। शैलेंद्र प्रधान उर्फ आचार्य बाबा ने कई करंट खाते खुलवाने में मदद की थी। वह कटारा हिल्स में गुरु सानिध्य ज्योतिष केंद्र भी चलाता है। पांचवा आरोपी राजेश शर्मा (Rajesh Sharma) पिता श्यामलाल शर्मा उम्र 50 साल है। वह कोलार रोड स्थित हॉल मार्क सिटी में रहता है। राजेश शर्मा की एक फर्म है जिसका नाम शर्मा एंड संस (Sharma And Sons) है। यह रातीबड़ के पते पर रजिस्टर्ड है। उसने अपने खाते में रकम ट्रांसफर कराने के बाद कमीशन लिया था। इसी तरह कमीशन लेकर खाता देने वाला छठवां आरोपी पियूष शर्मा (Piyush Sharma) पिता स्वर्गीय रामनारायण शर्मा उम्र 44 साल है। वह सीहोर (Sehore) जिले के सिंधी कॉलोनी (Sindhi Colony) में रहता है।
फर्जीवाड़े की रकम से आठ करोड़ रुपए की जमीन खरीद ली जिसकी रजिस्ट्री शून्य होगी
डीसीपी रियाज इकबाल ने बताया कि आरोपी बृजेंद्र दास नामदेव इस पूरे षडयंत्र का मास्टर माइंड था। उसे भनक लग गई थी इसलिए अपने ठिकाने बदल—बदलकर पुलिस गिरफ्तारी से बच रहा था। पुलिस को अभी तक जांच में करीब 50 बैंक खातों की पड़ताल करना बाकी है। यह सभी बैंक खातों में रकम यस बैंक से ट्रांसफर हुई थी। कुछ रकम से घरेलू उपकरण भी खरीदे गए हैं। बाकी रकम कमीशन लेकर कैश में बदली गई थी। यह रकम एकत्र करने के बाद एजेंट वरुण कुमार (Varun Kumar) के जरिए करीब 12 एकड़ की तीन जमीन खरीदी गई। यह जमीन गुनगा (Gunga) थाना क्षेत्र में एक किसान से करीब आठ करोड़ रुपए में खरीदी गई थी। पुलिस को अभी वरुण कुमार नहीं मिला है। इसी जमीन पर आरोपियों ने राष्ट्रीय पशु संवर्द्धन योजना के तहत पांच करोड़ रुपए का लोन भी मंजूर करा लिया था। आरोपी इस जमीन पर सरकार से सब्सिडी लेकर उसमें लाभ अर्जित करके रकम को वापस विभाग के खाते में जमा कराना चाहते थे। उससे पहले उनके दफ्तर को पैसों की आवश्यकता आई तो एफडी को तोड़ने का निर्णय लिया गया। ऐसा करने पर ही यह फर्जीवाड़ा निकलकर सामने आया। डीसीपी का कहना है कि सरकारी पैसों से खरीदी गई जमीन को लेकर शासन के निर्णय अनुसार कदम उठाया जाएगा। उन्होंने कहा कि अभी इस मामले में कई संदेहियों की भूमिका का पता लगाया जाना बाकी है। पुलिस ने जमीन की रजिस्ट्री शून्य करने की कवायद शुरु कर दी है। किसान ने आरोपियों को सरकारी जमीन का भी एक हिस्सा बेच दिया था।
इस सनसनीखेज फर्जीवाड़े ()MP Scam News का खुलासा करने पुलिस कमिश्नर हरिनारायण चारी मिश्र मीडिया के सामने आने वाले थे। लेकिन, उनकी जगह पर डीसीपी को मीडिया से बातचीत करना पड़ी। उन्होंने बताया कि करीब एक करोड़ रुपए नकद बरामद हो चुके हैं। आरोपियों ने जो एफडी भी बनाई है। जिसके बारे में पता लगाया जा रहा है। डीसीपी ने एक सवाल के जवाब में कहा कि वित्त की एसओपी होती है। उसमें कहां चूक हुई है उसके बारे में जांच अभी जारी है। आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद दो कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत भी कार्रवाई होगी। यह बताने पर उनसे पूछा गया कि आखिरकार सरकारी दफ्तर ने इस बात की रिपोर्ट ईओडब्ल्यू से क्यों नहीं की थी। जबकि सरकारी पैरामीटर दस करोड़ रुपए के घोटाले की जांच करने थाने को नहीं होता है। उन्होंने कहा कि इस संबंध में पुलिस कमिश्नर हरिनारायण चारी मिश्र संबंधित विभाग के एसीएस को पत्र लिखेंगे। हमें भी भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत प्रकरण दर्ज करने का अधिकार है। इस मामले में जांच का दायरा बिहार और महाराष्ट्र में भी है। यह बात भी डीसीपी ने ही बताई। इससे साफ है कि इतने संवेदनशील मामले की जांच को थाना पुलिस को सौंपकर विभाग ने अपने आला अधिकारियों को बचाने का प्रयास किया है। यदि यही जांच ईओडब्ल्यू ने की होती तो एसओपी के अनुसार पहले नंबर पर आरोपी एफडी बनाने का आदेश देने वाले अधिकारी बनते। यानि साफ है कि इस पूरे प्रकरण में बहुत जमकर कालिख पोत दी गई है। जिस कारण न्यायालय में होने वाले जिरह के दौरान पुलिस को किरकिरी का सामना करना होगा। (सुधि पाठकों से अपील, हम पूर्व में धाराओं की व्याख्याओं के साथ समाचार देते रहे हैं। इसको कुछ अवधि के लिए विराम दिया गया है। आपको जल्द नए कानूनों की व्याख्या के साथ उसकी जानकारी दी जाएगी। जिसके लिए हमारी टीम नए कानूनों को लेकर अध्ययन कर रही हैं।)
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