MP Cop Gossip: पुलिस के एक सरकारी भवन में शुक्र है गोली इस दीवार से उस दीवार टकराई, शरीर में घुसती तो ‘आत्मा’ बाहर निकल जाती
भोपाल। मध्यप्रदेश पुलिस महकमा काफी बड़ा होता है। जिसके भीतर बहुत कुछ चल रहा होता है। कुछ बातें सार्वजनिक हो जाती है तो कुछ दबी रह जाती है। इन्हीं बातों का हमारा साप्ताहिक नियमित कॉलम एमपी कॉप गॉसिप (MP Cop Gossip) है। यह गुरुवार सुबह सात बजे प्रकाशित होता है। इसका मकसद व्यवस्था अथवा व्यक्ति को छोटा—बड़ा दिखाना नहीं होता है। हम तो इन जानकारियों को माध्यम से यह आगाह करने का प्रयास करते हैं कि बातें छुपी नहीं रहती। वे इस कान से उस कान सरकती जरुर रहती है।
किससे कितना सहयोग मिला
पिछले दिनों राजधानी में नगरीय निकाय चुनाव हुए। आतिशी प्रचार भी हुआ। जिसके लिए थानों से अनुमति लेना अनिवार्य थी। इसमें कुछ थानों के प्रभारी ने विपक्ष के नेताओं को जितना दबा सकते थे दबाया। कुछ ने जहां तक हो सकता था वहां का दम लगाया। इसके बावजूद परिणाम उतने संतोषजनक प्राप्त नहीं हुए। इन्हीं कारणों से अब उन थानों के प्रभारी की सीआर लिखी जा रही है। ऐसा नहीं है कि यह कवायद केवल थानों तक सीमित है। यह अभ्यास जिले स्तर पर भी किया जा रहा है। मतलब साफ है कि हर कमजोर जिले के नए कप्तान को तलाशकर उसकी टीम बनाने की पहल शुरु हो गई है।
कारोबारी के लिए खुलकर दरियादिली
पुलिस विभाग से जुड़ा यह बहुत बड़ा महकमा है। यहां पिछले दिनों एक जालसाजी की एफआईआर हुई थी। जिसमें एक व्यक्ति को बचा लिया गया। जिस व्यक्ति को बचाया गया वह शहर का रसूखदार व्यक्ति है। उसके बंदरगाह से जुड़े एक राज्य के प्रमुख राष्ट्रीय पार्टी के नेता से सीधे तार जुड़े हैं। उस एफआईआर में कारोबारी को बचा लिया गया। यह कारोबारी करोड़ों रुपए का आसामी होने के साथ—साथ बड़ा जालसाज भी है। उसने करीब पांच बैंकों को करोड़ों रुपए की भी चपत लगाई है। इस आहुति में पुलिस के एक अधिकारी का सीधा रोल था। हालांकि कारोबारी की लग रही बार बार की आग से उठी चिंगारी जिस दिन बारूद के ढ़ेर पर जाकर गिरी तो धमाका होना तय है। जिसके चपेट में कई बड़े पुलिस के अधिकारी चपेट में आएंगे।
अब इससे ज्यादा कौन सी लूप ‘लाइन’ होगी
पिछले दिनों शहर के एक सरकारी भवन में सरकारी रिवॉल्वर से गोली चल गई। इस गोली की गूंज मैदान और हरियाली के चलते बाहर नहीं आ सकी। गोली अफसर से चली थी। गोली चलने के निशान अभी भी बाकी है। हालांकि यह बात आला अधिकारियों के कानों तक भी पहुंची। जिसके बाद मामले को दबाने का भरपूर प्रयास किया गया। इसमें वे कामयाब भी हुए और पूरी घटना मैन स्ट्रीम मीडिया से नदारद रही। दो दिन लगातार समाचार पत्रों का विश्लेषण करने के बाद उस अधिकारी की शाखा बदल गई। हालांकि वे जिस जगह तैनात है वहां अभी भी बने हुए है। क्योंकि उस जगह से दूसरी जगह लूप लाइन में डालने का कोई विकल्प अधिकारियों के पास है ही नहीं।
रिकॉर्ड पर तो है लेकिन मैदान से गायब है
पिछले दिनों प्रदेश के मुख्यमंत्री ने टाइगर तलाशने का टारगेट पुलिस को दिया। हालांकि वह बदमाश की बजाय सैनिटाइजर का नाम निकला। इस बीच मुख्यमंत्री ने पुलिस सहायता केंद्र खोलने का ऐलान कर दिया। वह बात जरुर अमल में आई और दूसरे दिन वह देखने को भी मिली। लेकिन, इन सबके बीच पुलिस चौकी की बात दबी (MP Cop Gossip) रह गई। दरअसल, जहां इस बात का ऐलान किया गया वहां मल्टी बनाने के लिए चौकी को हटाया गया था। उसके बाद वह दोबारा अस्तित्व में भी नहीं आई। जबकि एक जमाने में चौकी चमकदार हुआ करती थी और नजदीक के दूसरे थाने को भी सहयोग करती थी। अब इस चौकी की जगह पर सहायता केंद्र जरुर खुल गया है।
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