वरिष्ठ पत्रकार राघवेंद्र सिंह का लेख
राजनीति में सत्ता हासिल करने का मोह और माया पाने की इच्छा आदमी को बावला बना देती है। इन दिनों मध्यप्रदेश में सट्टा पाने और उसे बचाने के लिए पार्टियां उनके संगठन और रणनीतिकार लगता है पगला से गए है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा का नारा था “माफ करो महाराज हमारे नेता शिवराज”… सबको पता है इसका फायदा भाजपा को कम और महाराज मतलब ज्योतिरादित्य सिंधिया को ज्यादा मिला। अब गलती पर लगता है कांग्रेस है। उसने स्वयं ही 28 विधानसभाओं में होने वाले उपचुनाव में सारा प्रचार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ कमलनाथ पर केंद्रित कर दिया है। लगता है कांग्रेस ने पिछली बार भाजपा की गलती से नहीं लिया है।
बच्चा – बच्चा शिवराज को जनता है
प्रदेश में किसी छोटे बच्चे से भी कोई अगर शिवराज सिंह चौहान और कमलनाथ की लोकप्रियता को लेकर को लेकर प्रश्न पूछेगा तो उत्तर में शिवराज सिंह चौहान का ही नाम आगे आएगा। कौन बनेगा करोड़पति …?
जैसे कार्यक्रम में अगर सवाल पूछे जाएंगे तो शायद शिवराज के मुकाबले कमलनाथ पूछे जाएंगे।। ऐसा लगता है कांग्रेस के भीतर भी हराने – जिताने वाली दो ताकतें काम कर रही हैं। हर कोई जानता है कि शिवराज सिंह चौहान करीब 1977 से ग्राउंड जीरो पर राजनीति में सक्रिय हैं। लेकिन दूसरी तरफ सत्ता में शिखर की राजनीति करने में कमलनाथ आपातकाल के पहले से लेकर अभी तक शक्तिशाली सफल राजनेता रहे हैं। छिंदवाड़ा संसदीय क्षेत्र उनकी सियासत का आदि और अंत है।
कमलनाथ भाग्यशाली नेता
जहां तक पूरे प्रदेश की बात है तो उनका वास्ता सबसे ज्यादा तब पड़ा जब वे 2 साल पहले विधानसभा चुनाव के पूर्व मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बने। कमलनाथ उन भाग्यशाली नेताओं में है जो पहली बार प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बन मात्र 6 महीने की अवधि के बाद मुख्यमंत्री भी बन जाते हैं। जबकि सब जानते हैं कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बनने के लिए नेताओं के जीवन खप जाते हैं और प्रदेश में दौरा करते करते हैं जूते घिस जाते हैं, प्रदेश कांग्रेस के चक्कर काटते काटते पैर घिस जाते हैं और दिल्ली में हाईकमान की परिक्रमा करते हुए जमा पूंजी खत्म हो जाती है तब भी अध्यक्ष बनना नसीब नहीं होता है। मुकद्दर के मामले में कमलनाथ निश्चित ही दूसरे नेताओं की तुलना में सिकंदर हैं। लेकिन उनका मुकाबला भाजपा और उसके चार बार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से है। जो राज्य की राजनीति में अपने समकालीन और नई पीढ़ी के नेताओं पर भारी है। अपने साधारण,सहज व्यवहार, परिश्रम और स्वीकार्यता के कारण जननायक बन चुके हैं। वे मीठा बोलते हैं और आश्वासन के मामले में दिल जीतने का माद्दा रखते हैं। संवेदनशीलता, मौके की नजाकत और उसके हिसाब से व्यवहार करने के मामले में उनका कोई तोड़ नहीं है।
नेताओं में बिना दूध महीनों पालने का गुण होता हैं
