1960 में हुई थी मटका कारोबार की शुरुआत, देशभर में फैलाया सट्टे का नेटवर्क
मुंबई। मटका किंग (Matka King) रतन खत्री (Ratan Khatri) का निधन हो गया है। शनिवार को मुंबई में रतन खत्री ने अंतिम सांस ली। खत्री 88 वर्ष के थे, बीते कई दिनों से बीमार चल रहे थे। रतन खत्री अपने परिवार के साथ मुंबई सेंट्रल की नवजीवन हाउसिंग सोसाइटी में रहते थे। शनिवार को रतन खत्री ने दुनिया को अलविदा कहा। जिसकी खबर लगते ही देश में मटका और सट्टा कारोबार करने वालों में हलचल है।
रतन खत्री ने 1960 के दौर में कल्याणजी भगत के साथ मटका कारोबार की शुरुआत की थी। वर्ली मटका (Varli Matka) के नाम से शुरु हुए इस कारोबार में रतन खत्री मैनेजर थे। लेकिन कुछ साल बाद ही 1964 में रतन खत्री ने कल्याणजी भगत (Kalyanji Bhagat) से किनारा कर लिया और अपने धंधे ‘रतन मटका’ (Ratan Matka) की शुरुआत की। देखते ही देखते रतन खत्री का धंधा ऐसा चमका कि लोग उसे मटका किंग के नाम से पुकारने लगे। बीते कई दशकों से मटका खेलना कई लोगों की बुरी आदतों में शामिल है। खत्री के जाने से सट्टा और मटका कारोबार में हलचल मच गई है। रतन खत्री ही मटके से नंबर की पर्ची निकालते थे। प्रतिदिन करीब 1 करोड़ रुपए से ज्यादा का लेन-देन उनके घर से ही होता था ।
बता दें कि सट्टा, मटका और लॉटरी तीनों आंकड़ों का खेल है। आंकड़ों पर ही दांव लगाए जाते है। अंग्रेजों के जमाने से ये खेल मुंबई में खेला जा रहा है। बताया जाता है कि अंग्रेजों के दौर में न्यूयॉर्क कॉटन मार्केट के कारोबार खुलने और बंद होने पर पैसा लगाया जाता था।
रतन खत्री का जन्म एक सिंधी परिवार में हुआ था। 1947 में विभाजन के दौरान अपनी किशोरावस्था में वो पाकिस्तान के कराची से मुंबई आए थे। ‘मटका किंग’ के नाम से फेमस खत्री को मटका (एक प्रकार का जुआं) को निजात किया था। जो भारत के सबसे बड़े सट्टेबाजी रैकेट में शामिल है। खत्री ने देशभर में सट्टे का नेटवर्क स्थापित किया था जो दशकों तक उसके नियंत्रण में रहा।