अंकुश मौर्य
1.47 लाख हेक्टेयर की सिंचाई क्षमता के विकास में भूमि अधिग्रहण में देरी
निर्माण कार्य में देरी करते रहे ठेकेदार, लेकिन नहीं की गई उनसे वसूली
निगरानी में लापरवाही और मिलीभगत की भेंट चढ़ीं 362.88 किमी लंबी मुख्य एवं 1,670.64 किमी की सहायक नहरें
भोपाल। प्रदेश की महत्वाकांक्षी ओंकारेश्वर सागर परियोजना की नहरों के निर्माण कार्य में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियों के कारण करोड़ों रुपए भ्रष्टाचार और लापरवाही की भेंट चढ़ गए हैं। इस योजना के जरिये मार्च 2014 तक 1.47 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की सिंचाई क्षमता के विकास के लिए नहरों का निर्माण होना था, लेकिन भूमि-अधिग्रहण में देरी, ठेकेदारों की ओर से निर्माण-कार्यों के क्रियान्वयन की खराब प्रगति और अपर्याप्त निगरानी के चलते यह काम जमीन पर पूरा नहीं हो सका। इस योजना पर कैग की रिपोर्ट में महत्वपूर्ण सवाल खड़े किए गए हैं। द क्राइम इंफो साल दर साल योजना की कैग रिपोर्ट का जायजा लिया तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। मार्च 2017 तक इस नहर निर्माण पर 3,076.51 करोड़ रुपये खर्च किये गए। जिसमें बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ।
ठेकेदार से नहीं वसूले 85.68 करोड़ रुपये
नहर कार्यों में धीमी प्रगति के कारण साल 2015-16 व 2016-17 में लक्ष्य से कम सिंचाई क्षमता ही पूरी की जा सकी। इसके लिए कार्य का मैनेजमेंट अपर्याप्त था और इसके लिए सीधे तौर पर ठेकेदार पर कार्य की धीमी प्रगति की जिम्मेदारी थी। इसके लिए ठेकेदार पर 85.68 करोड़ रुपये की राशि की देनदारी बनती है। लेकिन प्रशासन ने यह राशि ठेकेदार से लेना सही नहीं समझा। इतना ही नहीं नहर कार्यों की गुणवत्ता कमजोर थी, लेकिन कोई निगरानी नहीं की गई। निर्माण कार्य में सीमेंट कांक्रीट की लाइनिंग और बाकी हाइड्राॅलिक संबंधी कार्यों की जांच में पाया गया कि इनमें मानक बेहद निम्नस्तरीय थे।
1.47 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की सिंचाई का उद्देश्य
बताते चलें कि ओंकारेश्वर सागर परियोजना की नहरें बनाने का उद्देश्य धार, खरगोन और खंडवा जिलों के 1.47 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को सिंचित करना था। इसके तहत कॅामन वाटर कैरियर के अलावा बायीं तट नहर, दायीं तट नहर और ओंकारेश्वर के दायीं ओर तट उत्थान नहर समेत 362.88 किमी लंबी मुख्य नहरें एवं 1,670.64 किमी की सहायक वितरण नहरें शामिल हैं।
नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण पर जिम्मेदारी
इस परियोजना को समय पर और गुणवत्ता के साथ पूरा करने की जिम्मेदारी नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण (एनवीडीए) की थी, जो कि नर्मदा घाटी विकास विभाग (एनवीडीडी) के अंतर्गत है।
परियोजना को चार चरणों में लिया गया था। इसमें नहरों के निर्माण के लिए चरणवार ठेकों को पूरा करना था। मई 2006 और मार्च 2011 के बीच आखिरी चरण का काम होना था जिसे मार्च 2014 तक किया गया था। दिलचस्प ये है कि इनमें से कोई चरण पूरा नहीं हुआ लेकिन परियोजना के लिए मार्च 2017 तक 3,076.51 करोड़ का खर्च और भुगतान कर दिया गया।
2012-13 से 2016-17 की कैग रिपोर्ट खड़े करती है बड़े सवाल
इस परियोजना के संबंध में आई कैग की रिपोर्ट कहती है कि परियोजना के काम और उसके कार्यान्वयन के सभी चरणों में समुचित निगरानी का अभाव रहा, भूमि-अधिग्रहण में देरी हुई और ठेकेदारों ने निर्माण धीमी गति से किया। धीमे निर्माण के लिए ठेकेदार से 85.68 करोड़ रुपये वसूले जाने थे, जो नहीं लिए गए। इसके अलावा एनवीडीए ने धीमी प्रगति के लिए किसी भी ठेके को रद्द करने और कार्यों के लिए पुनः निविदा-आमंत्रण की कार्रवाई भी नहीं की थी।
तय हो ठेकेदार की जवाबदेही
मामले में कैग का कहना है कि एनवीडीडी को नहरों में देरी के सभी प्रकरणों का पुनरावलोकन कर ठेकेदारों की जवाबदेही तय करना चाहिए और ठेकों के प्रावधानों के अनुरूप जुर्माना वसूल करना चाहिए। इसके अलावा मामले में चीफ इंजीनियर और कार्यकारी इंजीनियर पर देरी के लिए ठेकेदार से वसूली न करने पर जवाबदेही तय करनी चाहिए।
लक्ष्य से 19 हजार हेक्टेयर सिंचाई क्षमता पीछे
परियोजना में कुल 1.47 लाख हेक्टेयर सिंचाई क्षमता विकसित की जानी थी लेकिन मार्च 2017 तक इसमें से 1.28 लाख हेक्टेयर ही निर्माण कार्य हो सका और 19 हजार हेक्टेयर योजना भूमि सिंचाई क्षमता से अछूती रही। गड़बड़ी ये भी हुई कि मुख्य नहरों और सहायक नहरों के निर्माण का कार्य एक साथ नहीं किया गया जिससे विकसित और उपयोगित सिंचाई क्षमता के बीच के काफी अंतर रहा, जो बेहतर प्रबंधन से कम किया जा सकता था। इस वजह से किसानों को योजना का नगण्य लाभ मिला।
निर्माण विभाग की भूमि अधिग्रहण नियमावली का नहीं हुआ पालन
परियोजना कीकी चक योजना भूमि-अधिग्रहण के पूर्व नहीं की गई थी, जैसा कि मध्यप्रदेश निर्माण विभाग (एम.पी.डब्ल्यू.डी.) नियमावली के अंतर्गत जरूरी है। इसके कारण भूमिगत पाइप नहर के लिए 207 हेक्टेयर के अधिग्रहण पर 22.43 करोड़ का गैरजरूरी खर्च हुआ। कैग का कहना है कि एन.वी.डी.डी. को भूमि-अधिग्रहण की मात्रा के आंकलन हेतु एम.पी.डब्ल्यू.डी. नियमावली के अंतर्गत निर्धारित प्रक्रिया का अनुपालन सुनिश्चित नहीं करने के लिए जबाबदेही तय करना चाहिए, जिसके कारण परियोजना के लिए भूमि-अधिग्रहण पर गैरजरूरी खर्च हुआ।
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