MP Cop Gossip: मूंछों के विवाद ने विभाग के आला अधिकारियों की जमकर किरकिरी करा दी
भोपाल। मध्यप्रदेश पुलिस विभाग के भीतर बहुत कुछ चल रहा होता है। इसमें कुछ लोगों के सामने आ जाती है तो कुछ दस्तावेजों या बिना प्रमाण के उजागर नहीं हो पाती। ऐसे ही कई चुटीली जानकारियों के साथ हमारे साप्ताहिक एमपी कॉप गॉसिप (MP Cop Gossip) में यह जानकारियां। हमारा मकसद किसी भी व्यक्ति अथवा संस्था को छोटा—बड़ा दिखाना नहीं है। हमारी चाहत संविधान में बोलने के हक को बनाए रखना है।
आपने तो रिकॉर्ड बना लिया
पिछले दिनों एक—एक करके डीसीपी ने पदभार संभाल लिया। ऐसे ही एक अफसर ने अपने क्षेत्र के अधिकारियों से मुलाकात की। जब उन्होंने एक संभाग के एसीपी को देखा तो वे चौक गए। साहब ने कहा कि मैं जिले की कमान संभालकर वापस यहां लौट आया। लेकिन, आप तो इसी संभाग में डटे हुए है। आपने तो भोपाल के संभाग में लंबे अरसे तक जमे रहने का रिकॉर्ड बना लिया है। आपको बता दे कि यदि नगरीय निकाय चुनाव नहीं हुए तो यह साहब एक सरकार के रहने का कार्यकाल बनाने की तैयारी में है।
वेबसाइट नहीं हुई अपडेट
भोपाल में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू हो गई है। अफसरों ने अपने—अपने बैठने की जगह भी चुन ली है। अफसरों को उनके कॉल साइन भी अलॉट हो गए है। यह सबकुछ जनता के फायदे के लिए किया गया यह प्रचार सरकार ने किया है। अब जनता की बात बताते हैं कि भोपाल पुलिस की वेबसाइट एक महीने बाद भी अपडेट नहीं हो सकी है। इसमें पहले के सारे अधिकारी अभी भी मौजूद है। इस देरी की वजह पर अभी तक कोई ठोस जानकारी सामने नहीं आई है। आती है तो आपको जरुर अवगत कराएंगे।
जिनके कारण किरकिरी हुई वह आज भी रहस्य
पिछले दिनों मूंछ रखने के विवाद ने काफी हल्ला मचाया। इस मामले को लेकर गृहमंत्री से लेकर कई अफसरों ने बयान दिए। आखिरकार मूंछ रखने के कारण हटाए गए पुलिसकर्मी बहाल कर दिए गए। हालांकि ऐसा होते—होते यह विषय नेशनल मीडिया तक में पहुंच गया। आदेश एआईजी ने जारी किया था, जिन्हें ऐसा करने का अधिकार ही नहीं था। लेकिन, किसी भी अफसर ने यह नहीं पूछा कि उन्होंने ऐसा क्यों किया। अब आपको भीतरी की जानकारी देते हैं। ऐसा करने के लिए एक स्पेशल डीजी ने कहा था। जिनकी किरकिरी मीडिया में नहीं हुई। अगर होती भी तो यह तय था कि उनके घर के भीतर किए गए एक अनुष्ठान के चर्चे जमकर चलते।
लाइन नहीं तो कार्यालय अटैच करो
भोपाल में पुलिस कमिश्नर प्रणाली शुरु हो गई है। इसके तहत आठ डीसीपी बनाए गए है। नियमानुसार सभी डीसीपी की अपनी—अपनी लाइन होना चाहिए। लेकिन, यह अभी बहुत दूर की कोड़ी है। यह बात हम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि पिछले दिनों एक आदेश जारी करना था। जिसको लेकर तकनीकी पेंच आड़े आ गया। दरअसल, कुछ थाना प्रभारियों को दूसरे जोन में भेजा जाना था। यदि लाइन होती तो वहां भेजा जाता फिर थाना मिलता। इसलिए आदेश में कार्यालय अटैच करने के बाद फिर थाने की कमान प्रभारियों को सौंपी गई।
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