सरकार के महज 2 माह पुराने आदेश को ताक पर रख कार्रवाई के लिए पहुंचा वन विभाग अमला

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लंबित दावों का पुन: निरीक्षण नहीं हुआ, लेकिन खेत उजाड़ने की कार्रवाई की शुरू

पुलिस के छर्रों से घायल हुए चार ग्रामीण

बुरहानपुर। एक तरफ मध्य प्रदेश सरकार वन अधिकार से संबंधित लंबित दावों के पुनर्निरीक्षण की प्रक्रिया शुरू कर रही है। इसके लिए मई 2019 को जिले के सभी कलेक्टरों को आदेश भी जारी कर दिया गया है कि इस प्रक्रिया के पूरा होने तक किसी नागरिक को वन भूमि से बेदखल नहीं किया जाएगा। लेकिन दूसरी ओर प्रदेश के वन विभाग की ओर से इस आदेश की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। मंगलवार को बुरहानपुर जिले के सिवल गांव में पुलिस और राजस्व अधिकारियों के साथ पहुंचे वन विभाग के अमले की कार्रवाई में सरकारी आदेशों को ताक पर रखने की मंशा साफ जाहिर हुई।

वन भूमि से कथित अतिक्रमण हटाने पहुंचे प्रशासन के संयुक्त अमले की कार्रवाई का ग्रामीणों ने विरोध किया तो पुलिस अमले ने जवाबी कार्रवाई की जिसमें चार लोग घायल हो गए। हालांकि विरोध के पहले पांच खेतों में प्रशासनिक अमला जेसीबी चला चुका था। हालांकि प्रशासन का कहना है कि प्रशासनिक अमले पर पहले ग्रामीणों ने हमला किया, जिसमें 6 से ज्यादा वन कर्मी घायल हुए। हमला रोकने और जान बचाने के लिए दो हवाई फायर वन-पुलिस के अमले को करना पड़े। मामले में पुलिस ने शासकीय कार्य में बाधा, बलवा आदि की धाराओं में ग्रामीणों के खिलाफ प्रकरण दर्ज किया है।

क्या है पूरा मामला
नेपानगर में बदनापुर वन परिक्षेत्र के बीट क्रमांक 246 में राजस्व, पुलिस और वन विभाग का अमला ​कथित अतिक्रमण हटाने गया था। इस क्षेत्र में वन विभाग पौधारोपण करने वाला है। ग्रामीणों ने ताजा सरकारी आदेश के रोशनी में अमले का विरोध किया। इस बीच दोनों पक्षों के बीच तकरार हुई।

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प्रशासन का यह है कहना
कार्रवाई के दौरान भगदड़ में एसडीओ भूपेशकुमार शुक्ला घायल हो गए। विवादित भूमि से एक बार बाहर आने के बाद अमला फिर विवादित क्षेत्र में पहुंचा। फिर अमले को देख ग्रामीणों ने उन्हें घेर लिया। इसके बाद अधिकारियों ने अंदर जाकर जेसीबी मशीन निकाली और अमला वापस लौटा। कार्रवाई में एसडीएम विशा वाधवानी, एसडीओपी एसआर सेंगर, तहसीलदार सुंदरलाल ठाकुर, नायब तहसीलदार प्रवीण बानो अंसारी, थाना प्रभारी डीएसपी दीपा डोडवे शामिल थे। बदनापुर बीट से कथित अतिक्रमण हटाने के लिए लंबे समय से वन विभाग कार्रवाई कर रहा है। बीते दो महीने में यहां 6 बार वन अमले और ग्रामीणों के बीच भिडंत हो चुकी है। वन विभाग का दावा है कि यहां ग्रामीणों ने 1500 हेक्टेयर भूमि पर अतिक्रमण किया है।

ग्रामीणों का पक्ष
ग्रामीणों ने वन विभाग पर फायरिंग करने का आरोप लगाते हुए इसमें चार लोगों के घायल होने की बात कही है। ग्रामीण आदिवासियों ने बताया कि वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत कई बार दावे जमा करने के बाद भी वन अधिकार अधिनियमों के अनुसार विधिवत कार्रवाई नहीं हुई है। कानून की धारा 4(5) के अनुसार जब तक दावेदारों द्वारा जमा दावों की नियमित रूप से कार्रवाई नहीं होती, ऐसे दावेदारों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए। इसके बावजूद उन्हें हटाया जा रहा है। राज्य सरकार ने 1 मई 2019 आदेश किया है, इसके अनुसार किसी भी दावेदार पर, जिनके दावे अपात्र या निरस्त हुए हैं, कोई कार्रवाई न की जाए। प्रदेश सरकार के आदेश के बावजूद वन विभाग हमला कर रहा है।

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तीन दिन पहले भी हुआ था विवाद
इस मामले में तीन दिन पहले वन विभाग और आदिवासियों के बीच तीखी बहस हुई थी। यहां डीएफओ सुधांशु यादव और आदिवासियों के बीच विवाद हुआ था। डीएफओ ने वन भूमि खाली करने के लिए कहा था। साथ ही चेतावनी दी थी यदि वन भूमि से नहीं हटे तो बड़ी कार्रवाई होगी।

देर रात दर्ज हुई एफआईआर
मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए जागृत आदिवासी दलित संगठन की माधुरी बेन ने बताया कि ये आदिवासी वन अधिकार के दावेदार हैं और 1988-89 के सबूत दावों में पेश किये हैं। आदिवासियों द्वारा फसल उखाड़ने का विरोध करने पर वन विभाग के अमले ने छर्रे चलाए। इसमें चार लोग घायल हुए हैं। उनमें से एक, गोखरिया पिता गाठला के गर्दन और छाती में लगे छर्रे बाहर नहीं निकलने के कारण उन्हें एमवॉय अस्पताल इंदौर रेफेर किया गया है। उन्होंने बताया कि दिन भर कोशिश करने के बाद देर रात इस संबंध में FIR दर्ज की गई। लेकिन उसमें भी वन विभाग के अमले के दोषी कर्मियों का नाम छोड़ दिया गया। ग्रामीणों पर भी “दंगे’ और शासकीय काम में बाधा की धाराएं दर्ज की गई हैं।

यह हैं तीन मांगें
मामले में जागृत आदिवासी दलित संगठन की ओर से तीन मांगें रखी गई हैं।
1. दोषी कर्मियों को तुरंत गिरफ्तार किया जाए और उन पर ‘अत्याचार अधिनियम’ की धारा भी लगाई जाए।
2. सभी निरस्त और लंबित दावों के लिए कानून के मुताबिक तत्काल पुनः जांच कराई जाए। जांच प्रक्रिया के दौरान किसी भी दावेदार को बेदखल नहीं किया जाए।
3. ग्रामीणों पर लगाये गए केस वापस लिए जाएं।

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