Gyanvapi Mosque News: भोपाल के सांसद आलोक शर्मा ने बताया है जामा मस्जिद के नीचे गणेश प्रतिमा, सबूत देंगे तो कोर्ट में दलील पेश करुंगा, सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता ने दिया ऐसा बयान, जिहाद की बेड़ियों में जकड़े देवालयों की मुक्तिक्रांति को संबोधित करने आए थे राजधानी
भोपाल। ज्ञानवापी मामले में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में हिंदू पक्ष की तरफ से दलीलें पेश कर रहे अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन भोपाल में आए थे। वे कुशाभाऊ ठाकरे फाउंडेशन की तरफ से आयोजित संगोष्ठी को संबोधित करने आए थे। फाउंडेशन (Gyanvapi Mosque News) ने इसके लिए ‘जिहाद की बेड़ियों में जकड़े देवालयों की मुक्तिक्रांति’ विषय पर व्याख्यान आयोजत किया था। इस कार्यक्रम के बाद सुप्रीम कोर्ट के वकील ने मीडिया से एमपी नगर स्थित एमराल्ड होटल (Emrold Hotel) में मीडिया से बातचीत की। जिसमें उन्होंने राम मंदिर, ज्ञानवापी से लेकर कई विषयों पर जानकारी दी। इसी दौरान भोपाल के जामा मस्जिद को लेकर बयान दिया। उन्होंने कहा कि जामा मस्जिद के नीचे गणेश मंदिर है।
विवाद की जगह को लेकर हक मांगने के लिए सड़क पर नहीं लड़ा जा सकता
अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन (Advocate Vishnu Shankar Jain) ने कहा कि 31 जनवरी, 2024 को ज्ञानवापी मामले में पूजा का आदेश मिला था। यह फैसला देने वाले डीजे रिटायर्ड होने के बाद तीन महीने तक नियुक्ति ही नहीं हुई। नियुक्ति हुई तो हम सुप्रीम कोर्ट जा चुके थे। जिस पर 17 दिसंबर को तारीख लगाई है। हमने वजु टैंक (Vaju Tank) पर जो शिवलिंग मिला था उसके सर्वेक्षण की मांग की है। जिसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने दो सप्ताह का टाइम दिया है। इसलिए डीजे कोर्ट ने भी सुप्रीम कोर्ट में प्रकरण चलने तक नई तारीख देने से इंकार कर दिया है। मथुरा (Mathura) श्री कृष्ण जन्म भूमि (Krishna Temple) को लेकर ट्रायल चल रहा है। सर्वे का आदेश 14 दिसंबर को न्यायाधीश मयंक कुमार जैन ने दिया है। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने उस पर रोक लगा दी। इसके खिलाफ हमने सुप्रीम कोर्ट पर अपील की है। यह बात सही है कि कुछ सुनवाई का सिलसिला जरुर धीमा चल रहा है। राम मंदिर (Ram Mandir) प्रकरण से इन दोनों मामलों की तुलना की जाए तो हमारी लड़ाई तेज है। क्योंकि हमने 25 सितंबर, 2020 को मुकदमा फाइल किया था। इस दौरान कोरोना की लहर के बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया था। हमने तीन साल में ज्ञानवापी (Gyanvapi) पर सफलता पाई। जबकि 1989 में राम मंदिर का केस इलाहाबाद हाईकोर्ट आया था। एएसआई सर्वे का आदेश 2002 में मिला था। एमपी की भोजशाला में मई, 2021 में पिटीशन दाखिल की है। एएसआई (ASI) सर्वेक्षण 98 दिनों तक किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने वहां रोक लगा रखी है। हमारी तरफ से सुनवाई के लिए आवेदन कर रहे हैं। भोजशाला को लेकर 2022 में केस लगाया गया था। हम विवादित मामलों को सड़कों पर नहीं सुलझाया जा सकता। इसका एकमात्र जरिया कोर्ट ही है।
बहस करने की बजाय माहौल बिगाड़ने का आरोप लगाया जाता है
कोर्ट के बाहर समझौते को लेकर पूछे सवाल किया गया तो जैन ने कहा कि ज्ञानवापी और भोजशाला (Bhojshala) में सुई के बराबर भी हिस्सा नहीं देंगे। हमें राम मंदिर के केस से सबक लेना चाहिए। दूसरे पक्ष को पांच एकड़ की जमीन दी गई है। यह वैकल्पिक जमीन देने का विरोध करना चाहिए। उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट की जमीन पर हुए कब्जे का उदाहरण दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को लेकर कहा गया कि हाईकोर्ट की वह जमीन थी जिस पर वक्फ बोर्ड ने कब्जा किया था। यह डोमिनेशन करने वाला काम है। यह संवैधानिक भी नहीं है। उन्होंने कृष्ण मंदिर (Krishna Mandir) बनने को लेकर कहा कि लोगों में चाहत है कि मथुरा में मूल स्वरुप मिले। अब वह परिस्थितियां नहीं है जो राम मंदिर की लड़ाई के वक्त हुआ करती थी। इसलिए उस समय राम नाम की ईट स्टोर की गई थी। भोजशाला के प्रकरण में भी दिख रहा है कि ब्रिटिश म्यूजियम में रखी बाघ देवी (Bagh Devi) की मूर्ति को लाकर स्थापित करना है। ब्रिटिश सरकार की शर्त है कि वह उसी स्थान पर रखी जाना है। ज्ञानवापी के शिवलिंग को ड्रिल किया गया है। काशी में ऐसा महत्व है कि वहां खंडित प्रतिमा की भी पूजा होती है। नारायण भट्ट के समय वाला अस्तित्व को वापस पाना हमारा मकसद है। हम सभी प्रकरणों में जीत की दहलीज पर खड़े हैं। मथुरा केस बहुत ही कानूनी है। भारत के हर राज्य में अब हमारा धार्मिक स्थल बोलकर लोग सामने आ रहे हैं। इस सवाल पर विष्णु शंकर जैन बोले हम केस के मैरिट पर दूसरा पक्ष बातचीत नहीं करना चाहते। इसलिए सामान्य सी बात यह बोलकर माहौल बिगड़ने की बात बोली जाती है।
