MP Cop Gossip: थाने की हो रही किरकिरी

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MP Cop Gossip: कांस्टेबल का पुराने थाने से नहीं छूट रहा मोह, दूसरे थाने में होने के बावजूद फरार बदमाश को पकड़कर सौंपा

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सांकेतिक ग्राफिक डिजाइन टीसीआई

भोपाल। मध्यप्रदेश पुलिस विभाग बहुत बड़ा है। इसमें बहुत कुछ चल रहा होता हैं। इसमें कुछ बातें मीडिया के सामने आ जाती हैं और बहुत कुछ रह जाती हैंं। ऐसे बातों का हमारा साप्ताहिक कॉलम एमपी कॉप गॉसिप (MP Cop Gossip) हैं। जिसमें यह बताया जाता है कि हम गतिविधियों पर निगहबानी बकायदा ईमानदारी से रखते हैं। हमारा मकसद व्यक्ति, संस्था पद को ठेस पहुंचाना नहीं हैं।

ईनाम भी रखा गया था अब किसे मिलेगा

पिछले ​साल एक हवाला रैकेट पकड़ाया था। इसमें थाना प्रभारी समेत पांच लोगों पर गाज गिरी थी। जिन्हें धीरे—धीरे बहाल किया गया। इसमें शामिल एक कांस्टेबल अब एक थाने में तैनात हो गए हैं। लेकिन, उनका पुराने थाने का मोह नहीं छूट रहा है। उन्हें उस थाने में हुई किरकिरी का अहसास भी था। इसलिए अपनी खोई साख पाने के लिए वे युद्ध स्तर पर जुटे हुए हैं। उन्होंने पिछले उनके पुराने थाने के एक मामले में फरार चल रहे बदमाश को दबोच लिया। उस बदमाश पर बकायदा एक लाख रुपए का इनाम भी था। लेकिन, उसके पहले जो तिकड़म बैठाई गई उसके कारण उनकी जरुर किरकिरी हो गई।

पुलिस पेट्रोल पंप के लिए जॉब

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पुलिस विभाग के शहर में दो पेट्रोल पंप हैं। इसमें कर्मचारियों को तैनात किया जाना है। इसके लिए बकायदा एक नोटिस भी पिछले दिनों निकाला गया है। आवेदन करने के लिए पूर्व पुलिस कर्मचारी या उनके परिजन पात्र हैं। इस कवायद से पुराने अंगदों की सांसे उपर—नीचे हो रही हैं। दरअसल, पेट्रोल पंप में जो व्यवस्था सुचारु रुप से चल रही है उसमें व्यवधान उत्पन्न न हो। यह चिंता उन अंगदों को है जो अपने ​हिसाब से अपना काम कर रहे हैं। बहरहाल अफसरों ने आदेश निकालकर यह तो बता दिया है कि उनकी निगरानी में कहां क्या चल रहा है वह सामने आ चुका है।

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सीसीटीवी से उड़े होश

शहर के एक थाने में कई गोलियां चलीं। जिसने गोलियां चलाई वह कुख्यात एक मामले में फरार चल रहा है। उसका नाम आने के बाद एक थाना प्रभारी कुछ कर तो नहीं पा रहे इसलिए बता भी नहीं पा रहे। घटना काफी संवेदनशील थी जिसको सुनियोजित तरीके से उसकी हत्या की गई। हालांकि बातें दबाने से बड़ा बवाल होता है यह पुलिस विभाग (MP Cop Gossip) में हर अफसर मैदानी अफसरों को समझाता भी है। इसके बावजूद एक निरीक्षक है कि वे अपनी हरकतों को बदलना ही नहीं चाहते। आलम यह है कि उन्होंने जांच अधिकारी से लेकर खुद फोन उठाने से परहेज करते हैं। ऐसा यह महोदय पूर्व में तैनात थानों में भी करते आए हैं। उन्हें सटीक खबरनबीस रखने वालों से काफी नफरत हैं। यह बात अलग है कि वे जिनके खास है उनके चक्कर में दो बार छह महीने के भीतर में दो ​नोटिस भी मिल चुके हैं।

पत्रकार को ही बिना एफआईआर निपटा दिया

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भोपाल शहर के थानों में पुलिसिंग भरोसेराम के हाथ हैं। यह कौन है सोच रहे होंगे। भैया यह वे लोग हैं जो थानों के अंगद हैं। कोई अफसर का चहेता, कोई विधायक, सांसद या उनका रिश्तेदार है। इसलिए कमान भी विवादित मामलों में उनके ही हाथों में होती है। पिछले दिनों एक पत्रकार की कार के शीशे तोड़े गए। जिस पत्रकार के साथ घटना हुई वे अधिमान्यता पत्रकारों की सूची में शामिल हैं। वे दिल्ली के एक पोर्टल के लिए काम करते हैं। उनके घर के पास कुछ शरारती तत्व बैठकर शराब पी रहे थे। इस बात की शिकायत उन्होंने डायल—100 में कर दी थी। पुलिस उन्हें तो ले गई लेकिन जिसने शिकायत की उसके नाम की मुखबिरी कर दी। यह शंका जताते हुए उन्होंने थाने में आवेदन दिया। जब पुलिस थाने पहुंचे तो उन्हें बिना रिसीव आवेदन लिए शाम को आने के लिए बोला गया। विरोध किया तो उन्हें धमकाया जाने लगा। यह सबकुछ तब तक चला जब पीड़ित ने अपने पत्रकारिता का परिचय नहीं दिया। इसके बाद जब उन्होंने एक फोन घुमाया तो थाना प्रभारी से लेकर पूरा स्टाफ कुर्सी झाड़—झाड़कर उनका आत्मीय स्वागत करने लगा। इस थाने के प्रभारी एक मंत्री के करीबी हैं ऐसा प्रचार बाजार में किया जाता है।  (सुधि पाठकों से अपील, हम पूर्व में धाराओं की व्याख्याओं के साथ समाचार देते रहे हैं। इसको कुछ अवधि के लिए विराम दिया गया है। आपको जल्द नए कानूनों की व्याख्या के साथ उसकी जानकारी दी जाएगी। जिसके लिए हमारी टीम नए कानूनों को लेकर अध्ययन कर रही हैं।)

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