Bhopal Lock Down Effect:सरकार के पास पुरुष प्रधान योजनाओं की भरमार, महिलाओं के लिए नहीं है कोई विचार
भोपाल। मध्य प्रदेश के अधिकांश शहर पिछले दो महीनों से लॉक डाउन (Bhopal Lock Down Effect:) के कारण बंद है। सरकारी प्रचारित प्रोपेगेंडा में इसको कोरोना कर्फ्यू पुकारा जा रहा है। ताकि सिस्टम और सरकार को कम आघात पहुंचे। इस दौरान शमशान से लेकर अस्पतालों के चेहरे बेनकाब हो गए। हालांकि सरकार ने डैमेज कंट्रोल के लिए कई तरह की स्कीम लांच की। इसका काफी प्रचार—प्रसार भी हुआ। टीवी, पेपर, डॉट कॉम, सोशल नेटवर्क के अलावा कार्यकर्ताओं के जरिए भी योजनाओं को फैलाया गया। सरकार इसमें सफल भी रही। लेकिन, इसमें वह एक वर्ग को भूल गई। जिसके बारे में विचार एक आम घरेलू महिला ने द क्राइम इंफो डॉट कॉम से संपर्क करके भेजे हैं। उनके विचारों को हूबहू प्रस्तुत किया जा रहा है।
हर वर्ग का ध्यान रखती है गृहिणी
आज आपके सामने लॉकडाउन में गृहणियों की दिनचर्या और मानसिक स्थिति पर प्रकाश डालना चाहती हूं। लॉकडाउन शब्द एक नए और भयावह अर्थ के रूप में इस महामारी के समय में समझ आया। पहले महीने तो पता ही नहीं चल पा रहा था। क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए। हर तरफ बंद, कहीं जाना—आना नहीं। किसी का स्वागत नहीं कर सकते हैं। मोबाइल ही सहारा था एक-दूसरे के हालचाल जानने का। आशंकित मन और कर्तव्य पालन पारिवारिक महिला के लिए दोहरी जिम्मेदारी होती है। ऐसा संयुक्त परिवार जिसमें हर आयु वर्ग का व्यक्ति रहता है। सबका मन कोरोना के भय से जब अशांत हो, तब मुझे कुछ दिन समझ ही नहीं आया। फिर उसका हल निकाला। मैंने रोजाना के काम में सेवा भाव को जोड़ा। सास—ससुर से लेकर घर के हर आयु वर्ग की हर जरुरतों को पूरा किया।
महिला प्रधान होता है घर का प्रबंधन
मेरे सामने परिवार की जरुरतों को पूरा करने के लिए चुनौती भी थी। सामान बाहर से ला नहीं सकते हैं। फिर भी हर आयु वर्ग के लिए उसको जुटाना आसान नहीं होता। घर में पुरुष का काम में हस्तक्षेप कम ही होता है। पुरुष के पास बाहरी प्रशासनिक व्यवस्थाओं की जिम्मेदारी होती है। लॉक डाउन के कारण बाहरी प्रशासनिक व्यवस्थाओं पर रोक थी। मतलब साफ था कि घरेलू महिला होने के चलते भीतरी प्रबंधन वह भी महामारी के बीच करना। यह कुछ दिन तो असंभव जैसा फील हुआ था। अपनी कुंठाओं को दूर करने के लिए के लिए व्यंजनों को बनाने में समय बिताया। इसके मुझे दो फायदे नजर आए। एक तो बाहर से आने वाली सब्जी पर रोक रहेगी। वहीं आने वाले दिनों में सब्जी की कमी और महंगाई की चिंता नहीं होगी। इस समय का व्यंजन बनाकर मैंने बेहतर प्रबंधन कर लिया।
आर्थिक रुप से मजबूत बनाएं सरकार
मुझे लगता है कि ऐसा हर मध्यम वर्ग के परिवारों में हुआ होगा। मेरे जैसा निर्धन परिवार नहीं कर सकता। लेकिन, उन घरों की भी महिलाओं ने मेरी समझ में ऐसा ही कोई काम किया होगा। लॉकडाउन की बढ़ती अवधि से गृहणियों को मानसिक कष्ट होने लगा है। क्योंकि ऐसे परिवार जिनका जीवन व्यापार पर निर्भर हैं वह परेशान चल रहा है। परिवार आमदनी शून्य होने से काफी समस्याओं का सामना कर रहा है। किसी को बैंक का तो किसी को लोकल लोन ना चुकाने से भविष्य में खतरे दिखाई दे रहे हैं।
कुछ घरों में सैलरी 30 से 50 फीसदी कटने लगी है। ऐसे में घरेलू महिला पर घर के भोजन और उसके सामान के प्रबंधन की चुनौती दिखने लगी हैं। अब घरेलू महिलाओं को भी लगने लगा है कि उनके पास भी आय का कोई अतिरिक्त स्रोत होना चाहिए। ताकि संकट की इस घड़ी में पति के साथ—साथ परिवार को राहत पहुंचा सके। इसलिए सरकार से मेरा आग्रह है कि निम्न व मध्यम वर्ग की गृहणियों को काबिल बनाने के लिए वह योजना बनाएं।
अनीता आर्य,
(यह लेखक के विचार है, जिसमें भाषा में संशोधन करके उसको बेहतर बनाने का प्रयास किया गया है।)