कलम की ताकत तलवार से ज्यादा मजबूत हैं
अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने कहा कि मथुरा कृष्ण जन्मभूमि को लेकर हम रिसर्च रिपोर्ट के साथ दलीलें पेश कर रहे है। हम कलम की लड़ाई लड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि भोपाल के जामा मस्जिद (Bhopal Jama Mosque) के पास दुकानों के पास गणेश प्रतिमा की बात सामने आई है। यह बात मुझे भोपाल सांसद आलोक शर्मा (MP Alok Sharma) ने बताई है। हम फैक्ट को चैक कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सांसद की तरफ से सबूत दिए जाएंगे तो कानूनी केस लड़ा जाएगा। उन्होंने कहा कि यह सिलसिला यहां नहीं थमने वाला। पूर्व में जिस तरह से कब्जा करके तोड़ा गया, उखाड़ा गया या फिर कब्जा किया गया है उसको हटाने के लिए हम हर जगह लड़ाई जारी रखेंगे। भारतीय संविधान में टीपू सुल्तान (Teepu Sultan) में अकबर का चित्र डाला गया है। इसको हटाने के लिए भी हम लड़ रहे हैं। बुलडोजर को लेकर पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा कि इस संबंध में उत्तर प्रदेश सरकार को ही जवाब देना है। सरकार गई भी होगी तो वह बंद कमरे में सुनवाई होती है। उन्होंने मीडिया की भूमिका को लेकर कहा कि मैं टीका टिप्पणी करने का अधिकार नहीं है। बस सुझाव देना चाहता हूं कि सार्थक बहस की जाना चाहिए। ज्ञानवापी को लेकर ही नुपूर शर्मा (Nupur Sharma)के बयान को लेकर कहा कि वहां मुद्दा भटक गया और प्रकरण कुछ और बन गया। तर्क और तथ्यों के आधार डिबेट ही नहीं होती। इसमें एंकर की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं।
देश भर के धार्मिक स्थलों को लेकर जारी रखेंगें आंदोलन
इस बयान देने से पूर्व उन्होंने कुशाभाऊ ठाकरे फाउंडेशन (Kushabhau Thakre Foundation) में बोला। फाउंडेशन पिछले साल 5 टेबल टॉक कार्यक्रम कर चुका है। इसी श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए पंडित खुशीलाल शर्मा सभागार में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील व ज्ञानवापी मामले में हिन्दू पक्ष के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने बतौर मुख्य वक्ता ‘जिहाद की बेड़ियों में जकड़े देवालयों की मुक्तिक्रांति’ विषय पर विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम में भोपाल सांसद आलोक शर्मा, पूर्व सूचना आयुक्त व वरिष्ठ पत्रकार विजय मनोहर तिवारी (Vijay Manohar Tiwari) एवं अखिल भारतीय संत समिति के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष स्वामी अलीनानंद सम्मिलित हुए। एडवोकेट विष्णु शंकर जैन ने एक के बाद एक हिन्दू मंदिरों पर कब्जे के तथ्य प्रस्तुत किए और उनके मुक्ति मार्ग (Gyanvapi Mosque News) बात कही तो पूरा सभागार जयकारों से गूंज उठा। वक्तव्य के दौरान कई बार सभागार में देर तक करतल ध्वनि से गूंजता रहा। जैन ने कहा दो दशक पहले जब ऐसे आयोजन होते थे तब श्रोता नहीं मिलते थे। लोग आते नहीं थे उन्हें लगता था कि इन आयोजनों से उनको क्या मिलेगा। उन्होंने कहा कि हमारे मंदिर स्वयं पर हुए आक्रमणों की कहानी स्वयं कहते हैं। जब विवादित ढांचों के सर्वेक्षण होते हैं तो पत्थरों पर मंदिरों को तोड़कर बनाई गई मस्जिदों की कहानी मिलती है। हमने श्रीराम मंदिर को को मुक्त कराया, लेकिन उनकी मुक्ति से मंदिरों की मुक्ति का हमारा मार्ग पूरा नहीं हुआ। बल्कि वह वहां से प्रारंभ हुआ है। हमें केवल कब्जा किए हुए मंदिरों को मुक्त नहीं कराना, बल्कि हमारे मंदिरों को सरकार आधिपत्य से भी मुक्त कराना है। मंदिरों का राष्ट्रीयकरण सनातन धर्म में आ रही कई बाधाओं का समाधान करेगा। (सुधि पाठकों से अपील, हम पूर्व में धाराओं की व्याख्याओं के साथ समाचार देते रहे हैं। इसको कुछ अवधि के लिए विराम दिया गया है। आपको जल्द नए कानूनों की व्याख्या के साथ उसकी जानकारी दी जाएगी। जिसके लिए हमारी टीम नए कानूनों को लेकर अध्ययन कर रही हैं।)
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