कमलनाथ जी इस तरह की काबिलियत और चतुराई में शिवराज सिंह से पीछे दिखते हैं। 15 महीने में उनकी सरकार का चले जाना इसका ऐसा प्रमाण है जो अंधे को दिखाई और बहरे को सुनाई देगा। इसके अलावा नाथ की तुलना में आश्वासन देने कि जो कला शिवराज सिंह में वह शायद कम ही लोगों में होती है। कम से कम कमलनाथ में तो यह बहुत ही कम है वरना सरकार से उन्हें रुखसत नहीं होना पड़ता। अक्सर कमलनाथ जी खुद शिवराज सिंह को सार्वजनिक मंच से भी बड़े कलाकार के रूप में संबोधित करते रहते हैं। नेताओं में बिना दूध के महीनों पालने का गुण होता है और शिवराज जी इस मामले में बहुत भरे पूरे हैं। उनके मुकाबले कांग्रेस अकेले दिग्विजय सिंह है जो जो भारी पड़ सकते हैं। कहते हैं कि पक्का राजनेता वह कहलाता है जो कार्यकर्ता और मतदाताओं को अपने आश्वासनों से हर बार वोट बटोरने में कामयाब हो जाए। अभी तक शिवराज सिंह सबसे आगे बने हुए हैं। वे मंडल स्तर तक के बहुत से कार्यकर्ताओं को नाम से जानते हैं। तुलना करें तो शायद कमलनाथ जी को अपने सभी विधायकों और प्रदेश कांग्रेस पदाधिकारियों के नाम भी याद ना हो । शिवराज रास्ते में मिलने वाले अजनबी का दुख सुख भी सुन लेते हैं और कांग्रेस के बहुत से नेता ऐसे हैं जो सत्ता में रहते हुए अपने घर आए हुए लोगों से भी ठीक है ना मिल पाए हो। मुख्यमंत्री के तौर पर कमलनाथ से बागी हुए विधायकों की ना मिलने वाली शिकायत भी कई बार सुनी जाती रही है। इस मामले में दिग्विजय सिंह अक्सर कहा करते हैं कि किसी को गुड ना दे सके तो कम से कम गुड़ जैसी बात तो करना चाहिए। जब कार्यकर्ता और मतदाता यह चाहता है कि उनका लीडर सीधे उनके संपर्क में रहें ऐसे कांग्रेस और कमलनाथ भाजपा और शिवराज की तुलना में पिछड़ रहे हैं।
गद्दारी -वफादारी के मुद्दे पर भी कमजोर
गद्दार और वफादार के मामले में भी कांग्रेस ने भाजपा से आए नेताओं को अपना उम्मीदवार बनाकर को अपने ही मुद्दे को कमजोर कर दिया है। ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों की बगावत को गद्दारी के रूप में जनता के सामने प्रस्तुत करने का मुद्दा भी कांग्रेस ने कब्जा कर लिया है। दरअसल सिंधिया की बगावत को वोटर के साथ गद्दारी बताने की कांग्रेस ने तैयारी कर रखी थी लेकिन सांवेर और सुरखी विधानसभा में भाजपा से बगावत करने वालों को अपना उम्मीदवार बनाकर इस लड़ाई में खुद को कमजोर किया है। हालांकि वो जगह भाजपा के बागी अपनी तरफ सबका ध्यान खींच रहे हैं इससे भाजपा कैंप में नए ढंग से रणनीति पर काम किया जा रहा है। दूसरी तरफ कांग्रेस की बगावत में विधायकों के बिके जाने के आरोप भी लगे हैं। इसी बीच कांग्रेस के बागियों ने यह भी कहा है कि चुप कमलनाथ मुख्यमंत्री थे तब वे विधायकों को पांच – पांच लाख रुपए हर महीने देते थे। अब यह विवाद भी शुरू हो गया है और इस पर इनकम टैक्स अफसरों से जांच करने की मांग की जा रही है। चुनाव तक ऊंट कई करवट बदलेगा लेकिन अभी तो शिवराज मुकाबले कमलनाथ की रणनीति पर काम कर रही कॉन्ग्रेस थोड़ी कमजोर नजर आती है। हालांकि कांग्रेस कार्यकर्ता और उसके संगठन की असली ताकत की में दिग्विजय सिंह की सक्रियता पार्टी को परिणाम आने तक मुकाबले में बनाए रखेगी। वैसे पिछले विधानसभा चुनाव में भी दिग्विजय सिंह की संगठन क्षमता के कारण कॉन्ग्रेस सरकार में आशा की थी। टिकट बांटने से लेकर चुनाव जिताने की असली ताकत दिग्विजय सिंह और उनकी टीम के हाथों में दिखती है।
उपरोक्त विचार वरिष्ठ पत्रकार राघेंद्र सिंह के हैं। उनकी अनुमति से लेख प्रकाशित किया गया है।
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